- हमेशा याद रहेगी बम के धमाकों के बीच जान बचाने की वह कशमकश
- जब जान पर बन आया संकट तो भूखे ही निकले पड़े
रायबरेली। यूक्रेन के खारकीव में बमबारी के बीच जब जिले की एक बेटी को यह सूचना मिली की अब संकट की घड़ी है तो वह पैदल ही चल पड़ी। 10 किलोमीटर चलने के बाद वह 9 बजे खारकीव के वाग्जाल स्टेशन पहुंची। 3 बजे तक उन्होने इन्तजार किया। कई ट्रेन निकल गई। लेकिन भारतीय बच्चों को यह बोल कर नही उन पर नही चढ़ने दिया गया की सीट नही है। तभी अचानक भारतीय दूतावास से यह खबर आती है की सभी लोग आधे घन्टे में खारकीव छोड़ दें। यह सुनते ही सबके होश उड़ गए लेकिन इन बहादुर बच्चों ने हिम्मत नही हारी और फिर वहां से पैदल ही चल पड़े। जिले की छात्रा अंशिका मिश्रा बताती हैं की हम लोग फिर वहां से पैदल चल पड़े करीब 15 किलोमीटर चलने के बाद खारकीव पार कर एक स्कूल में रात बिताई। उस दिन सारा दिन वह भूखी रहीं।
जब खारकीव पार हुयी तो सबकी जान में जान आई। वह कहने लगी कि जब उस दौर महसूस करती हूं तो रुह कांप जाती है। वह बस से तीन दिन का सफर तय करके वह रोमानिया पहुंची। इस दौरान भूख का अहसास होता तो एक-दो बिस्किट खा कर उसे मिटाने का प्रयास कर लेती थी। उस बमबारी के बीच पैदल यात्रा हर कदम पर यह डर की बम अब गिरा की तब। सब लोग बहुत डरे थे। जब तक उन्होने युक्रेन की सीमा पार नही की एक अजीब सा डर मन में समाया हुआ था। किसी तरह वह अपने देश की सीमा पर आई तो उनकी आंखो में चमक आ गई। देश में दाखिल होते ही सभी में एक नया जोश भर गया।
अंशिका बताती हैं की जैसे ही वह रविवार की रात अपने मम्मी-पापा से मिली तो बस लिपट गई। कोई शब्द नही बस मां से लिपट कर आंखो ही आंखों में बेटी ने सारा दर्द कह डाला। मेडिकल की तीसरे वर्ष की छात्रा अंशिका कहती हैं की वहां से बोला गया की अभी दो सप्ताह का अवकाश है। उसके बाद ऑनलाइन क्लास चलेगी फिर जैसा माहौल होगा किया जायेगा। गोरा बाजार के निवासी विनोद मिश्र की बेटी अंशिका मिश्रा अपने सकुशल अपने घर लौट आने का श्रेय स्वयं की हिम्मत व भारत सरकार को देती हैं। वह कहती हैं की युक्रेन से बाहर वह अपने हौसले पर ही लौटी हैं । बाहर आ कर उनकी मदद देश के दूतावास ने की है। जिले में आते ही जिला प्रशासन की टीम और परिवार के लोगों ने उनका स्वागत किया।
रिपोर्ट-दुर्गेश मिश्र