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मुझे प्रयागराज संगम (Prayagraj Sangam) में 3 बार स्नान करने का अवसर मिला है। प्रयागराज (इलाहाबाद) (Prayagraj (Allahabad)) तो मेरा जाना पहचाना शहर (Familiar City) है। जब भी मैं प्रयागराज गया हूँ, अचंभित होकर लौटा हूँ। इतने सारे लोग, भक्ति और आस्था के लिए यहां त्रिवेणी ‘संगम’ पर एकत्रित होते हैं। यह मानवता का अति पावन महोत्सव (Holy Festival) है, जो सचमुच अद्वितीय है। यूनेस्को (UNESCO) ने कुंभ मेला को मानवता ( Humanity) की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage)के रूप में मान्यता दी है, यह हमारे देश के लिए अति गौरव की बात है।
कुंभ मेला अद्भुत और आश्चर्यजनक था, इसमें सुचारु रूप से बहने वाली हर चीज, आपको यह याद दिलाती है कि ब्रह्माण्ड अपने प्राकृतिक तरीकों से ही चलता है। आम तौर पर लोग पूछते हैं कि वे मेला में क्या कर सकते हैं? मेरी सामान्य सलाह है कि इसके बारे में ज्यादा चिंता न करें। बस वहाँ जाएं और अनुभव को सामान्य रूप से होने दें, लेकिन अगर आप देखना चाहते हैं कि क्या संभव है तो वहाँ बहुत सी ऐसी चीजें भी थी, जिनके बारे में आप सिर्फ सोच सकते हैं।
मेला शब्द मेल से आया है, जिसका अर्थ है, सभा या बैठक। एक दृष्टिकोण यह भी है कि इसे कई अलग अलग लोगों से मिलने का मौका माना जाए, जिनसे आमतौर पर हम नहीं मिल पाते। इस बार प्रयागराज में एक साथ सेवा भाव, दूसरों को मदद करने की एक गहरी भावना, कदम दर कदम दिखाई दी। कुंभ मेला का आकार लुभावना होता है। भले ही यह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन या नासिक में हो। लोग यही सलाह देते हैं कि योजना बनाने के बारे में अधिक चिंता न करें और सबसे पहले अनुभव में लग जाएं। जब कोई करने योग्य मजेदार चीजों के बारे में पूछता है तो सामान्य उत्तर होता है कि जाओ और वहां घटित होने वाली चमत्कारिक घटनाओं को समझो और हो सके तो आत्मसाध करो। यात्रा पर जाने का मुख्य कारण खुद को पूरी तरह पवित्र जल में डुबोना है, जो यात्रा करने वालों के लिए बहुत महत्व रखता है।
कुंभ मेला पवित्र जल स्थानों के पास होता है, जैसे कि प्रयागराज में त्रिवेणी संगम, जहाँ गंगा में यमुना और सरस्वती नदी मिलती है। हरिद्वार में गंगा नदी भूमि से भरे मैदानी इलाकों से आती है। उज्जैन में क्षिप्रा नदी नामक एक छोटा सा जलस्रोत है। नासिक में गोदावरी नदी के किनारे हैं।
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प्रयागराज, एक ऐसा शहर, जो तेजी से बनता है और दो महीने में ही गायब हो जाता है। एक ऐसा शहर, जो करोड़ों लोगों का प्रबंधन कर सकता है। सही ढंग से बनाया और अलग किया जा सकता है। इसमें नदी पर अल्पकालिक पुल (पीपा पुल) बनाना भी शामिल है। कुंभ मेला का पूरा समय आपके लिए पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए विशेष है। लेकिन इस दौरान माघ माह की कुछ तिथियां (दिन) बेहद खास और अतिभाग्यशाली होते हैं। इस समय को शाही स्नान दिवस कहा जाता है।
कुंभ मेला में लगभग 13 वास्तविक अखाड़ा समूह भाग लेता है। सबसे बडे़ अखाड़े को जूना अखाड़ा कहा जाता है। यदि आप किसी विशेष समूह से जुड़े हुए हैं या किसी विशेष महामंडलेश्वर/ संत, महंत से जुड़े हुए हैं तो आपकी स्वाभाविक प्रवृत्ति शाही स्नान की रही होगी। लेकिन चूंकि मैं किसी खास समूह से नहीं था, इसलिए विभिन्न अखाडों में जाकर साधुओं से वार्तालाप किया। प्रयागराज में आश्रमों और अखाडों में उनके मुख्य देवता के लिए बनाए गये मंदिरों का दर्शन किया। लेटे हनुमान जी के पवित्र बंधन को पूजा। अक्षयवट और पाताल पुरी मंदिर में अध्यात्मिक कंपन को महसूस किया। गंगोली शिवाला मंदिर में शांति पूर्ण क्षणों का आनंद लिया और नाग वासुकी मंदिर के आकर्षण से मंत्रमुग्ध हो गया। त्रिवेणी संगम पर शाम की आरती देखी।
कुछ लोकप्रिय स्मृति चिन्ह भी अपने साथ लाया हूँ, रुद्राक्ष, तुलसी और कमल की माला।