स्वामी प्रसाद मौर्य पांच वर्ष तक भाजपा में रहे. वह विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तक भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री थीं. लेकिन इस अवधि में एक बार भी उन्होंने हिन्दुओं की अस्था पर प्रहार नहीं किया. लेकिन फिर दलबदल करते ही वह नए अंदाज में दिखाई देने लगे.
वह मुख्य विपक्षी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. जिस सरकार में रहे उसकी आलोचना के लिए उन्हें मुद्दे नहीं मिलते. लेकिन अपने को चर्चा में बनाये रखने के लिए उन्हें कुछ तो उछल कूद करनी ही थीं. इसलिए कभी रामचरितमानस की चौड़ाई पर प्रलाप करते हैं. कभी हिन्दुओं के मन्दिरों पर निराधार बयान देते हैं.
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हद तब हुई जब उन्होंने हिन्दू धर्म को ही धोखा बता दिया. उनके इस बयान से सपा को व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिए. स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान का सपा में भी अनेक लोगों ने विरोध किया है. उनका बयान सम्पूर्ण हिन्दू समाज को आहत करने वाला है.
रिपोर्ट-डॉ दिलीप अग्निहोत्री