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उप्र पंजाबी अकादमी एवं दर्शनशास्त्र विभाग नवयुग कन्या महाविद्यालय द्वारा ‘राष्ट्रीय चेतना में गुरमत साहित्य का प्रभाव’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी (UP Punjabi Academy) तथा दर्शनशास्त्र विभाग नवयुग कन्या महाविद्यालय (Department of Philosophy, Navyug Kanya Mahavidyalaya) के संयुक्त तत्वावधान में 24 मार्च को ‘राष्ट्रीय चेतना में गुरमत साहित्य का प्रभाव’ (Influence of Gurmat Literature in National Consciousness) विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया I संगोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय (Principal Professor Manjula Upadhyay) ने की I आमंत्रित वक्तागण सेवानिवृत आचार्य डॉ राजेश कुमारी एवं शिक्षाविद डॉ सुधा मिश्रा और आयोजन सचिव विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र मेजर (डॉ) मनमीत कौर सोढ़ी रहीं।

संगोष्ठी में मेजर मनमीत कौर सोढ़ी ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना किसी भी राष्ट्र की एकता अखंडता और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गुरमत साहित्य का मुख्य उद्देश्य सभी को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना और उन्हें आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से सशक्त बनाना है I सोढ़ी ने कहा कि गुरमत साहित्य की धार्मिक और नैतिक शिक्षाएं न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन करती हैं बल्कि समाज में न्याय, समानता और राष्ट्रीय चेतना को भी प्रोत्साहित करती हैं I गुरमत साहित्य ने भारतीय समाज में एकता साहस और सेवा की भावना को मजबूत किया जो एक सशक्त और प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है।

मेजर सोढ़ी ने कहा कि गुरु नानक देव के त्रिसूत्रीय सिद्धांत नाम जपो, किरत करो और वंड छको (अर्थात बांट कर खाना) के संदेश से समाज में स्वावलंबन श्रम की महत्व और जरूरतमंदों की सहायता की भावना को बढ़ावा मिलता है I ‘सरबत का भला’ वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति का समर्थन करता है I गुरमति साहित्य में जिन मानवीय मूल्यों की अभिव्यंजना हुई है उनका सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, वैज्ञानिक और सदाचारी दृष्टिकोण से सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक व युगों- युगों तक मानवता का मार्ग प्रशस्त करने वाले हैं।

डा सुधा मिश्रा ने बुल्ले शाह की पंक्तियों ‘मस्जिद ढा दे मंदिर ढा दे ढा दे जो कछु ढेंगा, पर किसी का दिल ना ढा दे रब दिला बिच रहंदा’ से अपनी बात प्रारंभ करते हुए कहा कि यदि हम यह बात समझ लें कि ईश्वर सबके दिलों में वास करता है तो कोई मतभेद नहीं रहेगा। हमारे सभी भक्त कवियों ने भक्तिकाल को स्वर्ण युग बनाया। नानकदेव ने जिन आदर्शों की स्थापना की पूरा देश उन आदर्शों पर चला।गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा था कि जब कोई बात ना सुने तो देश की रक्षा के लिए तलवार उठानी चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरमति साहित्य में कर्म, सामाजिक न्याय और समरसता पर बल दिया गया है।

डा राजेश कुमारी ने कहा कि वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या है, देश को एकता के सूत्र में बांधे रखने की। इसके लिए हमें गुरमति साहित्य को पढ़ना चाहिए और अपने जीवन में आचरण करना चाहिए। गुरुनानक जी ने कबीर, नानक, रविदास, रामानंद, शेख फरीद, सूरदास और नामदेव आदि की पंक्तियों एवं अपनी एक स्वरचित कविता के द्वारा मजबूत राष्ट्र के निर्माण की बात कही थी।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्या प्रो मंजुला उपाध्याय ने कहा कि सभी धर्मों में मनुष्य के कल्याण की बात कही गई है। हमारे महापुरुषों ने हमेशा समन्वय की बात कही है I वर्तमान समय की विसंगतियां अलगाववाद और भ्रष्टाचार को समाज से हटाने के लिए गुरमत साहित्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की सामर्थ रखता है I राष्ट्र की एकता,अखंडता को बनाए रखने के लिए हमें व्यापक दृष्टिकोण से समस्त धर्मों की अच्छी बातों से शिक्षा लेने की आवश्यकता है जो मानवता को सकारात्मक दिशा की ओर ले जा सके और एक बेहतर समाज की रचना करने में अपनी भूमिका निभा सके I

संगोष्ठी का संचालन डा अपूर्वा अवस्थी ने किया। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में प्रवक्ताएं एवं छात्राएं उपस्थित रही I कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन एवं मां सरस्वती के गायन से हुआ I आमंत्रित वक्ताओं एवं आयोजन सचिव का सम्मान अंग वस्त्र एवं प्रशस्ति चिन्ह प्रदान कर किया गया। राष्ट्रगान और भारत माता की जय के उद्घोष के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।

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