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कांग्रेस के 138वें स्थापना दिवस पर पार्टी के विभिन्न पड़ाव

• गांधी परिवार से इतर पूर्ण कालिक अध्यक्ष का चुनाव

• राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा

• कांग्रेस की नीति और नियति है बिखराववाद

       दया शंकर चौधरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कांग्रेस को एक परिवार की पार्टी बताते हुए कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी प्रियंका और राहुल गांधी को अनुभवहीन बताते हुए कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं। ऐसा लगता है कि मोदी का ये नारा अब सच साबित हो रहा है। कांग्रेस की नीति और नियत का आलम ये है की तमाम वरिष्ठ कांग्रेसियों का एक तबका देश की सबसे पुरानी पार्टी के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए पार्टी हाई कमान को नसीहतें दे रहा है। बावजूद इसके पार्टी नेतृत्व इस ओर कोई ध्यान न देते हुए अपने पुराने पैटर्न पर ही कायम है। कांग्रेस की अलग-अलग राज्य सरकारों में एक के बाद दूसरा संकट सिर उठा रहा है। पंजाब में नए मुख्यमंत्री और कैबिनेट में नए मंत्रियों की नियुक्ति के बाद पंजाब कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे ने तो मुश्किलें बढ़ाई ही हैं, राजस्थान में भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट में मतभेद के चलते नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। बताते चलें कि पिछले साल कई हफ्तों तक राजस्थान सरकार पर संकट के बादल छाए रहे थे। सचिन पायलट के खेमे ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला था। गांधी परिवार के हस्तक्षेप के बाद किसी तरह ये मामला सुलझ पाया था। फिलहाल संकट की सुगबुगाहट के बीच राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मामले को सुलझाने के लिए सचिन पायलट और अशोक गहलोत के संपर्क में हैं।

कांग्रेस के इतिहास को यदि देखा जाए तो भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों में शुमार कांग्रेस का गठन 28 दिसंबर 1885 को हुआ था। इसकी स्थापना एक अंग्रेज ‘एओ ह्यूम’ (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य) ने की थी। दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा भी इसके संस्थापकों में शामिल थे। संगठन का पहला अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी को बनाया गया था। उस समय कांग्रेस के गठन का मुख्‍य उद्देश्य भारत की आजादी था, लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात यह भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। हालांकि यह बात और है कि आजादी के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के गठन का उद्देश्य पूरा हो चुका है, अत: इसे समाप्त कर देना चाहिए, किंतु ऐसा नहीं हुआ। फिलहाल कांग्रेस एक बार फिर संकट के दौर से गुजर रही है। गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेता पार्टी की नीतियों और नेतृत्व को लेकर मुखर हो रहे हैं और कांग्रेस को छोड़ कर जा चुके हैं। यूं तो कांग्रेस कई बार टूटी है, फिर से खड़ी भी हुई है। एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस टूट सकती है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में देखें तो कांग्रेस अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। सबसे आखिरी झटका कांग्रेस को दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिया था, जिनके एक फैसले से मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस चारों खाने चित हो गई। हालांकि कांग्रेस के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। अपनी स्थापना के कुछ समय बाद से ही पार्टी में तोड़फोड़ का सिलसिला लगातार जारी है।

आजादी से पहले ही कांग्रेस दो बार टूट चुकी थी। 1923 में सीआर दास और मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी का गठन किया था। 1939 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सार्दुलसिंह और शील भद्र के साथ मिलकर अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक का निर्माण किया। आजादी के बाद कांग्रेस से टूटकर लगभग 70 दल बन चुके हैं। इनमें से कई खत्म हो चुके हैं, जबकि कुछ आज भी अस्तित्व में हैं। आजादी के बाद पहली कांग्रेस को 1951 में टूट का सामना करना पड़ा, जब जेबी कृपलानी ने अलग होकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और एनजी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी बनाई। सौराष्ट्र खेदुत संघ भी इसी साल बनी। 1956 में सी. राजगोपालाचारी ने अलग होकर इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई। 1959 में बिहार, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा में कांग्रेस टूट गई। यह सिलसिला लगातार जारी रहा और 1964 में केएम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस बनाई। 1967 में चौधरी चरणसिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल बनाया। बाद में इन्होंने लोकदल के नाम से पार्टी बनाई। चौधरी चरण सिंह कुछ समय के लिए भारत के प्रधानमंत्री भी रहे।

1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने विपक्ष का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया था। एकतरफा बहुमत के साथ राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन उनकी ही सरकार में रक्षामंत्री रहे वीपी सिंह ने बगावत का झंडा बुलंद किया और कांग्रेस को 1998 में सत्ता से बाहर होना पड़ा। वीपी सिंह ने कांग्रेस से बाहर होकर जनमोर्चा नाम से नया दल बनाया और बोफोर्स मुद्दे के चलते वे भाजपा और वामपंथी दलों की बैसाखी के सहारे प्रधानमंत्री बने। बाद में इसी जनमोर्चा से टूटकर जनता दल, जनता दल (यू), राजद, जद (एस), सपा आदि दल बने। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक पार्टी से टूटने वाले नेताओं और उनके द्वारा बनाई गई पार्टियों की फेहरिस्त काफी लंबी है। कुछ पार्टियां काल के गाल में समा गईं, वहीं कुछ का अस्तित्व आज भी बरकरार है। इनमें पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस आंध्रप्रदेश में वायएसआर कांग्रेस, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), छत्तीसगढ़ में स्व अजीत जोगी की जनता कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजू पटनायक पहले कांग्रेस में थे फिर जनता दल में शामिल हुए बाद में ओडिशा में बीजद नाम से नया दल बना। वर्तमान में बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक राज्य के मुख्‍यमंत्री हैं।चौधरी चरणसिंह का लोकदल, जो कि राष्ट्रीय लोकदल के नाम से जिंदा है, और भी छोटे-मोटे दल हैं जिनका असर नहीं के बराबर है।

कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले नेताओं की सूची भी काफी लंबी है, लेकिन इनमें से कुछ देर-सबेर कांग्रेस में ही लौट आए, कुछ ने अपना अलग वजूद कायम किया। प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया, नारायणदत्त तिवारी, पी. चिदंबरम, तारिक अनवर ऐसे कुछ प्रमुख नाम हैं, जो कांग्रेस पार्टी छोड़कर तो गए लेकिन बाहर अपेक्षा के अनुरूप सफल नहीं हो पाए और फिर कांग्रेस में ही लौट आए। इसके उलट ममता बनर्जी, शरद पवार, जगन मोहन रेड्‍डी, मुफ्ती मोहम्मद सईद ऐसे नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने कांग्रेस से बाहर जाकर अपना अलग वजूद कायम किया। ममता बनर्जी (टीएमसी) पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री हैं, जगन मोहन रेड्‍डी (वायएसआर कांग्रेस) आंध्रप्रदेश के मुख्‍यमंत्री हैं, वहीं शरद पवार की पार्टी महाराष्ट्र की ‍शिवसेना नीत सरकार में शामिल रह चुकी है। सईद भी कश्मीर के मुख्यमंत्री बने, बाद में उनकी बेटी महबूबा भी मुख्‍यमंत्री बनीं। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्‍यमंत्री रहे स्व. अजीत जोगी का नाम भी ऐसे ही नेताओं में शुमार है, लेकिन वे कांग्रेस से अलग होकर कुछ खास नहीं कर पाए। आज भी जोगी की पार्टी अस्तित्व में है और उनके निधन के बाद उनकी पत्नी रेणु जोगी और बेटा अमित जोगी पार्टी को चला रहे हैं।

आजादी के बाद से लेकर 2014 तक 16 आम चुनावों में से कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत हासिल किया, जबकि 4 बार सत्तारुढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया। कांग्रेस भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक समय (करीब 55 वर्ष) तक सत्ता में रही। पहले चुनाव में कांग्रेस ने 364 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया था, लेकिन 16वीं लोकसभा में यही पार्टी 44 सीटों पर सिमट गई, जबकि 17वीं लोकसभा में स्थिति में मामूली सुधार हुआ और यह संख्या बढ़कर 51 तक पहुंच गई। इस चुनाव में तो कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका अमेठी में लगा, जहां राहुल गांधी भाजपा की स्मृति ईरानी के खिलाफ चुनाव हार गए। सोनिया गांधी द्वारा अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद राहुल गांधी कुछ समय तक पार्टी के अध्यक्ष रहे, लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली और उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनाई गईं, फिलहाल मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष हैं। इनसे पहले पंडित जवाहर नेहरू, कामराज, नीलम संजीव रेड्‍डी, इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहराव, सीताराम केसरी, राजीव गांधी आदि दिग्गज नेता अध्यक्ष रह चुके हैं। इस पार्टी को देश में 7 प्रधानमंत्री देने का श्रेय जाता है। इनमें पंडित नेहरू, गुलजारीलाल नंदा (कार्यवाहक प्रधानमंत्री), लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिंहराव और मनमोहन सिंह हैं। मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक कांग्रेस नीत यूपीए की गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था। कांग्रेस पार्टी के दामन पर 1975 में देश में आपातकाल लगाने का दाग भी लग चुका है। उस समय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं।

भारत जोड़ों यात्रा की जगह कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालनी चाहिए: गुलाम नबी आजाद

वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने पिछले दिनों अगस्त में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। गुलाम नबी आजाद ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से लेकर सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। आजाद ने कांग्रेस की निवर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी को 5 पन्नों का इस्तीफा भेजा है।

सोनिया गांधी को भेजे गए इस्तीफे में गुलाम नबी आजाद ने लिखा है कि “बड़े अफसोस और बेहद भावुक दिल के साथ मैंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपना आधा सदी पुराना नाता तोड़ने का फैसला किया है।” गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि भारत जोड़ों यात्रा की जगह कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालनी चाहिए।

लंबे वक्त से नाराज थे आजाद

बताते चलें कि गुलाम नबी आजाद लंबे वक्त से कांग्रेस से नाराज थे। वे कांग्रेस के नाराज नेताओं के जी-23 गुट में भी शामिल थे। जी-23 गुट कांग्रेस में लगातार कई बदलाव की मांग करता रहा है। इससे पहले कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। उन्हें सपा ने राज्यसभा भी भेजा है। गुलाम नबी आजाद की नाराजगी तब सामने आई थी, जब उन्होंने अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के कुछ घंटों बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था. सोनिया गांधी चाहती थीं कि कांग्रेस जम्मू कश्मीर में आजाद के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़े. इसलिए उन्हें चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन गुलाम नबी ने पद मिलने के कुछ घंटों के बाद ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से उन्हें लेकर राजनीतिक गलियारों में तमाम कयास लगाए जा रहे थे।

कई मुद्दों को लेकर गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस के मतभेद आते रहे हैं। फिर चाहे वो अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर बात रही हो या फिर कुछ मुद्दों पर पार्टी के स्टैंड पर। गुलाम नबी आजाद तो उस जी 23 का भी हिस्सा हैं जो पार्टी में कई बडे़ परिवर्तन की पैरवी करता रहा है। गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफा ऐसे वक्त पर दिया, जब कांग्रेस ने हाल ही में कुछ समय के लिए अध्यक्ष पद के लिए चुनाव टाल दिया था। आजाद से पहले कपिल सिब्बल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जयवीर शेरगिल, जितिन प्रसाद, सुनील जाखड़, कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेता भी पार्टी छोड़ चुके हैं।

ऐसा है आजाद का राजनीतिक करियर

गुलाम नबी आजाद का जन्म 7 मार्च 1949 को जम्मू कश्मीर के डोडा में हुआ। उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी से M.Sc किया है। वे 1970 के दशक से कांग्रेस से जुड़े। वे 1975 में जम्मू कश्मीर यूथ कांग्रेस के अध्यद्यक्ष बने थे। 1980 में उन्होंने यूथ कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। वे पहली बार 1980 में महाराष्ट्र के वाशिम से लोकसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद उन्हें 1982 में केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। वे 1984 में भी इसी सीट से जीते। आजाद 1990-1996 तक महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद रहे। वे नरसिम्हा राव की सरकार में भी मंत्री रहे। वे 1996 से 2006 तक जम्मू कश्मीर से राज्यसभा पहुंचे। वे 2005 में जम्मू कश्मीर के सीएम भी बने।हालांकि, 2008 में पीडीपी ने कांग्रेस से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद आजाद की सरकार गिर गई थी। आजाद मनमोहन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं। 2014 में आजाद को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया था। 2015 में आजाद को जम्मू कश्मीर से राज्यसभा भेजा गया था। कांग्रेस से बीजेपी में आए शहजाद पूनावाला ने भी अपनी पुरानी पार्टी पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, कांग्रेस दरबार कभी भी किसी ‘आजाद’ को  बर्दाश्त नहीं कर सकता, सिर्फ गुलाम चाहता है। 5 साल पहले मैंने कहा था कि कांग्रेस शुद्ध परिवार प्रदर्शन से ऊपर है यहां कोई आंतरिक लोकतंत्र नहीं है, कोई जवाबदेही नहीं, चाटुकारिता को योग्यता से ऊपर रखा जाता है। आज मैं फिर से सही साबित हुआ हूं।

कांग्रेस के 138वें स्थापना दिवस के मौके पर बोले मल्लिकार्जुन खड़गे: लोकतंत्र को बचाने के लिए सबको मिलकर लड़ना होगा

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार (28 दिसंबर, 2022) को पार्टी के 138वें स्थापना दिवस के मौके पर मुंबई में भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा। खड़गे ने कहा कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से केंद्र सरकार को बहुत दिक्कत है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा देश में उनके (बीजेपी) द्वारा बनाए जा रहे नफरत के माहौल के खिलाफ लड़ने का एक प्रयास है।

उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को एक नोटिस भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि इस तरह के आयोजन कोविड-19 के कारण नहीं होने चाहिए, लेकिन पीएम कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि बीजेपी के पास एक बहुत बड़ी वाशिंग मशीन है, जो बड़े से बड़ा दाग भी साफ कर सकती है। उन्होंने कहा कि जब लोगों को इस मशीन में डाला जाता है तो वे पाक-साफ निकलते हैं। खड़गे ने कहा कि लोकतंत्र को बचाने के लिए हम सबको मिलकर लड़ना होगा।

सोनिया-राहुल की अगुवाई में 137 साल बाद कांग्रेस का वोट शेयर 45 प्रतिशत से महज 19.5 प्रतिशत पर पहुँचा

खड़गे ने कहा कि देश की मूल भावना और सिद्धांतों से पर लगातार प्रहार किया जा रहा है। देशभर में नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है, जबकि जनता महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है, लेकिन सरकार का इस तरफ जरा भी ध्यान नहीं है। खड़गे ने लोगों से भारत जोड़ो यात्रा में ज्यादा से ज्यादा संख्या में शामिल होने की अपील की है। वहीं कांग्रेस पार्टी ने स्थापना दिवस के अवसर पर अपने आधिकारिक हैंडल से एक वीडियो साझा किया है। जिसमें कांग्रेस के संघर्षों के इतिहास और कैसे यह दशकों बाद भी कांग्रेस आज मौजूद है इस बारे में बताया गया है। कांग्रेस की विचारधारा कल देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी और आज भी बहुत महत्वपूर्ण है कल इसी विचारधारा के बल पर हमने अंग्रेजों को भगाकर अपने अधिकारों की लड़ाई जीती थी, आज भी इसी विचारधारा के बल पर हम देश से अन्याय और नफरत का खात्मा करेंगे।

बताते चलें कि इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना 137 साल पहले 28 दिसंबर 1885 को तब के बॉम्बे और आज के मुंबई शहर में हुई थी। तब से लेकर आज तक 28 दिसंबर को पार्टी अपना फाउंडेशन डे मनाती है।सोनिया-राहुल की अगुवाई में 137 साल में कांग्रेस, 45 प्रतिशत से महज 19.5 प्रतिशत वोट शेयर पर पहुँच गयी है।

भारत जोड़ो यात्रा में माँ और बेटे का भावुक मिलन

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजधानी में दाखिल हो गई है। 7 सितंबर को दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से शुरू हुई इस यात्रा ने 24 दिसम्बर शाम तक तीन हजार किलोमीटर का सफर पूरा कर लिया था। दिल्ली में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी राहुल की यात्रा में शामिल हुए। इसी बीच राहुल गांधी ने मां सोनिया गांधी के साथ सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर करते हुए लिखा, जो मोहब्बत इनसे मिली है, वही देश में बांट रहा हूं। तस्वीरों में राहुल गांधी मां सोनिया को गले लगाते दिख रहे हैं। कोरोना को ध्यान में रखते हुए सोनिया गांधी ने चेहरे पर मास्क पहना हुआ है।

दरअसल, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा भी दिल्ली में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए। ये सभी नेता राहुल के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते हुए नजर आए। यह दूसरी बार है, जब पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी इस यात्रा में शामिल हुईं हैं। इसके पहले सोनिया गांधी अक्तूबर में पहली बार कर्नाटक में भारत जोड़े यात्रा में शामिल हुई थीं। वहीं कुछ दिनों पहले दोनों मां-बेटे की मुलाकात राजस्थान में हुई थी। तब सोनिया गांधी आठ दिसंबर को अपना 76वां जन्मदिन मनाने के लिए रणथंभौर नेशनल पार्क पहुंची थीं। तब राहुल भी भारत जोड़ो यात्रा से समय निकालकर अपनी मां के साथ उनके जन्मदिन पर रणथंभौर नेशनल पार्क में सफारी का आनंद लेने पहुंचे थे। इसी पर रणथंभौर नेशनल पार्क ने सोनिया और राहुल गांधी की सफारी का आनंद लेते हुए एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पोस्ट की थी।

नई दिल्ली में जब राहुल गांधी की मां सोनिया और बहन प्रियंका से मुलाकात हुई, तो उन्होंने सबसे पहले मां और बहन को गले लगाकर उनका हाल जाना। इसके बाद सोनिया गांधी ने राहुल गांधी से ठंड में सिर्फ टी-शर्ट पहनने पर सवाल किया। इसके जवाब में राहुल ने मां को प्यार से गले लगा लिया। इस दौरान सोनिया गांधी थोड़ी देर के लिए भावुक भी हो गईं मां सोनिया को भावुक देख राहुल उनका हाथ पकड़कर आगे बढ़ गए। इसके बाद कुछ मिनट दोनों नेताओं के बीच चर्चा भी हुई। एक कांग्रेस नेता ने बताया कि जब अक्तूबर में भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में थी, तब कांग्रेस नेता सोनिया गांधी इस यात्रा में शामिल हुईं थीं। इस दौरान जब वे जब राहुल से मिलीं तो उन्होंने हंसते हुए राहुल की दाढ़ी की तरफ इशारा करते हुए पूछा था कि यह कब कटेगी या कब तक ऐसे ही बढ़ती रहेगी। इस पर राहुल ने हाथों का इशारा करते हुए जवाब दिया कि अभी कुछ कह नहीं सकते। इसके बाद दोनों मां-बेटे हंसकर गले मिले और यात्रा के लिए साथ चल दिए।

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