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चार वर्ष में 39 किशोरियों को “बालिकावधू” बनने से बचाया

• एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार जिले में बाल विवाह पर लगा अंकुश

• जागरुकता व त्वरित कार्रवाई से बाल विवाह रोकने में मिली बड़ी सफलता

वाराणसी। चोलापुर के दानगंज में उस रोज 15 वर्षीय किशोरी के व्याह रचाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। मंदिर में बनाये गये लग्न मण्डप में किशोरी को बस सात फेरे लेने शेष रह गये थे तभी बाल संरक्षण इकाई व चाइल्ड लाइन की टीम पुलिस के साथ वहां पहुंच गयी। टीम को मंदिर की ओर आता देख दूल्हा और बाराती वहां से भाग निकले। एक गुमनाम सूचना पर हुई इस फौरी कार्रवाई का नतीजा रहा कि वह किशोरी ‘बालिकावधू’ बनने से बाल-बाल बच गयी।

केस-2 दुर्गाकुण्ड के मलिन बस्ती में 13 वर्षीय किशोरी के विवाह में हल्दी की रस्म हो रही थी। पड़ोस की कुछ जागरूक महिलाओं ने इसकी सूचना टोलफ्री नम्बर 1098 पर दी। सूचना मिलने के फौरन बाद सक्रीय हुई बाल संरक्षण इकाई, चाइल्ड लाइन की टीम पुलिस के साथ वहां पहुंची और बाल विवाह को रोकवा दिया। यह दो घटनाएं तो महज एक नजीर हैं। बाल विवाह के खिलाफ समाज में आयी जागरूकता और नाबालिग लड़कियों की शादी के प्रयास के खिलाफ की गयी त्वरित कार्रवाई का ही नतीजा है कि अब इसके सार्थक परिणाम आने लगे हैं।

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नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) -5 की रिपोर्ट के अनुसार जिले में बाल विवाह पर काफी तेजी से अंकुश लगा है। वर्ष 2015-16 में आई नेशनल फेमली हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट में 18 वर्ष से कम उम्र की किशोरियों की शादी का ग्राफ जहां 19.9 था वहीं 2020-21 में आयी नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा घटकर 10.4 हो गया। इससे साफ है कि जिले में बाल विवाह पर काफी हद तक लगाम लग चुका है।

जिला प्रोबेशन अधिकारी सुधाकर शरण पाण्डेय की मानें तो इस बदलाव का श्रेय प्रदेश सरकार की महिला कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ मिशन शक्ति जैसे अभियानों को जाता है। सरकार की मंशा के अनुरूप इन अभियानों की देन है कि बाल विवाह जैसी कुरीति पर कई तरफ से प्रहार हो रहा है। एक ओर इस दिशा में समाज को तो जागरूक किया जा रहा है वहीं कन्या सुमंगला जैसी योजनाओं की मदद से शिक्षित होकर बेटियां अब खुद भी बाल विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं। समाज में आई इस जागरूकता का ही नतीजा है कि बाल विवाह के गुपचुप प्रयास की भी सूचना अब आसानी से मिल जाती है। ऐसी ही सूचनाओं पर की गयी त्वरित कार्रवाई ने ही बाल विवाह पर रोक लगाया है।

चार वर्ष में रोका 39 बाल विवाह

जिला बाल संरक्षण इकाई की संरक्षण अधिकारी निरुपमा सिंह बताती है कि जिला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति, विशेष किशोर पुलिस इकाई, चाइल्ड लाइन, संबंधित थाने की पुलिस तथा स्वयं सेवी संस्थाओं के संयुक्त प्रयास का नतीजा है कि बीते चार वर्ष में बाल विवाह रोकने के 39 मामलों में सफलता मिली है।

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उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में 12, 2020-21 में 10, 2021-22 में 11 व वर्ष 2022-23 में अब तक बाल विवाह की छह कोशिशों को नाकाम किया गया है। बाल विवाह रोकने के बाद उनके अभिभावकों ने बाल कल्याण समिति के समक्ष शपथ पत्र दाखिल किया है कि वह अपने बच्चों की शादी तभी करेंगे जब वह बालिग हो जाएंगे। वह बताती है कि बाल विवाह रोकने भर से हमारा काम खत्म नहीं होता है। कार्रवाई के बाद हम फालोअप भी करते रहते हैं। हम इस बात पर भी नजर रखते हैं कि कहीं ऐसी कोशिश पुनः तो नहीं की जा रही है।

क्या है बाल विवाह

संरक्षण अधिकारी निरूपमा सिंह बताती है कि किसी भी बालक का विवाह 21 साल एवं बालिका का 18 साल के होने के बाद ही किया जा सकता है।

यदि कोई भी व्यक्ति इस निर्धारित उम्र से काम उम्र में शादी करता है तो उसे बाल विवाह करार दिया जायेगा। भले ही वह सहमति से ही क्यों न किया गया हो। सहमति से किया गया बाल विवाह भी कानूनी रूप से वैध नहीं होता। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम -2006 के अंतर्गत बाल विवाह होने पर दो वर्ष की सजा अथवा एक लाख का जुर्माना अथवा दोनों का प्राविधान है।

यहां दें बाल विवाह की सूचना

चाइल्ड लाइन के निदेशक मजू मैथ्यू कहते है कि यदि आप आस-पड़ोस में कहीं कोई बाल विवाह करने का प्रयास कर रहा हो तो इसकी सूचना 1098 पर दें। यह सूचना 1098 के आलावा,181 महिला हेल्प लाइन, जिला प्रोबेशन अधिकारी कार्यालय, जिला बाल संरक्षण इकाई तथा बाल कल्याण समिति को भी दी जा सकती। सूचना पर त्वरित कार्रवाई की जाती है। वह बताते है कि बाल विवाह की सूचना देने वाले का नाम पूरी तरह गोपनीय रखा जाता है।

रिपोर्ट-संजय गुप्ता

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