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वट सावित्री व्रत कथा, पूजा विधान

लखनऊ (शाश्वत तिवारी)जेष्ठ माह की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) रखा जाता है, इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष (बरगद) की पूजा करती हैं। मान्यता है कि लिस्ट अमावस्या के दिन ही सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे, तभी से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए हर वर्ष जेष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री पूजा रखती हैं। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। उसकी परिक्रमा करती हैं और वृक्ष के चारों ओर मंगल धागा यानी कि धागा बांधती हैं।

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पंचांग के मुताबिक इस बार 2023 में बरसात पूजा 19 मई यानी कि शुक्रवार को है और इसका शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 19 मिनट से सुबह के 10 बजकर 42 मिनट तक है। जिसके बीच के काल में महिलाएं बरगद का पूजन कर सकती हैं।

वट सावित्री व्रत Vat Savitri Vrat

वट सावित्री पूजा की विधि: यह व्रत सिर्फ सुहागिन महिलाओं के लिए होता है, जिसमें सुहागिन महिलाएं सूर्य उगने से पहले जाकर स्नान करती हैं और श्रृंगार करने की साथ इस दिन पीला सिंदूर लगाने की मान्यता है। स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है और इसके बाद बरगद पेड़ के नीचे सावित्री सत्यवान और यमराज की पूजा की जाती है। इसके साथ बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें फूल अक्षत और मिठाई चढ़ाई जाती है। और इसके बाद पेड़ में रक्षा सूत्र बांधकर पेड़ के चारों ओर साथ बार परिक्रमा की जाती है। पति के लंबी उम्र की ओर सुख- शांति का आशीर्वाद मांगा जाता है।

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वहीं वट वृक्ष की पूजा के बाद हाथ में काला चना लेकर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी जाती है और कथा सुनाने वाले पंडित को इसके बाद दान-दक्षिणा दिया जाता है। दान के रुप में वस्त्र पैसे और चने भी दिए जाते हैं।

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