त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यं दैवो न जानाति, कुतो मनुष्य:
भले हर औरत ऐसी नहीं होती पर अधिकतर महिलाएं ऐसी ही होती है। माँएं बेटी को हर तरह के संस्कार देगी, हर काम सिखाएगी पर बेटी को ये सीखाया नहीं जाता कि अपनी सास को माँ समझना, जेठानी को बड़ी बहन और ननद को सहेली समझना। इससे विपरित ससुराल को कालापानी की सज़ा बताकर अपनी बेटी को यही सिखाया जाता है कि सास से दबना नहीं, सारा काम अकेले मत ढ़ोना, जेठानी का हुकूम बिलकुल मत मानना और ननद के नखरें तो बिलकुल मत उठाना।
ना हि सास अपनी बहू को बेटी समझने की शुरुआत करती है। बहू कामकाजी है तो कितनी सास ऑफ़िस से थकीहारी लौटी बहू को चाय पिलाती है, या गर्म रोटी बनाकर परोसती है? या कौनसी जेठानी देवरानी को छोटी बहन समझकर हर काम में हाथ बटाती है, ना हि ननद भाभी को वो सम्मान देती है। बहुत ही कम स्त्रियों में ये समझ होती है। और औरतों की यही कमी परिवार को बांटने का काम करती है।
पर गोसिप में माहिर स्त्रियाँ एक मौका नहीं छोड़ती अपने आस-पास बसी औरतों को नीचा दिखाने का। अक्सर किटी पार्टियों में एक स्त्री दूसरी स्त्री को नीचा दिखाने का काम ही करती है। स्टेटस से लेकर पहनावा, पसंद और रहन-सहन पर टिप्पणी करते खुद को सुंदर, सक्षम और समझदार दिखाने की स्त्रियों में होड़ लगी रहती है। मर्द इस तरह की हरकतें बहुत कम करते होंगे। परिवार की नींव होती है स्त्रियां। हर माँ का फ़र्ज़ है अपनी बेटी को ये सीखाना की तुम्हारे जीवन में आनेवाली हर स्त्री का सम्मान करना। जब तुम सामने वाले को मान दोगी, अच्छा व्यवहार रखोगी तभी तुम्हें सम्मान मिलेगा।
पहले हर स्त्री को एक दूसरे को समझने की जरूरत है, एक दूसरे को मान देते साथ और सहारा देने की जरूरत है। चाहे दोस्ती हो, परिवार हो या समाज स्त्री जब दूसरी स्त्री का सम्मान करना सीख जाएगी तब विभक्त परिवार एक होंगे, अखंड परिवार की शुरुआत होगी, अपनेपन और शांति सभर समाज का गठन होगा। सिर्फ़ मर्दों से ये आशा न रखें की मर्द हर औरत का सम्मान करें स्त्रियों से भी ये अपेक्षा रखी जाएँ। हर बेटी को बचपन से ही ये सिखाया जाए तभी सदियों से चली आ रही परंपराएं टूटेगी। सास बहू के संबंध माँ बेटी जैसे बनेंगे और इर्ष्या भाव का शमन होते ही समाज संस्कारवान दिखेगा।