लॉकडाउन की घोषणा के बाद से दिल्ली में अन्य राज्यों के प्रवासी मजदूरों में एक किस्म की बेचैनी और डर का भाव साफ देखा जा सकता है। आवागमन के साधन बंद होने से इनकी चिंता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है, जिसे केंद्र सरकार समेत दिल्ली और यूपी की सरकार के तमाम आश्वासन भी कम नहीं कर पा रहे हैं।
यही वजह है कि लोग पैदल ही सैकड़ों दूर अपने-अपने घरों की ओर निकल लिए हैं। हालांकि अब उन्हें बसें मुहैया कराने का काम शुरू हो गया है। शनिवार सुबह इसी बात की सूचना मिलते ही गाजीपुर और एनएच-24 पर हजारों की संख्या में भीड़ अल सुबह से मौजूद थी।
दिल्ली, गाजियाबाद में भी प्रवासी मजदूरों की भीड़ उमड़ पड़ी है। NH-24 पर तो कुछ मजदूरों की जमात पैदल घरों की ओर कूच करते देखी गई। वे लॉकडाउन के बाद आवागमन के साधन बंद होने से लोग पैदल जाने को मजबूर हैं और अचानक रोजगार छिन जाने के बाद मजदूरों के पास घर वापसी के सिवा चारा नहीं बचा है।
एक लिहाज से देखें तो लॉकडाउन के कारण अचानक रोजगार छिन जाने के बाद मजदूरों के पास घर वापसी के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है। ऐसे शनिवार को गाजीपुर बॉर्डर से लोगों को उनके गंतव्य स्थान तक छोड़ने के लिए बस चलाई जा रही हैं। बसों को देख लोगों में बस के अंदर घुसने को लेकर अफरा-तफरी का माहौल है।
प्रशासन लगातार उन्हें आश्वस्त कर रहा है कि संयम रखें और बसों की भी व्यवस्था की जाएगी। सुबह से बड़ी तादाद में लोग यहां मौजूद हैं। गाजीपुर बॉर्डर पर लगातार बस लगाई जा रही हैं। हर बस में भी किसी तरह घुसने की कोशिश कर रहे लोगों में धक्का-मुक्की जारी है। यहां भी लोगों की हुजूम मौजूद है।
बता दें लॉकडाउन में फंसे दिल्ली-राजस्थान और हरियाणा आदि से यूपी और बिहार जाने वाले मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए शुक्रवार को यूपी रोडवेज ने 16 घंटों के दौरान 86 बसें चलाईं। हालांकि इस दौरान यात्रियों की भीड़ और सोशल डिस्टेंस के नियम का पालन न होने के कारण रोडवेज व जिला प्रशासन की किरकिरी भी हुई।
इसके बाद सरकार ने अगले आदेश तक रोडवेज की बसों के संचालन पर रोक लगा दी। बसों का संचालन रुकने से शुक्रवार देर शाम लाल कुआं, कौशांबी व यूपी गेट पर बड़ी संख्या में यात्री फंस गए। लोग बसों के इंतजार में रात तक खड़े रहे। वहीं बसें न मिलने से बड़ी संख्या में यात्री पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े।
राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर ऐसा ही एक परिवार मिला जो उत्तर प्रदेश के बदायूं जा रहा था। परिवार का मुखिया अपनी पत्नी और बच्चों को बिठाया, सामान रखे और रिक्शा खींचते हुए निकल पड़े 440 किमी की दूरी तय करने। उन्होंने बताया कि बदांयू 400 किमी है और वहां से भी उनका गांव 40 किमी दूर है।
उनसे पूछा गया कि क्या बच्चों ने खाना खाया तो बोले, ‘खाना कहां से खाएंगे, पैसे ही नहीं हैं।’ उन्होंने कहा कि घर से निकले थे तो कुछ पूड़ियां बनाकर रख ली थीं, वो खत्म हो गईं। पॉकेट में 10-50 रुपये पड़े हैं, उनसे बिस्किट, नमकीन खिला दूंगा।