लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने कहा है कि पूर्वांचल में विद्युत विभाग के निजीकरण का विरोध हो रहा है। लोकदल पार्टी इस आंदोलन का समर्थन करती है चन्द कॉरपोरेट घरानों को अप्रत्याशित लाभ पहुंचाने के लिये न सिर्फ बिजली बल्कि कोयला, तेल, रेल, बैंक, बीमा, स्वास्थ्य, रक्षा, शिक्षा आदि सहित सम्पूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है। सच्चाई यह है कि केंद्र की सरकार और प्रदेश की सरकार का विकास का मॉडल राष्ट्रीय सम्पत्ति को बेचकर उसे बर्बाद करने का मॉडल है, जो राष्ट्रवाद के नाम पर बढ़-चढ़ कर प्रचारित किया की जा रहा है। जिसका कि अब पूरी तरह भंडाफोड़ हो चुका है।
लोकदल सरकार की इस तरह की निजीकरण की नीति की कड़ी निन्दा करता है। कर्मचारी आन्दोलन को भी इससे विशेषरूप से सावधान रहने की जरूरत है। बिजली क्षेत्र में घाटे का तर्क देकर सरकार द्वारा निजीकरण करने के पीछे एक कारण पावर परचेज घोटाला भी है। बिजली का लागत मूल्य काफी कम होने के बावजूद निजी बिजली उत्पादकों के प्लांट पूर्ण क्षमता पर चलवाकर उच्च दरों पर बिजली खरीदी जाती है तथा सस्ती बिजली पैदा करने वाले सरकारी बिजली उत्पादन केन्द्रों का उत्पादन, थर्मल बैकिंग के नाम पर, प्रतिबन्धित करने व अनुरक्षण हेतु पर्याप्त धन उपलब्ध न कराने की खबरें आती रहती हैं।
गलत और दीर्घकालीन अनुबन्ध के कारण वर्तमान में ₹ 2.44 प्रति यूनिट में उपलब्ध सौर बिजली, गुजरात सरकार को ₹ 15 प्रति यूनिट की दर से अनिवार्यतः खरीदनी पड़ रही है। कॉरपोरेट घरानों को अप्रत्याशित लाभ पहुंचाने के लिये ही इस तरह के अनुबन्धों को सख़्ती से लागू करने हेतु विद्युत संशोधन विधेयक-2020 में ECEA (Electricity Contract Enforcement Authority) का प्राविधान किया गया है।
श्री सिंह ने आरोप लगाया है कि प्रदेश सरकार का यह फैसला हैरानी भरा है कि थर्मल व सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारी मुनाफा कमाने वाले निजी निवेशकों से सार्वजनिक बैंकों द्वारा सरकारी नीति के तहत उपलब्ध कराये गये ऋण की वसूली की प्रभावी व्यवस्था नहीं की जा रही है, जिससे लाखों करोड़ का ऋण बट्टेखाते (एनपीए) में डाला जा रहा है। श्री सिंह ने आरोप लगाया है कि बिजली क्षेत्र में घाटे का तर्क देकर सरकार द्वारा निजीकरण करने के पीछे एक कारण पावर परचेज घोटाला भी है। बिजली का लागत मूल्य काफी कम होने के बावजूद निजी बिजली उत्पादकों के प्लांट पूर्ण क्षमता पर चलवाकर उच्च दरों पर बिजली खरीदी जाती है तथा सस्ती बिजली पैदा करने वाले सरकारी बिजली उत्पादन केन्द्रों का उत्पादन, थर्मल बैकिंग के नाम पर, प्रतिबन्धित करने व अनुरक्षण हेतु पर्याप्त धन उपलब्ध न कराने की खबरें यदाकदा आती रहती हैं।
सरकार का यह फैसला हैरानी भरा है कि थर्मल व सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारी मुनाफा कमाने वाले निजी निवेशकों से सार्वजनिक बैंकों द्वारा सरकारी नीति के तहत उपलब्ध कराये गये ऋण की वसूली की प्रभावी व्यवस्था नहीं की जा रही है, जिससे लाखों करोड़ का ऋण बट्टेखाते (एनपीए) में डाला जा रहा है।
विरुद्ध है तथा मात्र चन्द कॉरपोरेट घरानों को बेतहाशा लाभ पहुंचाने के लिये लिया गया जनविरोधी कदम है। इसलिये बिजली के कामगार संगठनों द्वारा निजीकरण का विरोध राष्ट्रहित में है। अतः लोकदल निजीकरण के विरोध में संगठनों के आंदोलन के निर्णय का पुरजोर समर्थन करता है तथा सरकार से मांग करता है कि हाल ही में लिये गये पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के फैसले को रद्द करे।