मृदुला सिन्हा व राम नाईक दशकों तक भाजपा में सक्रिय रहे। बाद में दोनों लोग राज्यपाल भी बने। मृदुला सिन्हा सदैव राम नाईक को अपना बड़ा भाई मानती रही। इसी रूप में उनको आदर सम्मान देती थी। अंतर यह था कि वह स्वभाविक प्रवत्ति के अनुक्रम साहित्यकार थी। बचपन में भी काव्य की रचना कर देती थी। जबकि राम नाईक अपने को एक्सिडेंटल राइटर मानते है। उन्होंने महाराष्ट्र के प्रतिष्ठित साकल समाचार पत्र के आग्रह पर अपने संस्मरणं लिखे थे। इनका संकलन चरैवेति चरैवेति शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इसके ग्यारह संस्करण प्रकाशित हो चुके है।
हिंदी संस्करण की प्रस्तावना मृदुला सिन्हा ने लिखी थी। इस प्रस्तावना में उनकी साहित्यिक प्रतिभा की पूरी झलक मिलती है। वह पुस्तक के लेखक राम नाईक के व्यक्तित्व कृतित्व व कार्य शैली का कम शब्दों में व्यापक उल्लेख करती है। इसके अलावा भी उनकी इस पुस्तक पर राम नाईक के साथ अनेक बार चर्चा भी होती है। राम नाईक उनका स्मरण करते है। उन्होंने कहा कि गोवा की पूर्व राज्यपाल व भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ महिला नेता श्रीमती मृदुला सिन्हा के निधन से मैं व्यथित हूं। मेरी छोटी बहन चल बसी!”, इन शब्दों में उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने श्रीमती मृदुला सिन्हा के निधन पर शोक जताया।
चालीस वर्षों से भी लंबे समय तक सहयोगी व मित्र रहीं श्रीमती मृदुला सिन्हा की यादें उजागर करते हुए श्री राम नाईक ने कहा,“राजनीती में रहते हुए कुछ चंद सहयोगीयों से ही व्यक्तिगत व पारिवारिक मित्रता होती है। मृदुला जी उनमें अग्रेसर थी। वह एक वरिष्ठ साहित्यिक भी थी। उन्होंने मेरी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’के हिंदी संस्करण की प्रस्तावना लिखी। राज्यपाल पद की व्यस्तता होते हुए भी पांडू लिपि में कई सुधार कर दिए। भारतीय जनता पार्टी की पहली पिढ़ी की वे महिला नेता थी। गोवा राज्यपाल के नाते काम करते हुए फुल या उपहार के बदले वह मात्र फल स्वीकार करती थी। इकठ्ठा फलों को जरुरतमंदों में बाँट कर मृदुला जी ने एक नयी अनुकरणीय परंपरा प्रारंभ की थी। मेरी उन्हें भावभिनी श्रद्धांजलि!
राम नाईक अपने को भले ही एक्सिडेंटल लेखक मानते है। लेकिन मृदुला सिन्हा चरैवेति चरैवेति को सहित्यतिक रूप से उच्च कोटि की मानती थी। इसके लिए वह इस पुस्तक की सराहना करती थी। इसमें उल्लेख है कि किस तरह राम नाईक एक छोटे से गाँव से निकलकर उत्तर प्रदेश जैसे बडे़ प्रदेश की राज्यपाल बने थे। संसद में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत गाये जाने,सांसद निधि की शुरूआत,दिल्ली और मुंबई में सीएनजी, मुंबई का नामकरण एवं महिला सशक्तिकरण हेतु उनके प्रयास आदि पर भी संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ का हिंदी अनुवाद श्रीमती कुमुद संघवी चावरे द्वारा किया गया था। इसकी प्रस्तावना मृदुला सिन्हा ने लिखी थी।