वर्तमान परिस्थियों में संसद के मानसून सत्र का अत्यधिक महत्व था। कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रित हुई है,लेकिन तीसरी लहर की आशंका है। इसके अलावा भी लोकहित के अनेक विषयों पर व्यापक चर्चा आवश्यक थी। लेकिन विपक्ष के हंगामे ने इसकी दिशा ही बदल दी। उसे लगा होगा कि वह सरकार पर दबाब बना लेगा। लेकिन हुआ उल्टा। सरकार अपनी बात रखने में सफल रही। लेकिन विपक्ष के पास मुद्दों का अभाव दिखाई दिया। यह सराहनीय है कि हंगामे के बाद भी सरकार जनहित के प्रयास करती रही।
पहले दिनों में संसद से बारह विधेयक पारित कराये गए। तृणमूल कांग्रेस के एक सासंद ने इस संवैधानिक कार्य का मखौल उड़ाया है। उन्होंने कहा कि सरकार विधेयक पारित करा रहे हैं या पापड़ी चाट बना रही हैं। इन सासंद को यह बताना चाहिए कि उनके हंगामे के बाद दूसरा क्या विकल्प था। सरकार तो चर्चा के लिए तैयार थी। विपक्ष ही भागता रहा। यदि यह पापड़ी चाट जैसा कार्य था तो विपक्ष के हंगामे को क्या कहा जा सकता हैं। तृणमूल सांसद ने गरीब खोमचे वालों का भी अपमान किया है। उनकी जीविका का मजाक बनाया है। जबकि सरकार लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा कर रही है।
विधेयक किसी सरकार का नहीं होता बल्कि जनता के कल्याण के लिए होता है। नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि पापड़ी चाट बनाने की बात करना अपमानजनक बयान है। कागज छीन लेना और उसके टुकड़े कर फेंकना और माफी भी ना मांगना संविधान, संसद व जनता का अपमान है। प्रधानमंत्री ने जुलाईं के महीने में जीएसटी राजस्व में हुईं वृद्धि का भी उल्लेख किया। और अर्थव्यवस्था की बेहतरी के प्रति उम्मीद जताईं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद इसके सुधार की गति में तेजी आईं है। विपक्ष के लिए कुछ लोगों की कथित जासूसी देश की सबसे बड़ी समस्या बन गई। इसके अलावा वह किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन तक सीमित रहा। जबकि यह आंदोलन अब पश्चिम उत्तर प्रदेश तक सीमित एक नेता के समर्थकों का जमावड़ा मात्र बन गया है। उनके ऊपर अनेक किसान नेताओं ने भी गंभीर आरोप लगाए है।
ऐसे आंदोलन पर कोई आरोप लगता है,तो इसे हास्यास्पद रूप में किसानों पर हमला बताया जाता है। ऐसे लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि दिल्ली सीमा व जनतंत्र मन्त्रर में बैठे लोग ही केवल किसान नहीं है। वास्तविक किसान अपने गांवों में है। उनका इस आंदोलन को किसी प्रकार का समर्थन नहीं है। उन्होंने पहले कृषि मंडी पर तीन प्रतिशत खरीद बिचौलिया व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य देखा है। वर्तमान सरकार में तो इन सभी क्षेत्रों में सुधार हुआ है। पंजाब हरियाणा में पहली बार किसानों को उपज की शत प्रतिशत धनराशि उपलब्ध हुई है। विपक्ष ने अपने को ऐसे आंदोलन व कथित जासूसी तक ही सीमित कर लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी था कि विपक्ष तीखे सवाल करे। सरकार उन सभी का जबाब देगी। लेकिन ऐसा हुआ नही। संसद सत्र की शुरुआत के पहले जासूसी को लेकर अपुष्ट मसला सामने आता है। विपक्ष ने इसी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय बना दिया।
हंगामे से ही मानसून सत्र शुरू हुआ। यह पिछले कई दिन से जारी है। विपक्ष ने यह भी नहीं सोचा कि इससे जन जीवन से जुड़े संवेदनशील मुद्दों की अवहेलना हो रही है। जासूसी प्रकरण में भी कुछ दिग्गजों की निजी परेशानी ही ज्यादा दिखाई दे रही है। सरकार के विरोध का विपक्ष को पूरा अधिकार है। लेकिन कुछ विषय ऐसे होते है जिनमे विषय वस्तु ही महत्वपूर्ण नहीं होती। बल्कि इन विषयों को उठाने के लिए नैतिक बल की भी आवश्यकता होती है। दूसरे को चोर कहने का अधिकार उसी को हो सकता है,जो स्वयं ईमानदार हो।
जासूसी प्रकरण भी ऐसा है। जो लोग सरकार में रह चुके है,उन्हें अपना समय भी याद करना चाहिए। ऐसे प्रकरण उनके लिए भी नए नहीं है। यह सदैव माना गया कि राष्ट्रीय हित व सुरक्षा के लिए सरकार को किसी के फोन टेप करने का अधिकार है। निजता आवश्यक है। लेकिन यह देशहित से ऊपर नहीं हो सकती। पेगासस प्रकरण के तो कोई सबूत ही नहीं है। ऐसा लगता है कि विपक्ष ने इसे सरकार व इस्राइल दोनों पर हमले का अवसर मान लिया है। जबकि सरकार ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इस तथाकथित रिपोर्ट के लीक होने का समय और फिर संसद में ये व्यवधान की क्रोनोलोजी समझनी होगी।।यह भारत के विकास में विघ्न डालने वालो की भारत के विकास के अवरोधकों के लिए एक रिपोर्ट है। देश के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए मानसून सत्र से ठीक पहले कल देर शाम एक रिपोर्ट आती है। जिसे कुछ वर्गों द्वारा केवल एक ही उद्देश्य के साथ फैलाया जाता है। अपने पुराने नैरेटिव के तहत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपमानित करने की साजिश है।
प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये भारतीयों की जासूसी करने संबंधी खबरों को निराधार बताया। देश में नियंत्रण एवं निगरानी की व्यवस्था पहले से है। ऐसे में अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अवैध तरीके से निगरानी संभव नहीं है। मीडिया रिपोर्ट के आधार पर विपक्ष का कहना है कि राजनीतिक नेताओं,सरकारी अधिकारियों,पत्रकारों सहित अनेक भारतीयों की निगरानी करने के लिये पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग किया गया था। वेब पोर्टल द्वारा बेहद सनसनीखेज खबर प्रकाशित की गई थी। यह प्रेस रिपोर्ट संसद के मॉनसून सत्र के एक दिन पहले सामने आई। यह संयोग नहीं हो सकता है। अतीत में वॉट्सऐप पर पेगासस के इस्तेमाल करने का दावा सामने आया। इन खबरों का तथ्यात्मक आधार नहीं है। सभी पक्षों ने इससे इनकार किया है। कहा कि इसका कोई ठोस आधार नहीं है। नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में कहा कि कुछ लोगों को केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में दलित,महिलाओं और पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व रास नहीं आ रहा है। नई मंत्रिपरिषद में दलित, महिला,और अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वालों को बड़ा प्रतिनिधित्व मिला है। विपक्ष को इसपर उत्साह जताते हुए इसकी प्रशंसा करनी चाहिए थी।
हालांकि विपक्ष इसपर हंगामा कर यह साबित कर रहा है कि उसे पिछड़ों,किसानों और ग्रामीण परिवेश से आने वालों का मंत्रिपरिषद में प्रतिनिधित्व रास नहीं आ रहा है। नरेंद्र मोदी ने टीकाकरण करवाने वालों को बाहुबली बताया। कहा कि देश में अबतक चालीस करोड़ लोगों को टीका लग चुका है। पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है। ऐसे में वह चाहते हैं कि महामारी के विषय पर संसद में सार्थक और प्राथमिकता के आधार पर चर्चा हो। सभी सांसदों से इस विषय पर व्यवहारिक सुझाव प्राप्त हों। इसमें कुछ नए सुझाव होंगे। कुछ कमियों को ठीक करने संबंधित भी होंगे। सभी के साथ देने से हम महामारी से जंग जीत सकते हैं। देश में फोन टैपिंग को लेकर सशक्त कानून हैं। इन प्रक्रियाओं का पालन करते हुए टैपिंग हो सकती है। कांग्रेस पार्टी ने इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा किया था जिसमें कहा गया कि व्हाट्सएप को पेगासस से हैक करवाया जा रहा है। जबकि ऐसा हो ही नहीं सकता।
खुद वॉहाट्सएप ने भी सर्वोच्च न्यायालय में यह बात कही थी। जो लोग सरकार पर फोन सर्विलांस के आरोप लगा रहे हैं,वे भी विश्वास के साथ सबूत नहीं दे पा रहे हैं। कांग्रेस शासन में वित्त मंत्री रहे प्रणव मुखर्जी ने उस वक्त के गृह मंत्री चिदम्बरम के खिलाफ जासूसी का आरोप लगाया था। जाहिर है कि हंगामे ने मुद्दों के अभाव को भी उजागर किया है। विपक्ष के नेता शुरू में कोरोना वैक्सीन पर सवाल उठा रहे थे। इससे भारत में भ्रम की स्थिति बनी। जबकि कोरोना वैक्सीन का निर्माण ऐतिहासिक उपलब्धि थी। स्मालपाक्स,हेपेटाइटिस बी और पोलियो की वैक्सीन दुनिया में आने के दशकों बाद भारत में लगनी शुरू हुई थी। पोलियो वैक्सीन 1955 में आ गई थी। भारत में यह 1970 में बननी शुरू हुई। इसी तरह से ओरल पोलियो वैक्सीन भी दुनिया में 1961 में आ गई थी। लेकिन भारत में 1970 में बननी शुरू हुई।
शहरी क्षेत्रों में 1978 में और ग्रामीण इलाकों में 1981 में देना शुरू किया गया। हेपेटाइटिस-बी वैक्सीन 1982 में दुनिया में लांच हुई थी। भारत में 1997 में बननी शुरू हुई। 2002 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप 14 शहरों में इसे लगाना शुरू किया गया। 2010 में इसका व्यापक टीकाकरण अभियान शुरू हो पाया। 1952 में अमेरिका और यूरोप में स्मालपाक्स के खत्म होने के एक दशक बाद हमारे देश में राष्ट्रीय स्मालपाक्स उन्मूलन कार्यक्रम लांच किया गया था। डीपीटी वैक्सीन दुनिया में 1948 में लांच हुई थी। भारत में उसका उत्पादन 1962 में शुरू हुआ।टीकाकरण अभियान 1978 में शुरू किया गया था।