इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) के जरिए विपक्षी दल खुद को एकजुट करते हुए लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा भी तय कर रहे हैं। विपक्ष लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना के मुद्दे को पूरी शिद्दत से उठाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए आंदोलन का साझा स्वरूप भी तैयार किया जा रहा है। ताकि, केंद्र पर जाति जनगणना लागू करने का दबाव बनाया जा सके।
विपक्षी दलों की बेंगलुरु में हुई बैठक में पारित सामूहिक संकल्प में ओबीसी के मुद्दे को शामिल किया गया है। संकल्प में कहा गया है कि हम सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए एक निष्पक्ष सुनवाई की मांग करते हैं। पहले कदम के रूप में जाति जनगणना को लागू किया जाए। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, ओबीसी का मुद्दा विपक्षी दलों की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा होगा।
इंडिया की इस रणनीति को भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति के जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा राम मंदिर को बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश कर सकती है। ऐसे में विपक्षी दल समझते हैं कि जातिगत जनगणना के जरिए भाजपा के धार्मिक ध्रुवीकरण का मुकाबला किया जा सकता। इसके साथ विपक्षी दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इसका फायदा मिल सकता है।
यूपी की 80 और बिहार की 40 सीट में ओबीसी मतदाताओं की भूमिका काफी अहम है। वर्ष 2014 व 2019 चुनाव में बड़ी संख्या में ओबीसी मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया। यही वजह है कि दोनों राज्यों की 120 में से ज्यादातर सीट पर भाजपा का कब्जा है। इसीलिए इंडिया गठबंधन जाति जनगणना की मांग को तेज करने की तैयारी कर रहा है, ताकि ओबीसी मतदाताओं का भरोसा जीत सके।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जातिगत जनगणना की मांग को विपक्षी गठबंधन के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। भाजपा भी विपक्ष की इस रणनीति को समझ रही है। यही वजह है कि भाजपा उत्तर प्रदेश और बिहार के ओबीसी और दलित नेताओं को साधने में जुटी है। इस कड़ी में भाजपा में ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता शामिल हैं।