आज से 50 साल पहले इंटरनेट की खोज करने वाले कंप्यूटर इंजीनियर्स का मानना है कि आज यह प्लेटफार्म नफरत फैलाने और शोषण करने की जगह बन गया है। यह खराब चीजों का सबसे बेहतरीन फॉर्मूला बन गया है, जिसे उन्होंने लोगों को जोड़ने के लिए तैयार किया था। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-लॉस एंजेल्स के चार्ली क्लाइन और स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट के बिल डुवाल ने एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (ARPA) के द्वारा उपलब्ध कराए गए पैसों से बनाए गए नेटवर्क पर 29 अक्टूबर 1969 को लॉगिन (login) शब्द भेजा था।
इसके आधार पर ही आज के इंटरनेट की नींव पड़ी है। उन्होंने कहा कि विचार यह था कि लॉस एंजेल्स से स्टैनफोर्ड को ARPA पर एक संदेश भेजा जाए, जिसे आज ARPANET के रूप में जाना जाता है। तब क्लाइन ने डुवैल को इस नेटवर्क पर login शब्द लिखकर भेजा था। हालांकि, उन्हें सिस्टम के खराब होने से पहले lo ही मिला था। इसके बाद दूसरी कोशिश में स्टैनफोर्ड में लगे कंप्यूटर पर पूरा संदेश login पहुंच गया था।
ARPANET को साल 1990 में डी-कमीशन्ड (बंद) कर दिया गया था, लेकिन उसी के आधार पर आज के आधुनिक इंटरनेट की नींव पड़ी। उन दोनों कंप्यूटर इंजीनियर्स का मानना है कि आज यह प्लेटफाॉर्म घृणा फैलाने, गलत सूचनाओं को भेजने और शोषण करने के प्लेटफॉर्म के रूप में बदल गया है। इस पर चरमपंथी विचारों को फैलाया जा रहा है।
जैसे-जैसे समय गुजरता गया, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के विकास ने इस तकनीक को जनता के लिए खोल दिया। यह तकनीक कंप्यूटिंग की दुनिया से निकालकर आज अरबों लोगों के घरों और जेबों में पहुंच गई है। डुवैल ने कहा कि मूल रूप से इसे कार्यस्थलों को और लोगों को आपस में जोड़ने के लिए बनाया गया था। हमने हमेशा इसकी कल्पना की थी। मगर, आज इसका स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है और यह लोगों के शोषण की जगह बन गई है।