झारखंड विधानसभा चुनाव में असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया तो बीजेपी विरोधियों के कान खड़े हो गए थे.
लोगों ने एक बार फिर से कहना शुरू कर दिया था कि ओवैसी की पार्टी के झारखंड में आने से बीजेपी को फ़ायदा होगा.
लेकिन क्या बीजेपी को फ़ायदा हुआ? झारखंड में तो ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. एआईएमआईएम ने झारखंड में 14 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इन 14 सीटों में डुमरी एकमात्र सीट है जहां से एआईएमआईएम को सबसे ज़्यादा 24 हज़ार 132 वोट मिले.
दिलचस्प है कि जिस डुमरी सीट पर ओवैसी की पार्टी को सबसे ज़्यादा वोट मिले वहां भी बीजेपी नहीं जेएमएम के जगरनाथ महतो जीते. जगरनाथ महतो को 70 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले और बीजेपी के प्रदीप कुमार साहु को 36 हज़ार.
डुमरी के बाद बरकट्ठा में ओवैसी के प्रत्याशी मोहम्मद अशरफ़ अंसारी को 18 हज़ार 416 वोट मिले और यहां से बीजेपी प्रत्याशी जानकी प्रसाद यादव को जीत मिली. लेकिन यहां से महागठबंधन में आरजेडी को सीट मिली थी और आरजेडी उम्मीदवार मोहम्मद ख़ालिद ख़लील 4867 वोट के साथ सातवें नंबर पर थे.
ओवैसी निष्प्रभावी क्यों रहे?
अगर आरजेडी के प्रत्याशी में ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी के वोट को भी मिला दिया जाए तब भी मोहम्मद ख़लील चौथे नंबर पर होते. ओवैसी की पार्टी को 14 सीटों पर कुल डेढ़ लाख से ज़्यादा वोट मिले हैं.
धनवार में भी ओवैसी के उम्मीदवार मोहम्मद दानिश को 15416 वोट मिले लेकिन यहां बाबूलाल मरांडी के सामने जेएमएम तीसरे नंबर पर रही. जेएमएम और दानिश के वोट को मिला दें तब भी मरांडी बहुत आगे हैं.
झारखंड की कोई ऐसी सीट नहीं है जहां से महागठबंधन यानी जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी का प्रत्याशी ओवैसी की पार्टी के कारण हारा हो. ऐसे में यह कहना कि एआईएमआईएम के चुवाव लड़ने से बीजेपी को फ़ायदा होता है कितना सही है?
झारखंड से प्रकाशित होने वाला उर्दू दैनिक रोज़नामा अलहयात को संपादक रहमतुल्लाह कहते हैं, ”झारखंड में ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. हमलोग को आशंका थी कि ओवैसी के आने से बीजेपी को फ़ायदा हो सकता है. ओवैसी की रैलियों में भीड़ और गर्मजोशी देख किसी को भी ऐसा लग सकता था. लेकिन इस बार आदिवासियों और मुसलमानों ने बहुत ही ख़ामोशी से रणनीतिक तौर पर वोट किया है.”