हाल ही में ईरान के शीर्ष कमांडर मेजर कासिम सुलेमानी की बेफिक्री ही उनकी मृत्यु का कारण बन गई। अमेरिका व इजरायल की खुफिया एजेंसियां लंबे समय से सुलेमानी की गतिविधियों पर निगाह बनाए हुए थीं। अमेरिकी अधिकारियों का बोलना है कि पहले भी कई बार उन्हें निशाना बनाने के बारे में सोचा गया था, लेकिन हर बार आखिरी क्षणों में इसे टाल दिया जाता था। जंहा इस बार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुआई में अमेरिका ने उनको निशाना बनाने का निर्णय ले लिया। अमेरिका ने शुक्रवार को ड्रोन हमला कर सुलेमानी को मार गिराया।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हम आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि एक अमेरिकी ऑफिसर ने कहा, ‘2007 की जनवरी में भी अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने सुलेमानी को निशाने पर लिया था। हालांकि सुलेमानी की मृत्यु के सियासी प्रभाव को ध्यान में रखते हुए हमले का निर्णय बदल दिया गया था। ‘ अमेरिकी खुफिया एजेंसियां उन पर बस नजर टिकाए रहीं। बोला यह भी जा सकता है कि सुलेमानी व अमेरिकी निशाने के बीच बस एक ऐसे राष्ट्रपति की दूरी थी, जो निर्णय ले। जो निर्णय जॉर्ज डब्ल्यू बुश व बराक ओबामा लेने में हिचकिचाते रहे, सुलेमानी कहां आते जाते हैं, इस पर अमेरिका लगातार नजर रखता था। खासकर इराक में उनकी हर गतिविधि पर उसकी खास नजर रहती थी। वहीं, सुलेमानी का आत्मविश्वास ऐसा था, मानो उन्हें कोई छू ही नहीं सकता है। यही वजह थी कि वह हर दौरे पर निश्चिंत रहते थे।
कुछ ही पलों में हुआ फैसला: वहीं इस बात का पता चला है कि मुद्दे से जुड़े लोगों का बोलना है कि ट्रंप अपने सियासी सलाहकारों के साथ चुनावी अभियान पर चर्चा कर रहे थे। उसी बीच आकस्मित उठकर किसी व मीटिंग के लिए चले गए। थोड़ी देर बाद वापस चुनावी चर्चा में आकर ऐसे शामिल हो गए, मानो कुछ हुआ ही नहीं। जानकार बताते हैं कि सियासी चर्चा के बीच ट्रंप जितनी देर के लिए बाहर गए थे, उसी दौरान उन्होंने सुलेमानी को निशाना बनाने के निर्णय पर मुहर चुके है। आलोचक यह भी कह रहे हैं कि ट्रंप ने महाभियोग की प्रक्रिया से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ऐसा निर्णय लिया।