औरैया। जिले में रविवार को हिन्दी प्रोत्साहन निधि के तत्वाधान में पुस्तक विमोचन एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें ख्यातिलब्ध साहित्यकार पं. ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ द्वारा कृत तीन पुस्तकों का विमोचन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह व कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि रामस्वरूप दीक्षित जी ने की।
पुस्तक विमोचन एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन में ख्यातिलब्ध साहित्यकार पं. ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ कृत तीन पुस्तकों 1. पं. ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ समग्र (भाग प्रथम) सम्पादक – डाॅ. प्रभा चतुर्वेदी एवं अंजनी चतुर्वेदी 2. पं. ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ समग्र (भाग द्वितीय) सम्पादक- डाॅ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह 3. आचार्य देव विरचित श्रृंगार विलासिनी- टीकाकार- पं. ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि रामस्वरूप दीक्षित जी ने की तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुसमीक्षक डाॅ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, पूर्व प्राचार्य विवेकानन्द ग्रामोद्योग महाविद्यालय दिबियापुर रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन गीतकार अनिरुद्ध त्रिपाठी जी ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार मंजुल जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित महाकाव्य ‘‘मंजुल माणिक्यम्’’ रचनाकार डाॅ. नरेश बाबू ‘नरहरि विनायक’ प्राचार्य दर्शन सिंह स्मृति महाविद्यालय, कंचैसी बाजार, कानपुर देहात ने उन्हें भेंट किया गया।
डाॅ. गुरुप्रताप वर्मा जी ने वाणी वन्दना ‘राष्ट्र प्रेम उर में इतना भर, वन्दे मातरम् के निकलें स्वर’ को पढ़कर कवि गोष्ठी का शुभारम्भ किया। इसी क्रम में ओज के सशक्त हस्ताक्षर गोपाल पाण्डेय ने ‘आये थे कहाँ से वो साथ किसके थे, तिरंगे को झुकाने वाले वो हाथ किसके थे’ को सुनाकर अपनी ओजस्वी रचना का पाठ किया। कवि अभिषेक तिवारी ने ‘जीवन के स्वर्णिम पथ पर, खुद को ही बढ़ना पड़ता है, कर्मक्षेत्र कुरक्षेत्र हुआ है, खुद को ही लड़ना पड़ता है’ रचना का काव्य पाठ किया।
इसी क्रम में पंथ नारायण पाण्डेय ने ‘हे हमारे देश के नेता किसी दिन गाँव आओ, एक दिन तुम मुफलिसी में साथ मेरे भी बिताओ’ रचना का काव्यपाठ किया। इसी क्रम में कवि डाॅ. गोविन्द द्विवेदी ने ‘छोडिये निंदा तमस की, दीप खुद बन जाइये, रात गहरी जगमगाये साथ मिलकर आइये’ रचना का काव्यपाठ किया।
इसी क्रम में सुकवि हरिशंकर मिश्र ने ‘अर्थहीन हो गये पुराने मुहावरों को नई तरह से लिखा जाए, हमारे रंग बदलने को आज से इन्सानी फितरत कहा जाये।’ रचना का काव्यपाठ किया।
इसी क्रम में कवि सुरेश चतुर्वेदी ने ‘इस बदले हुए जमाने के हम प्रहरी हो गये, अपने जो थे कभी आज बैरी हो गये’ रचना का काव्यपाठ किया। इसी क्रम में पीयूषमणि मिश्रा ने अपनी रचना ‘ओम नाम आदर्श है, ‘नारायण’ आधार, ‘चतुर्वेदी’ निलय सुभग, मंजुल सत-शिव सार’ को पढ़कर सुनाया। इसी क्रम में देवी चरन वर्मा दिव्यांशु ने ‘जैसे जैसे जीवन बीता, उलझे माया जाल में, कब तक और रहूँ क्या जानू, इस जग के जंजाल में।’ रचना को पढ़कर सुनाया। इसी क्रम में श्रीमती गीता चतुर्वेदी ने ‘शंकर शंकर है शिव शंकर हे अभयंकर हे शुभकारी, आदि अनादि अनंत अगोचर, अन्तर्यामि हरे उपकारी।’ रचना का काव्यपाठ किया।
इसी क्रम में औरैया के डाॅ. अजय शुक्ल ‘अंजाम’ ने माँ ने जो बताई उस राह पे चलेंगे आप, आन बान शान के विधान मिल जायेंगे।’ रचना का काव्यपाठ किया। इसी क्रम में श्री अनिरुद्ध त्रिपाठी ने ‘तुम न रूप की धूप समेटो आंगन से, सम्बन्धों के पाटल मुरझा जायेंगे’…. रचना को पढ़कर सुनाया।
काव्य गोष्ठी के आयोजन के मुख्य अतिथि डाॅ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने कहाकि मंजुल जी का कृतित्व एवं व्यक्तित्व विराट है, उन्होंने न केवल कविता व गद्य का सृजन किया बल्कि नए लेखकों को दिशा भी दी सच्चे अर्थों में वे औरैया के भारतेन्दु हैं। वे शतायु हों व निरामय रहें। अन्त में आदरणीय मंजुल जी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर बृजेश बन्धु, आशीष मिश्रा, डाॅ. प्रभा चतुर्वेदी, प्रद्युम्न चतुर्वेदी एवं अंजनी चतुर्वेदी उपस्थित रहे।
रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर