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मंज़िल को हमेशा ही ढूंढना होगा

हर इंसान मुँह में सोने की चम्मच लेकर नहीं जन्मता। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सफ़र में खुद को प्रस्थापित करने के लिए जूझना पड़ता है। जीवन संघर्षों का बिहड़ जंगल है और हर किसी के लिए सफलता सबसे अहम होती है। सफ़लता ज़िंदगी के किसी मोड़ पर खड़ी हमारा इंतज़ार भी कर रही होती है; पर उसके लिए उस मोड़ को ढूँढते हमें कदम बढ़ाना होगा, मेहनत करनी होगी, पसीना बहाना होगा। कोई कहता है नसीब में लिखा होगा तो कहीं नहीं जाएगा, एक दिन जरूर मिलेगा। नसीब, भाग्य, किस्मत महज़ शब्द है कोई चमत्कार या जादु का पिटारा नहीं कि खुल जा सिम-सिम बोलते ही कोई अद्रश्य दरवाज़ा खुल जाएगा और सफ़लता कदमों में आ गिरेगी।

षड् दोषा: पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता। निंद्रा तंद्रा भयम् क्रोध: आलस्यम् दीर्घसूत्रता।।

अर्थात- मानव विध्वंस का कारण निष्कासन है। नींद, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और काम चुराने की आदत।

आलस त्याग कर भाग्य का अस्तित्व स्वीकार किए बिना खुद के भाग्य विधाता खुद बनों और मेहनत को आदत बना लो। कोई अपनी कुर्सी खाली करके नहीं देगा, हर किसीको दुनिया में अपनी जगह खुद ही बनानी पड़ती है। माँ भी परोस कर देती है, खाना और चबाना खुद को पड़ता है। भाग्य के सहारे बैठने वाले आसमान की ऊँचाई तय नहीं कर सकते, उनके पैर पेड़ों की जड़ की भाँति एक ही जगह से जुड़े रहते है।

किनारे पर खड़े रहकर समुन्दर की गहराई नहीं नाप सकते गोताखोर बनकर ही सीप से मोती ढूँढ सकते है। कर्म को त्याग देने पर दुर्भाग्य तो अवश्य हमारे जीवन में आएगा, किंतु यदि सौभाग्य आने वाला भी होगा तो वह भी रुक जाएगा।सफलता उसी के क़दम चूमती है जो सही दिशा में अथाग प्रयास करते है। भाग्य के भरोसे सिर्फ़ मूर्ख ही बैठा करते है। यह सच है कि कुछ सीमा तक भाग्य मनुष्य के जीवन को प्रभावित करता है किन्तु हमारे अच्छे कर्म और परिश्रम में भाग्य को बदलने की शक्ति होती है। तभी तो किसीने लिखा है कि “खुदी को कर बुलंद इतना, कि हर तक़दीर लिखने से पहले ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है”

मेहनत और संघर्ष जिनके हथियार होते है उनको ज़िंदगी की चुनौतियाँ हरा नहीं सकती। लक्ष्य तय करके, नज़र बाज़ सी रखकर मंज़िल-ए-मकसूद की ओर कदम बढ़ाते आगे बढ़ने वालों का स्वागत खुद मंज़िल करती है। कोई भी चीज़ पाना आसान नहीं, लेकिन हौसला हो तो हालात बदलना नामुमकिन भी नहीं। आलस इंसान की शत्रु है, देह और दिमाग से शत प्रतिशत काम लेने का हुनर सीख जाईये; सोया हुआ भाग्य अंगड़ाई लेकर उठेगा। मन का हारा हार जाता है, मन से जीता परचम लहराता है। जरूरी नहीं कि आप कितने संगठित, सुनियोजित और साधन-संपन्न है। लेकिन आप अगर मेहनतकश है तो साधन, नियोजन और संगठन भी आपके समर्थन में अपने आप खड़े हो जाएंगे।

सोच में सकारात्मक ऊर्जा का तेल सिंचते रहने से हर मुश्किल आसान लगेगी। हर चीज़ हर काम के दो पहलू होते है, ये मुझसे नहीं हो पाएगा के बदले ये सोचिए, ये तो बहुत आसान है कैसे भी करके मैं कर लूँगा। इंसान का दिमाग चमत्कारों की खान है, हम दिमाग का 10 प्रतिशत ही इस्तमाल करते है। इसलिए अपनी क्षमता को पहचान कर खुद पर विश्वास करते सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो ज़िंदगी आसान लगेगी और हर सुख आपके गुलाम होंगे। मेहनत से डरे नहीं, भाग्य के सहारे बैठे नहीं सफ़लता का है बस राज़ वही।

            भावना ठाकर ‘भावु’

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