लखनऊ अटल बिहारी वाजपेयी जी की कर्मभूमि रही है। वह अपने अंदाज में कहते थे कि लखनऊ ने उन्हें एमपी बनाया, तभी नई दिल्ली पहुंच कर वह पीएम बन गए। वह लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नहीं रहे,लेकिन यहां से उनका जुड़ाव बहुत पुराना था। जब वह यहां राष्ट्रधर्म के सम्पादक बने थे,तभी से यहां के विद्यार्थियों व शिक्षकों से उनका संवाद होता था। शताब्दी समारोह के सांस्कृतिक कार्यक्रम में कवि कुमार विश्वास ने अटल जी के लोकप्रिय गीतों को भी आवाज दी। उन्होंने सम्पूर्ण राष्ट्र के ह्रदय सम्राट दिवंगत आदरणीय अटल बिहारी वाजपई को स्मरण किया।
गीत नया गाता हूं… हार नहीं मानूंगा, रार नही ठानूंगा …काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं...कार्यक्रम के शुरू होने से पहले युवा कवि एवं विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र पंकज प्रसून ने कोरोना के परिपेक्ष्य में कुछ छोटी पंक्तियों का वाचन किया। उन्होंने लखनऊ के संस्कृति से सम्बंधित कुछ रोचक पंक्तियाँ सुनाई। कार्यक्रम का शुभारंभ पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी और कुलपति प्रो. अलोक कुमार राय ने किया।
गोमती का मचलता ये पानी भी है, पंक्तियों से शुरुआत कर डॉ. विश्वास ने लखनऊ शहर के खूबियों को संकलित कर सम्पूर्ण माहौल में उत्साह का संचार कर दिया। “जवानी में कई ग़ज़लें अधूरी छूट जाती हैं “सुनाया। “ये तेरा दिल समझता है”,मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है ” जैसी कवितायेँ भी सुनाई। “पराएँ आंसुओं से आंखे नम कर रहा हूँ मैं “, “इस अधूरी जवानी का क्या फायदा, बिन कथानक कहानी का क्या फायदा” “वक्त के क्रूर कल का भरोसा नहीं, आज जी लो कल का भरोसा नहीं ” “ताल को ताल की झंकृति तो मिले, रूप को भाव की आकृति तो मिले “, “अगर देश पर प्रश्न आये तो अपने आप के खिलाफ बोलो अपने बाप के खिलाफ बोलो”।
उन्होंने कश्मीर पर “ऋषि की कश्यप की तपस्या ने तपाया है तुझे, ऋषि अगस्त ने हम वार बननाया है तुझ, मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन, कविता में देशभक्ति का जज्बा था। कार्यक्रम का संचालन प्रो. राकेश चंद्रा ने किया।
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री