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अवार्ड

एक लेखक को सम्मानित किया जाना था, जिसके लिए संस्था ने एक गायक कलाकार एक लाख रुपए दे कर बुलाया था। उस अवार्ड के कार्यक्रम के संचालन के लिए एक बहुत ही लोकप्रिय लेखक को बुलाया था। जि इसके लिए उसे पच्चीस हजार रुपए दिए गए थे। अवार्ड के इस समारोह के लिए जो हाॅल बुक कराया गया था, उसका किराया पंद्रह हजार रुपए था।
लेखक का सम्मान करने के लिए फूलमाला आदि के पीछे पांच हजार रुपए का खर्च किए गए थे। खाने पर संस्था ने सत्तर हजार रुपए खर्च किए थे। इस कार्यक्रम में लेखक की प्रशंसा करने के लिए दस विद्वानों को बुलाया गया था, जिन्होंने पांच-पांच हजार रुपए लिए थे। किराया-खर्चा अलग से लिया था।
जबकि लेखक को पच्चीस हजार रुपए का अवार्ड दिया गया था। उस अवार्ड का नाम था प्यारेलाल पुत्र श्यामलाल पुत्र छगनलाल भतीजा दीनदयाल परमपूज्य काका के स्मरणार्थ…. (अगर इसमें किसी का नाम छूट गया हो तो मेरी कमजोर याददाश्त जिम्मेदार है)। यह है हिंदी अवार्ड की सच्चाई, जहां अवार्ड की रकम की अपेक्षा अवार्ड के कार्यक्रम का खर्च कर कई गुना होता है।
   वीरेन्द्र बहादुर सिंह

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