- Published by- @MrAnshulGaurav
- Friday, May 13, 2022
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भारत में सदैव कृषि व पशुपालन परस्पर पूरक रहे है। ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में इसका उल्लेखीनय योगदान था। भारत में प्राचीनकाल से कृषि व पशुपालन परस्पर पूरक रहे है। यह भारत की समृद्ध अर्थव्यवस्था के आधार थे। जैविक अथवा प्राकृतिक कृषि से लागत कम आती थी। इसके अनुरूप लाभ अधिक होता था। ऐसे कृषि उत्पाद स्वास्थ्य के लिए भी लाभ दायक थे। जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बनी रहती थी।
कुछ दशक पहले केमिकल खाद का प्रचलन शुरू हुआ। उत्पादन बढ़ा लेकिन इससे अनेक समस्याएं भी पैदा हुई। मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा। जमीन की उपजाऊ क्षमता कम होने लगी। कृषि की लागत बढ़ने लगी। पशुपालन की ओर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। अब यह समस्याएं जन जीवन को प्रभावित करने लगी है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस ओर ध्यान दिया। प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित करने का अभियान भी शुरू किया गया। बड़ी संख्या में किसान अब प्राकृतिक कृषि के प्रति आकर्षित हो रहे है।
मोदी सरकार किसानों की आय दो गुनी करने की दिशा में कार्य कर रही है। इसमें जैविक कृषि भी उपयोगी साबित हो रही है। विगत सात वर्षों के दौरान किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में अनेक कदम उठाए गए है। प्राकृतिक कृषि से देश के अस्सी प्रतिशत किसानों को सर्वाधिक लाभ होगा। इनमें दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे किसान हैं।
केमिकल फर्टिलाइजर से इन किसानों की कृषि लागत बहुत बढ़ जाती है। प्राकृतिक खेती से इनकी आय बढ़ेगी। केमिकल के बिना भी बेहतर फसल प्राप्त की जा सकती है। पहले केमिकल नहीं होते थे, लेकिन फसल अच्छी होती थी। विगत सात वर्षों में बढ़िया बीज कृषि उत्पाद हेतु बाजार के प्रबंध किए गए। मृदा परीक्षण,किसान सम्मान निधि,डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य, सिंचाई के सशक्त नेटवर्क,किसान रेल जैसे अनेक कदम उठाए गए है।
प्रधानमंत्री ने प्राचीन भारतीय पारम्परिक और प्राकृतिक खेती को पुनर्जीवित करने का एक बहुत बड़ा अभियान शुरू किया। प्राकृतिक खेती को जनआंदोलन बनाने की आवश्यकता है। गाय,भैंस का मजाक उड़ाने वाले भूल जाते हैं कि देश के आठ करोड़ परिवारों की आजीविका पशुधन से चलती है।
हर साल लगभग साढ़े आठ लाख करोड़ रुपये का दूध उत्पादन करता है। यह धनराशि भारत में गेहूं और धान की कीमत से अधिक है। इसलिए डेयरी सेक्टर को मजबूत करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। पशुधन बायो गैस,जैविक खेती, प्राकृतिक खेती का आधार बन सकता है।योगी आदित्यनाथ कहा कि स्वॉयल हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना,प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना,खेती सिंचाई में विविधीकरण करने के साथ तकनीक का उपयोग से किसानों की लाभ मिल रहा है। देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करीब पांच दशक पहले हुई थी लेकिन ईमानदारी के साथ किसान को इसके साथ जोड़ने का कार्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है।
उनकी सरकार ने लागत के डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागू करने का कार्य किया। वर्तमान प्रदेश सरकार ने सत्ता में आने के तुरन्त बाद छियासी लाख किसानों के छत्तीस हजार करोड़ रुपये के फसली ऋण को माफ करके उन्हें राहत देने का कार्य किया। वर्तमान सरकार ने प्रदेश में अनेक लम्बित सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का कार्य किया गया जिससे बाइस लाख हेक्टेयर से अधिक अतिरिक्त सिंचन क्षमता भी सृजित हुई है। जैविक प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण,पर्यावरण सुधार, मानव स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार के साथ साथ कृषकों की आय में भी वृद्धि होगी। भारत ने प्रचीन काल में ही गौ और गौवंश के वैज्ञानिक महत्व को समझ लिया था। छोटे किसानों के लिए बैल न केवल किफायती बल्कि उनके संरक्षक भी हैं। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश में गौ आधारित प्राकृतिक खेती से किसान को कम लागत में अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सकता है।
इससे स्वास्थ्य के साथ-साथ गौ संरक्षण का कार्य भी सफल होगा। गोबर एवं गौमूत्र के विविध प्रयोग से प्रदेश की मृदा संरचना में भी सुधार कर जीवांश कार्बन में बढ़ोत्तरी सुनिश्चित की जा सकती है। केन्द्रीय बजट में प्राकृतिक खेती को सम्मिलित किया गया है। प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन हेतुअनेक नवाचार किये गये हैं। प्रदेश के अठारह मण्डलों में टेस्टिंग लैब स्थापित किये गए है। किसानों को उचित दाम मिल सके इसके लिए प्राकृतिक खेती से उत्पन्न होने वाले खाद्यान्न के लिए प्रत्येक मण्डी में अलग से व्यवस्था बनाने तथा उसकी व्यवस्थित मार्केटिंग के कार्य को आगे बढ़ाया गया है। प्रदेश में गंगा,यमुना, सरयू जैसी पवित्र नदियों के दोनों तटों पर पांच पांच किलोमीटर के दायरे में किसानों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। औद्यानिक फसल या खेती के लिए अगले तीन वर्षाें तक सब्सिडी देते हुए प्रोत्साहन की व्यवस्था की गयी थी। इसमें कृषि वानिकी को भी सम्मिलित किया गया है। कृषि को उर्वरकों एवं पेस्टीसाइड से मुक्त कराना जरूरी है।
जैविक खेती में एक चक्र होता है। जिसे पूरा करने के बाद ही यह खेती अपने पूर्व की स्थिति में आती है। लघु एवं सीमान्त किसान इसका इन्तजार नहीं कर सकते। अतः जैविक खेती को अपनाना उसके लिए कठिन होता है, लेकिन प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसान पहले ही वर्ष से गौ आधारित खेती के माध्यम से अच्छी आमदनी ले सकते हैं। परम्परागत कृषि विकास योजनान्तर्गत जैविक खेती के लिए पचास हजार रुपये प्रति हेक्टेयर का प्राविधान है। जैविक खेती या प्राकृतिक खेती से जुड़े कृषकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके उत्पाद का मूल्य संवर्धन एवं विपणन है। इसके दृष्टिगत मार्केट प्रोमोशन तथा ब्रॉण्डिंग की व्यवस्था की जाएगी।
(उपरोक्त, लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं….!!)