अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे को कुछ लोगों ने आजादी करार दिया था। इनमें पाकिस्तान और चीन जैसे मुल्क शामिल है। भारत के एक विवादित शायर और संसद भी इनके हिमायती है। अफगानिस्तान से दूर सुरक्षित ठिकानों में बैठे लोगों के लिए इस प्रकार के बयान देना आसान है। भारत में तो और भी सुविधा है। इस प्रकार के बयान भी यहां सेकयलर दायरे में माने जाते है।
इसके विरोध को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला घोषित कर दिया जाता है। फिर कुछ लोगों को भारत में रहने पर डर सताने लगता है। ये बात अलग है कि वह अन्यत्र कहीं जाने की जहमत नहीं उठाते है। बयान दिया,फिर बेखौफ होकर भारत में ही रहते है। वह जानते है कि भारत जैसी आजादी उन्हें किसी अन्य मुल्क में नसीब नहीं हो सकती। जिस विवादित शायर ने तालिबान की हिमायत की है,वह भी अफगानिस्तान की वर्तमान हकीकत से अनजान नहीं होंगे। वह जानते होंगे कि उनका क्लीन शेव होना तालिबान की नजर में गुनाह माना जाता। गनीमत है कि वह भारत में है।
इसलिए वह आतंकियों की तुलना भारत के महर्षि व क्रांति वीरों से कर सकते है। उनके बयान बेहद शरारत पूर्ण है। उन्हें अफगानिस्तान की तबाही देखनी चाहिए। क्या कारण है कि तालिबान के कारण वहां तबाही फैल गई है। पलायन करने वालों में विदेशी ही नहीं अफगान भी है। महिलाएं खौफ़ में है। तालिबान का जंगल राज्य कायम है। उनके लड़ाके जिसको चाहें गोली मार सकते है। उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। तालिबान के पहले भी वहां अफगान सरकार थी।
यह ठीक है कि वहां नाटो के सैनिक मौजूद थे। लेकिन वह आतंकियों संगठनों से अफगानिस्तान के आमजन को बचाने का कार्य कर रहे थे। दशकों से चल रहे गृह युध्द ने वहां नागरिक सुविधाओं को बर्बाद कर दिया था। बिजली अस्पताल स्कूल सभी तबाह थे। भारत सहित कई देश यहां पुनर्निर्माण में लगे थे। तालिबान आतंकी स्कूल अस्पताल बनाने वालों पर भी हमला करते थे। नाटो सैनिक उनके बचाव में लगे थे। इससे आम जन को सुविधाएं मिलने लगी थी। तालिबान के कब्जे ने इन निर्मांण कार्यों को रोक दिया है। अब लोगों को सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले पलायन कर रहे है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भी पलायन कर गए।
उप राष्ट्रपति ने संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप अपने को राष्ट्रपति घोषित किया है। ऐसे में सवाल यह है कि यह कैसी और किससे आजादी है। क्या निर्माण कार्यों को रुकवा देना आजादी है। क्या अफगानियों के संवैधानिक शासन की जगह घोषित आतंकी संगठन का सत्ता पर कब्जा आजादी है। इसे आजादी माने तो पंजशीर के लोग किस आजादी की मांग कर रहे है। उन्होंने कहा कि तालिबानों की सत्ता उन्हें मंजूर नहीं है। मतलब पंजशीर का संघर्ष भी आजादी के लिए है। कार्यकारी राष्ट्रपति अब्दुल्लाह सालेह और अहमद मसूद तालिबान के खिलाफ पंजशीर घाटी में विद्रोह को संगठित कर रहे हैं। अफगान सेना के हजारों सैनिक प्रतिरोध में शामिल होने के लिए पंजशीर घाटी पहुंच रहे हैं। इनका कहना है कि देश में एक समावेशी सरकार बननी चाहिए, जिसमें सभी पक्षों का प्रतिनिधित्व हो। इसके अलावा महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित होने चाहिए। इन्होंने कई जिलों से तालिबानियों बेदखल कर दिया है।
अहमद मसूद ने कहा है कि आत्मसमर्पण करना उनके शब्दकोश में नहीं है। वह अहमद शाह मसूद के बेटे है। तालिबान के समर्थक को यहां के लोगों की मुसीबतों का मखौल उड़ा रहे है। यहां लोगों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। हिंसक माहौल में संयुक्त राष्ट्र की मानवीय एजेंसियां अफगानिस्तान में तत्काल मदद भेजने में असमर्थता जताई है। दवाओं और अन्य चीजों की निर्बाध आपूर्ति के लिए तुरंत मानवीय हवाई पुल स्थापित करने का आह्वान किया है। वर्तमान स्थिति में ऐसा करना संभव नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यहां चिकित्सा आपूर्ति पहुंचाने में असमर्थ है। अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने आतंकवादी संगठन तालिबान पर उत्तरी बगलान प्रांत की अंदराब घाटी में मानवाधिकारों के उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
अफगानिस्तान में करीब तीन लाख लोग बेघर हो चुके हैं। यह लोग हालात से जूझने को विवश हैं। देश की करीब आधी जनसंख्या विदेशी सहायता पर निर्भर है। लेकिन तालिबानी आतंक के चलते सहायता पहुंचना असंभव हो गया है। अफगानिस्तान के करीब पचहत्तर प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। इनको मिलने वाली सहायता बन्द है। खाद्य सामग्री व दवाओं का घोर अभाव है। अनेक हिस्सों में गृह युद्ध चल रहा है। बगलान प्रांत में दोहरे हमले में तालिबान को बड़ा नुकसान हो रहा है। कई स्थानों पर स्थानीय विद्रोही सक्रिय है। वैसे अफगानिस्तान के चौतीस में से तैतीस प्रांतों पर तालिबान का कब्जा है।
पंजशीर शेर के रूप में प्रतिष्ठित अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने तालिबान के साथ सुलह की संभावना को नकार दिया है। चर्चा तो यह भी है कि तालिबान के निशाने पर पाकिस्तान के कई इलाके है। अहमद मसूद ने बताया कि उनके पास उनके पिता के समय का हथियारों का जखीरा है। तालिबान को माकूल जबाब दिया जाएगा। बड़े आतंकी कमांडर सत्ता में भागीदार चाहते है। इसलिए वह काबुल पहुंच गए है। इससे स्थानीय स्तर पर तालिबान की पकड़ कमजोर भी हुई है। पंजशीर तालिबान कब्जा मुश्किल है।
यह पहाड़ियों से घिरा है। कार्य वाहक राष्ट्रपति सालेह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को कानून के शासन का समर्थन करना चाहिए। हिंसा का नहीं। उन्होंने बाहरी देशों से कहा कि आतंकवादी संगठनों के सामने घुटना टेक कर वे अपने को बदनाम ना करें। उन्होंने कहा कि अफगानी आवाम तालिबान आतंकवादियों के सामने कभी घुटना नहीं टेकेगा। अहमद मसूद ने अपने पिता द्वारा गठित प्रतिरोध संगठन नॉर्दन एलायंस को पुनर्जीवित किया है।
पंजशीर में सोवियत संघ व तालिबान कभी कब्जा नहीं कर सका था। इस बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक की पूरी जमा रकम फ्रीज कर दी है। ऐसे में तालिबान सरकार का संचालन बहुत मुश्किल है। तालिबान प्रतिबंधित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन है। इसलिए इस धन तक उसकी पहुंच नहीं हो सकेगी। पंजशीर पूरे देश से कटी हुई घाटी है। इस जगह तक पहुंचने का एक संकरा रास्ता है। यह पंजशीर नदी से होकर गुजरता है। यह क्षेत्र हिंदुकुश रेंज में है। यहां की डेढ़ लाख से अधिक की जनसँख्यस ताजिक हैं। तालिबान संगठन में ज्यादातर लोगों की आबादी पश्तूनों की है। पंजशीर पन्ने के भंडार हेतु प्रसिद्ध है। इससे आर्थिक सामरिक संसाधनों की व्यवस्था की जाती है।