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विचाराधीन संविदा आधारित नई भर्ती नीति अव्यवहारिक: अभय मिश्रा

औरैया। वर्तमान सरकार द्वारा विचाराधीन संविदा आधारित नई भर्ती नीति अत्यन्त अव्यवहारिक प्रतीत होती है। इस तथाकथित प्रस्तावित नीति से उत्तर प्रदेश का आम जनमानस तभी सहमत होगा जब सरकार ऐसी ही व्यवस्था पहले जनप्रतिनिधियों अथवा स्वयं पर लागू करे। ये बात बिधूना कस्बा निवासी कवि एवं पीएचडी स्कॉलर अभय मिश्रा ने कही।

अभय मिश्रा ने कहा यदि सरकार अक्षम व अकर्मण्य कर्मियों को शासकीय सेवा से निष्कासित ही करना चाहती है तो इस हेतु यथोचित दण्डात्मक प्रावधान, ‘शासकीय सेवा नियमावली’ में पूर्व से ही निहित है। एक से दो वर्ष का परिवीक्षा काल, सेवा पुस्तिका में विपरीत प्रविष्टि, निलम्बन, पदच्युत करना तथा अनिवार्य सेवानिवृत्ति जैसे कई प्रावधानों का उपयोग शासन कर सकता है। उन्होंने कहा पाँच वर्ष की संविदा उपरान्त नियमितीकरण की प्रक्रिया, मेधा को अपमानित तो करेगी ही साथ ही भ्रष्टाचार को अभूतपूर्व प्रोत्साहन भी देगी क्योंकि पांच वर्ष तक प्रत्येक छः माह में कर्मी का मूल्यांकन अधिकारियों के लिए ना सिर्फ असीमित धन उगाही का बल्कि उस संविदा कर्मी से अनुचित सेवा लाभ का अवांछनीय माध्यम भी बनेगा।

पीएचडी स्कॉलर ने आगे कहा कि एक अभ्यर्थी जो विभिन्न परीक्षाओं को लांघते हुए अपनी योग्यता व क्षमता के बल पर जब शासकीय प्रणाली का अंग बनेगा तो पांच वर्ष तक प्रत्येक छः माह में मूल्यांकन के नाम पर उसके शोषण की संभावनाएं प्रबल होंगी और उस कर्मी के मन मस्तिष्क में नियमितीकरण का संकट बढ़ेगा जो असंतोष व शांति को जन्म देगा और फलस्वरूप इसकी परिणति अप्रिय भी हो सकती है। अतः सरकार को तय करना चाहिए कि वह या तो संविदा पर या नियमित (दोनों में से कोई एक) रूप में भर्ती करे, क्योंकि सरकार की वर्तमान विचाराधीन भर्ती नीति (संविदा से नियमित) में पाँच वर्ष तक कर्मियों में सेवा के प्रति असुरक्षा व स्थायित्व का संकट होगा जिसके फलस्वरूप विभागीय कार्यो में शिथिलता व उदासीनता का प्रकटीकरण होगा। यदि फिर भी सरकार कुछ करना चाहती है तो वर्तमान भर्ती नीति को निरन्तर करते हुए, जो संविदा कर्मी पिछले पाँच वर्षों या उससे अधिक समय से कार्य कर रहे हैं उनको भी प्रदर्शन-मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर नियमित करें तो अत्यन्त बेहतर एवं हितकर होगा।

उन्होंने कहा कि आज समय है कि सरकार को उपरोक्त के अपेक्षाकृत निम्न विषयों पर ध्यान देना चाहिए।

1. सरकारी व अर्ध सरकारी नियोक्ता, भर्ती में मनमानी शुल्क वसूल कर भर्ती को बिना कारण बताए किसी भी समय निरस्त करने का स्वयं अधिकार रखते हैं क्यों?
2. आवेदन व शुल्क लेने के पश्चात भर्ती प्रक्रिया अनिश्चितकाल तक के लिए लंबित रहती है क्यों?
3. इस दौरान अभ्यर्थी पर मानसिक तनाव तो पड़ता ही है साथ ही आर्थिक बोझ भी बढ़ता है।

अतः आज आवश्यकता है ऐसी भर्ती नीति की, जिसमें-

1. अभ्यर्थी हेतु भर्ती प्रक्रिया में चरणबद्ध शुल्क देय की व्यवस्था हो।
2. भर्ती पूर्ण पारदर्शिता व पूर्व निर्धारित समय-सीमा में संपन्न हो।
3. किसी भी कारण से भर्ती निरस्त होने पर आवेदक की पूर्ण शुल्क वापसी का प्रावधान हो।
4. तथा इन सभी बिंदुओं पर संबंधित भर्ती अभिकरण का उत्तरदायित्व निर्धारण भी हो।
अंत में कहा कि शासन से आग्रह है कि सभी भर्ती अभिकरणों की शुल्क व प्रक्रिया संबंधी मनमानी को संज्ञान में लेकर पारदर्शी, न्यायोचित एवं त्वरित भर्ती प्रक्रिया के सम्बन्ध में नीति बनाएं ताकि बेरोजगार युवकों को मानसिक व आर्थिक शोषण से बचाया जा सके और निर्धारित समय-सीमा के अन्तर्गत अधिकाधिक सेवायोजन किया जा सके।

रिपोर्ट-अनुपमा सेंगर

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