अभिलाषा (हास्य कविता)
चाह नहीं साहित्य सम्मान से
हे प्रभु नवाजा जाऊँ।
चाह नहीं नोबेल प्राप्त कर
कलम की धार पर इतराऊं।चाह नहीं पुस्तक छपवाकर
वरिष्ठ लेखक मैं कहलाऊं ।
चाह नहीं सहयोग राशि के बूते
साझा संकलन में नजर आऊँ।चाह नहीं प्रशंसा सुनकर
भाग्य पे अपने इठलाऊं।।
चाह नहीं मठाधीश बन
नवोदितों को बहकाऊं।।मेरी रचनाओं को संपादक जी
अपनी पत्रिका में दे देना ब्रेक।
जिसको पढ़ने बेसब्र रहते
भारतवर्ष के पाठक अनेक।।विनोद कुमार विक्की,खगड़िया, बिहार 851213