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विजयदान देथा साहित्य उत्सव: 10 सत्रों में 36 साहित्यकार लेंगे हिस्सा, कवि सम्मेलन और सांस्कृतिक प्रतुतियों ने लोगों का मोहा मन

जयपुर। राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) की बजट (2024—25) घोषणा के आलोक में जवाहर कला केन्द्र (Jawahar Kala Kendra) की ओर से आयोजित तीन दिवसीय विजयदान देथा साहित्य उत्सव (Vijaydan Detha Sahitya Utsav) का शुक्रवार को शुभारंभ हुआ। कला, साहित्य, संस्कृति, पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के शासन सचिव रवि जैन (Secretary Ravi Jain) ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस अवसर पर केन्द्र की अतिरिक्त महानिदेशक अलका मीणा, (Alka Meena) वरिष्ठ लेखाधिकारी बिंदु भोभरिया (Bindu Bhobharia) और वरिष्ठ साहित्यकार व बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

ग्रास रूट मीडिया फाउंडेशन के क्यूरेशन हो रहे इस उत्सव के पहले दिन दो सत्र हुए, जिनमें विजयदान देथा के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला गया। ब्रह्म स्वरूप शब्दों की साधना करने पर जोर दिया गया। शाम को विश्वामित्र दाधीच के निर्देशन में हुई ढाई कड़ी की रामलीला के मंचन से राजस्थान की लोक संस्कृति से सभी रूबरू हुए। उत्सव के दूसरे दिन शनिवार को प्रातः 9:00 बजे प्रातः कालीन संगीत सभा, प्रातः 10:00 बजे रानी लक्ष्मी कुमारी चुंडावत सत्र में राजस्थानी भासा मांय महिला लेखन री कूंत, प्रातः 11:45 बजे सीताराम लालस सत्र में भासा री रमझोळ-कुण सी राजस्थानी, दोपहर 2:00 बजे किशोर कल्पनाकांत सत्र में टाबरां सारूं लेखन, दोपहर 3:00 बजे चतर सिंह बावजी सत्र में लोक वार्ता और सायं 6:30 बजे कवि सम्मेलन का आयोजन होगा।

शासन सचिव रवि जैन ने राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने और साहित्य उत्सव के आयोजन के लिए राजस्थान सरकार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उत्सव में राजस्थान के प्रसिद्ध लेखों को समर्पित सत्र रखे गए हैं, जिनमें राजस्थानी के लालित्य से सभी सराबोर होंगे। इस आयोजन से युवा पीढ़ी अपनी मातृभाषा से जुड़ेगी, जिससे एक से दूसरी पीढ़ी तक भाषा का प्रसार होगा। उद्घाटन सत्र में विजयदान देथा के जीवन परिचय एवं उनके साहित्यकि योगदान से जुड़ी बातों पर प्रकाश डाला गया।

शब्द ब्रह्म हैं इसकी साधना जरूरी

साधो! सबद साधना कीजे कार्यक्रम के अंतर्गत डॉ राजेश कुमार व्यास, राजवीर चलकोई व डॉ गजादान चारण ने राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति व धरोहर के महत्व पर पर विचार व्यक्त किए। डॉ राजेश कुमार व्यास ने कहा कि शब्द ब्रह्म है, जिसका भाव है आत्म की तलाश, श्रृष्टि में सबसे पहले शब्द ही आए है। उन्होंने कहा कि विजयदान देथा ने सच्ची शब्द साधना की और लोक कहानियां को पूर्ण किया। राजवीर चलकोई ने बताया कि अंग्रेजी अफसर जॉर्ज ग्रियर्सन ने जब लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में भारतीय भाषाओं का सर्वे किया तो 321 पेज सिर्फ राजस्थानी के बारे में लिखे गए। यह राजस्थानी का गौरव है।

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डॉ राजेश कुमार व्यास ने कहा कि स्कूली पाठ्यक्रम में राजस्थानी भाषा को शामिल किया जाना चाहिए और व्यावहारिक तरीके से इसे सिखाया जाना चाहिए। उन्होंने अपील की बच्चे बुजुर्गों के साथ समय बिताएं और अपनी मातृभाषा में बात करें जिससे एक से दूसरी पीढ़ी में भाषा का प्रसार होगा। इसी तरह हम राजस्थानी को बचा पाएंगे। गजादान चारण ने कहा कि राजस्थानी को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सामाजिक चेतना भी उतना ही जरूरी है। उन्होंने युवाओं को राजस्थानी साहित्य, संस्कृति और इतिहास को पढ़ने पर जोर दिया जिससे वह अपने प्रदेश से जुड़ सके।

ढाई कड़ी की रामलीला’ में हुआ ‘सीता-हरण’ प्रसंग का मंचन

रंगायन सभागार में राजस्थान की अनूठी नाट्य विधा जो लगभग 150 वर्ष पूर्व लिखी गई थी में ‘ढाई कड़ी की रामलीला’ का मंचन हुआ। विश्वामित्र दाधीच के निर्देशन में हुई इस विशेष प्रस्तुति में सीता हरण प्रसंग को मंचित किया गया। कलाकारों ने अपने संवादों को गाकर दर्शकों तक पहुँचाया, जिसमें महिला और पुरुष पात्रों के संवाद अलग-अलग लय और शैली में प्रस्तुत किए गए। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को पारंपरिक रामलीला के एक अलग स्वरूप से परिचित कराया। ढाई कड़ी की रामलीला राजस्थान की एक दुर्लभ नाट्य परंपरा है, जिसमें अभिनय और संगीत का गहरा तालमेल देखने को मिलता है।

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