• हाइड्रोसील के 190 रोगियों का हुआ सफल ऑपरेशन
• लगातार पांच वर्षों तक साल में एक बार दवा खाने से बीमारी होगी नियंत्रित
वाराणसी। जिला स्वास्थ्य विभाग फाइलेरिया उन्मूलन के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में फाइलेरिया (हाथीपांव) के मरीजों को रुग्णता प्रबंधन के लिए मोर्बिडिटी मैनेजमेंट व डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एमएमडीपी) किट दी जा रही है तो वहीं हाइड्रोसील के मरीजों को इलाज की नि:शुल्क सुविधा भी दी जा रही है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी के निर्देशन में पिछले तीन दिनों में विभिन्न शहरी पीएचसी पर सर्वे में चिन्हित हाथीपांव के 45 मरीजों को एमएमडीपी किट प्रदान की गई। इसके साथ ही फाइलेरिया ग्रसित के पैरों की साफ-सफाई व घाव नियंत्रण के लिए रोगियों को प्रशिक्षण भी दिया गया। इसके अलावा फाइलेरिया ग्रसित अंडकोष में सूजन (हाइड्रोसील) के चिन्हित रोगियों का जिला चिकित्सालय और स्वास्थ्य केन्द्रों में निरंतर ऑपरेशन की सुविधा दी जा रही है।
“समाज में जागरुकता लाना है, कैंसर को भगाना है”
जिला मलेरिया अधिकारी शरद चंद पाण्डेय और फाइलेरिया नियंत्रण इकाई के प्रभारी डॉ अमित कुमार सिंह ने नेतृत्व में शुक्रवार को मँड़ुआडीह पीएचसी पर 20 रोगियों को एमएमडीपी किट प्रदान की गई। इससे पहले पाण्डेयपुर पीएचसी पर 15 रोगियों और दुर्गाकुंड सीएचसी पर 10 रोगियों को एमएमडीपी किट के साथ प्रशिक्षण भी दिया गया। इस दौरान पीएचसी के प्रभारी चिकित्साधिकारी, पाथ के ज़ोनल अधिकारी डॉ सरीन कुमार और मलेरिया निरीक्षक अजय कुमार मिश्रा भी मौजूद रहे।
डॉ अमित ने बताया कि जनपद के सभी शहरी पीएचसी व ग्रामीण पीएचसी-सीएचसी पर वर्ष 2021 में हुये सर्वे के दौरान चिन्हित 997 हाथीपाँव के रोगियों के सापेक्ष अबतक 466 रोगियों को एमएमडीपी किट प्रदान की जा चुकी हैं. वहीं चिन्हित 206 हाइड्रोसिल के रोगियों के सापेक्ष अब तक 190 रोगियों का सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया जा चुका है। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है।
खान-पान में मिले रसायनिक तत्व कैंसर को देते हैं दावत
डॉ अमित ने बताया कि फाइलेरिया ग्रसित अंगों मुख्यतः पैर या फिर प्रभावित अंगों से पानी रिसता है। इस स्थिति में उनके प्रभावित अंगों की सफाई बेहद आवश्यक है। इसकी नियमित साफ-सफाई रखने से संक्रमण का डर नहीं रहता है और सूजन में भी कमी आती है। इसके प्रति लापरवाही बरतने से अंग खराब होने लगते हैं। इससे समस्या बढ़ सकती है। संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए एमएमडीपी किट और आवश्यक दवा दी जा रही है।
साथ ही सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) की ओर से बनाए फाइलेरिया नेटवर्क के सदस्य समुदाय को फाइलेरिया के प्रति जागरूक कर रहे हैं। साथ ही उनके मिथक व भ्रांतियों को भी दूर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया से बचने के लिए साल में एक बार एमडीए राउंड के दौरान दवा के सेवन और लगातार पांच वर्षों तक साल में एक बार दवा खाने से इस बीमारी को रोकने या नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इस दवा के सेवन लिए दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और अति गंभीर बीमार को छोड़कर सभी को सलाह दी जाती है।
रिपोर्ट-संजय गुप्ता