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वह चाहतीं तो पीएम आवास में शान से रह सकती थीं..

कहते हैं हर सफल व्यक्ति के पीछे एक महिला का हाथ जरूर होता है। मोदी जी की सफलता के पीछे उनकी मां की तपस्या थी। स्कूल जाने वाले नन्हे मोदी की शर्ट जब घिसकर फट जाती थी तो वह उस पर किसी दूसरे रंग के कपड़े का पाबंद लगा देती थीं। फिर उन्होंने अपने उसी लड़के को देश का प्रधानमंत्री बनते देखा।

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हीराबेन ने जीवन के 100 साल पूरे किए। 100 साल वही जी सकता हो जिसके पास निश्छलता,संयम धैर्य और ईमानदारी की ताकत हो। जिसका बेटा देश के सर्वोच्च पद पर बैठा हो उससे उन्होंने कभी कुछ नहीं मांगा। चार धाम यात्रा करने भी ट्रेन से गईं। वाह चाहती तो बेटे से चार्टर्ड प्लेन मांग सकती थीं। जीवन भर तीन कमरों के घर में रहीं, चाहती तो बेटे से महल मांग लेती। चाहतीं तो वह भी प्रधानमंत्री आवास में शान से रह सकती थीं। उन्होंने बेटे को दिया ही, जब भी बेटा मिलने आया तो कभी शाल दी, तो कभी सौ की नोट हाथ में रख दी।

उनका नोटबंदी की लाइन में लगना स्वाभिमान की पराकाष्ठा ही थी। वह लाइन के साथ खड़ी थीं। उस वक्त वह बेटे नहीं देश के प्रधानमंत्री के निर्णय के साथ खड़ी हुई थीं।

उनकी आंखें १०० साल की उम्र में भी साफ देखती थीं, क्योंकि वह बेटों के लिए स्वेटर बुना करती थीं। उनको कमर दर्द नहीं हुआ क्योंकि वह कुएं से पानी भरने जाती थीं। उनको कभी आर्थराइटिस नहीं हुई क्योंकि वह कपड़े वाशिंग मशीन से नहीं, हाथ से धोती थी। पहले वह चक्की से आटा भी पिसती थीं,सिलबट्टे में मसाला भी पीसती थीं।

जब घर कच्चा था तो बारिश के समय गांव के तालाब से मिट्टी लाकर छत को रिपेयर करती थीं। वह गाय के थन से दूध भी निकालना जानती थीं, बांके से चारा कतरना भी बखूबी आता था। उनको देख मुझे नानी की याद आती है। कितनी आत्मनिर्भर थीं हीराबेन। शायद इसी को देखकर उनके बेटे ने आत्मनिर्भर भारत का सपना देखा होगा।

वह २५० रुपए में मिलने वाली सूती धोती ही पहनती थीं। वह अनपढ़ थीं लेकिन आयुर्वेद के देशी नुस्खों की मास्टर थीं। वह पड़ोसियों से कहती थीं कि घी, दूध से परहेज न करो, परहेज अंग्रेजी दवाइयों से करो। वह अपने देशी नुस्खों से ही खुद को ठीक कर लेती थीं।

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प्रधानमंत्री चुनाव लडने से पहले मां के पास जाते थे और वह ‘विजयी भव’ का आशीर्वाद दे देती थीं। जीतने के बाद वह फिर जाते थे कि देखो मां, आपका आशीर्वाद फलीभूत हो गया है। अब उनको मां का प्रत्यक्ष आशीर्वाद तो नहीं मिलेगा, लेकिन वह जहां भी होंगी, वहीं से उनको आशीष देती रहेंगी।

“जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है”

हीराबेन जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि..

           पंकज प्रसून

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