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राष्ट्रपति के अभिभाषण का महत्व

डॉ दिलीप अग्निहोत्रीशासन व्यवस्था के संचालन में संविधान के शब्द मात्र ही नहीं उसकी भावना का भी महत्व होता है। संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण का उल्लेख है। इसका बहिष्कार करने या ना करने के विषय में कुछ भी नहीं कहा गया। लेकिन इसके पीछे की भावना को समझना चाहिए। राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख होता है।

इस पद को राजनीति से ऊपर माना जाता है। इसी के अनुरूप उनको सम्मान दिया जाता है। उनके अभिभाषण का बहिष्कार अशोभनीय ही नहीं संविधान की भावना के विरुद्घ है।

संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति

भारत के संविधान में संसदीय शासन व्यवस्था को स्वीकार किया है। इसमें राष्ट्रपति कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होता है। अनुच्छेद बावन के अनुसार कार्यपालिका शक्तियां उसी में निहित रहती है। संविधान के अनुच्छेद उन्यासी के अनुसार वह संसद का एक अंग होता है। संसद के द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही कानून के रूप में स्थापित होता है। वह लोकसभा को भंग कर सकता है।

संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति का अभिभाषण इस व्यवस्था का महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है। वह प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति करता है,जो सभी नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों को शपथ ग्रहण कराता है। नए अधिवेशन की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है। संसदीय प्रणाली की संवैधानिक शब्दावली में राष्ट्रपति की ही नवनियुक्त सरकार होती है। इसीलिए वह अपने भाषण में सरकार के क्रियाकलापों का उल्लेख करते है।

पक्ष व विपक्ष के लिए महत्व

राष्ट्रपति का अभिभाषण पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए महत्वपूर्ण होता है। सरकार की वर्तमान व भावी योजनाएं चर्चा में आती है,जबकि विपक्ष को सरकार की आलोचना का अवसर मिलता है। क्योंकि सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर विस्तृत चर्चा होती है। इसके बाद ही अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। इसका पारित होना सरकार की प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है।

उनके अभिभाषण से असहमत होने का सभी को अधिकार है,लेकिन इस असहमति की अभिव्यक्ति धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान होनी चाहिए। संविधान निर्माता यही चाहते थे। जो सदस्य अभिभाषण को धैर्य से सुन नहीं सकता,वह सही ढंग से उंसकी आलोचना भी नहीं कर सकता।

कृषि सुधार के विरुद्ध बहिष्कार

इस बार किसानों की दुहाई देकर विपक्ष ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किये। इनमें से किसी ने भी लाल किले पर हुए उपद्रव व तिरंगे के अपमान पर कुछ नहीं कहा। किसान हितैषी दिखने के लिए हंगामा व उपद्रव करना आसान है,लेकिन सत्ता में रहते हुए कृषि क्षेत्र में सुधार उतना ही कठिन है। छह वर्ष पहले देश में यूपीए सरकार थी। वह दस वर्षों में कृषि संबन्धी अपनी एक मात्र उपलब्धि आज तक दोहराती रहती है। वह यह कि उसने किसानों का पचास हजार करोड़ रुपये का ऋण माफ किया। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी सरकार है। जो दस वर्षों में किसान सम्मान के रूप में किसानों को साढ़े सात लाख करोड़ रुपये प्रदान करेगी।

बारह करोड़ किसानों को यह सम्मान निधि मिल भी रही है। संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण संसदीय संवैधानिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण अवसर होता है। विपक्षी भूमिका में भाजपा यूपीए सरकार पर खूब हमला बोलती थी। लेकिन संविधान का सम्मान करते हुए उसने कभी देश के संवैधानिक प्रमुख के भाषण का बहिष्कार नहीं किया। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव लाया जाता है। विपक्ष उसमें अपनी बात रखता है। लेकिन बात रखने के लिए भी कुछ आधार होना चाहिए। इससे बचने के लिए ही शायद कांग्रेस सहित अनेक पार्टियों ने अभिभाषण का बहिष्कार किया।

कांग्रेस व उसके साथियों के सामने समस्या भी है। जो आज अपने को किसानों का मसीहा साबित करने में लगे है, उनके समय में यूरिया की कालाबाजारी होती थी,जो आज अडानी अम्बानी पर हमला बोलकर अपने को महान बता रहे है,उनके समय में यूरिया उद्योगों तक पहुंचा दी जाती थी। किसानों पर यूरिया के लिए लाठीचार्ज होता था। अनेक महत्वपूर्ण सिंचाई योजनाएं दशकों से लम्बित थी। इन्हें वर्तमान सरकार पूर्ण कर रही है। यूपीए सरकार को स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करनी थी। वह आठ वर्ष तक इसे दबाए रही। वर्तमान सरकार ने इसके आधार पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिया। यह अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि थी। दलहन की समस्या यूपीए की नीतियों से बढ़ी थी। वर्तमान सरकार ने इसका समाधान किया। भारतीय किसानों को इसका लाभ मिल रहा है।

कांग्रेस और उसके सहयोगियों को पता था कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में कृषि सुधारों का उल्लेख हो सकता है। इसलिए इन दलों ने पहले ही बहिष्कार कर दिया। निश्चित ही कृषि क्षेत्र में इनकी नाकामी इन्हें सच्चाई का सामना नहीं करने देती। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि तीन नए कृषि कानून बनने से पहले,पुरानी व्यवस्थाओं के तहत जो अधिकार थे तथा जो सुविधाएं थीं,उनमें कहीं कोई कमी नहीं की गई है। बल्कि इन कृषि सुधारों के जरिए सरकार ने किसानों को नई सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ साथ नए अधिकार भी दिए हैं।

कृषि को और लाभकारी बनाने के लिए मेरी सरकार आधुनिक कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके लिए एक लाख करोड़ रुपए के एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की शुरुआत की गई है। सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करते हुए लागत से डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का फैसला भी किया था। सरकार आज न सिर्फ एमएसपी पर रिकॉर्ड मात्रा में खरीद कर रही है बल्कि खरीद केंद्रों की संख्या को भी बढ़ा रही है। 2013-14 में जहां 42 लाख हेक्टेयर जमीन में ही सिंचाई की सुविधा थी, वहीं आज 56 लाख हेक्टेयर से ज्यादा अतिरिक्त जमीन को सिंचाई प्रणाली से जोड़ा जा चुका है। इसी अवधि में सब्जी और फलों का उत्पादन भी 21.5 करोड़ टन से बढ़कर अब 32 करोड़ टन तक पहुंच गया है। देश के सभी किसानों में से अस्सी प्रतिशत से ज्यादा ये छोटे किसान ही हैं इनकी संख्या दस करोड़ से ज्यादा है।

सरकार की प्राथमिकताओं में ये छोटे और सीमांत किसान भी हैं। ऐसे किसानों के छोटे-छोटे खर्च में सहयोग करने के लिए पीएम किसान सम्मान निधि के जरिए उनके खातों में लगभग एक लाख तेरह हजार करोड़ से अधिक रुपए सीधे हस्तांतरित किए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ भी देश के छोटे किसानों को हुआ है।इस योजना के तहत पिछले पांच वर्षों में किसानों को सत्रह हजार करोड़ रुपए प्रीमियम के एवज में लगभग नब्बे हजार करोड़ रुपए की राशि मुआवजे के तौर पर मिली है। एक लाख करोड़ रुपए के कृषि अवसंरचना कोष की शुरुआत की गई है।प्रधानमंत्री कुसुम योजना के तहत किसानों को बीस लाख सोलर पंप दिए जा रहे हैं। जाहिर है कि किसानों के हित में वर्तमान सरकार का रिकार्ड पिछली सरकारों पर बहुत भारी है। शायद इसी शर्मिन्दी से बचने के लिए बहिष्कार का सहारा लिया गया।

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