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रिश्तों की अहमियत

रिश्तों की अहमियत

मात-पिता के रिश्ते की जो ना जाने कद्र वो कुलांगार है,
सच्चा रिश्ता वो होता है जो रिश्तों की माला करता कण्ठागार है।

रिश्तों को रखें उलझाए हर पल जो वो रिश्तों का कसूरवार है,
कभी हद से बढ़ जाती उलझन रिश्तों में तो लगता कारागार है।

रिश्तों को निभाना होता है दिल से यहां ना कोई रिश्तों का कामगार है,
जब कूट- कूट भरा होता है प्यार- विश्वास वहां दिल बनता रिश्तों का ओगार है।

ना उलझनें देना कभी रिश्तों को , ये रिश्ते खुशी के तलबगार है,
जो सींचे प्यार के पानी से रिश्ते के पौधे वो ही करूणागार है।

जो ना समझो पाया अहमियत रिश्तों की उसका जीवन कगार है,
वो रहता ताउम्र जिंदगी से शर्मसार है।

इन प्यारे-प्यारे रिश्तों से मुंह मोड़ना तो बेकार है,
परवरदिगार ने बक्शे हैं ये प्यारे रिश्ते इन्हें निभाने वाले हम तो बस किरदार हैं।

प्रेम बजाज, जगाधरी (यमुनानगर)

प्रेम बजाज

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