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‘पाकिस्तान छोड़कर तीन साल के निर्वासन में जाने की हुई थी पेशकश’, जेल में बंद इमरान खान का दावा

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने दावा किया कि उन्हें देश छोड़कर तीन साल के लिए निर्वासन में जाने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया था। खान भ्रष्टाचार सहित विभिन्न मामलों में बीते एक साल से ज्यादा समय से रावलपिंडी की उच्च सुरक्षा वाली अदियाला जेल में बंद हैं।

‘पाकिस्तान में जिऊंगा-मरूंगा’
क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान ने शुक्रवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट किया। जिसमें उन्होंने लिखा- ‘मुझे अटक जेल में रहते हुए तीन साल के निर्वासन का मौका दिया गया था, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं पाकिस्तान में ही जिऊंगा-मरूंगा’।

‘मेरे कार्यकर्ताओं-नेताओं को रिहा करो’
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के संस्थापक इमरान खान अगस्त 2023 से अदियाला जेल में बंद हैं। जेल में मीडिया से बात करते हुए इमरान खान ने बताया कि उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से इस पेशकश के बारे में बताया गया था कि उन्हें इस्लामाबाद में उनके बनिगाला बंगले में स्थानांतरित किया जा सकता है। लेकिन उन्होंने इस पेशकश को ठुकरा दिया। खान ने एक्स पर लिखा, मेरी स्थिति स्पष्ट है, पहले मेरे गिरफ्तार कार्यकर्ताओं और नेताओं को रिहा करो, उसके बाद ही मैं अपनी निजी स्थिति पर बात करने के लिए तैयार हूं।

‘मानवाधिकार के लिए आवाज उठना स्वाभाविक’
पूर्व प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उनका मानना है कि पाकिस्तान के फैसले देश के भीतर ही होने चाहिए। लेकिन जब बात बुनियादी मानवाधिकारों की होती है, तो स्वाभाविक रूप से आवाजें दुनियाभर में उठती हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) जैसे संस्थान इसी उद्देश्य के लिए मौजूद हैं। दुनियाभर में जागरूक लोग बुनियादी अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाते हैं।

‘पाकिस्तान में चल रही तानाशाही’
इमरान खान ने कहा, तानाशाही के इस दौर में व्यक्तिगत स्वतंत्रतता का उल्लंघन, कानूनी अधिकारों का उल्लंघन और संस्थानों के विनाश ने न केवल देश की सामाजिक और राजनीति प्रणाली को बाधित किया है, बल्कि कानूनी और आर्थिक ढांचे को भी प्रभावित किया है। उन्होंने कहा, खालिद खुर्शीद (गिलगित-बाल्टिस्तान के पूर्व मुख्यमंत्री) जैसे किसी व्यक्ति को 34 साल की सजा देने का बेवकूफाना तरीका यह साबित करता है कि देश में कानून का कोई शासन नहीं है और यहां तानाशाही चल रही है। पीटीआई के नेता ने आगे कहा, (परवेज मुशर्रफ) के शासन काल में हमने सैन्य दखल की आलोचना की थी। लेकिन उस समय हमें ऐसे उत्पीड़न और फासीवाद का सामना नहीं करना पड़ा था।

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