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कोरोना मात्र वायरस नहीं बल्कि भविष्य में केमिकल जंग के खतरे कि चेतावनी : अंजनी सिंह

एक कहावत है कि कभी अपने बल का घमंड मत करो और कभी किसी को कमजोर मत आंको और यह भी अक्षरशः सत्य है कि सत्ता का नशा शराब के नशे से भी ज्यादा चढ़ता है जो सत्ता के पूरे काल तक तो क्या बाद तक भी नहीं उतरता! जी हाँ मुझे यह बातें इस लिए कहना पड़ रहा है कि कुछ ऐसे हालात इस समय विश्व समेत भारत में उपजा है जहाँ चारों तरफ सिर्फ दहशत ही दहशत व्याप्त है कभी मंगलग्रह तो कभी चाँद कि बात करने वाले कभी फाइटर जेट तो कभी मिसाइल तोपखाने व परमाणु बम की धमकियों से विश्व में एक दूसरे को डराने वाले देश आज कोरोना वायरस के आगे बुरी तरह से खौफजदा हैं।

विश्व के भीतर अपने को हस्ती गिनाने वाले देशों से बड़ी संख्या में लोग मौत के आगोश में चले जा रहे हैं और अपने अपने देशों में आदर्श और विकास की समुचित व्यवस्था की गारंटी देने वाले नेताओं की हालात इतनी दुबली पतली हो गईं है कि लोग अब अपनी गारंटी छोड़ आशमानी शक्ती के सहारे कि बात करते नजर आ रहे हैं। अब बात करें हिंदुस्तान कि तो आजादी के 72 सालों में देश प्रदेश के भीतर बहुत सी सरकारें आई और गईं किसीने दलितों की बात की तो किसी ने पिछड़ों का विकास की बात किया!

किसी ने गरीबों के विकास का दावा किया तो किसी ने किसान मजदूरों के घर ऐश्वर्य कि व्यवस्था कि बात कही लेकिन एक कोरोना वायरस ने सभी दावों के पोल खोल कर रख दिए कि पाँच ट्रिलियन डालर कि आर्थिक मजबूती कि बात करने वाली सरकार सवा सौ करोड़ कि आबादी वाले देश में मात्र पाँच साढ़े पाँच सौ मरीजों का ही कोरोना पाजिटिव टेस्ट करवा पाई कारण संसाधनों कि कमी इससे साफ पता चलता है कि हर सरकारें सिर्फ देश की जनता को जाति धर्म वर्गों पार्टियों में बाँट कर हिंदुस्तान कि पूरी आबादी को मुफ्त खोरी कि ओर ढकेल कर सिर्फ सत्ता हासिल किया और जम कर सरकारी खजाने का लूट पाट दुरुपयोग किया! तभी तो कोरोना वायरस के घातक विश्वव्यापी महामारी में चिकित्सा व्यवस्था में पूरे विश्व के अंदर भारत का स्थान सौवें स्थान के बाद आता है।

एक जिज्ञासा के कारण जेहन में सवाल उठता है की हिंदुस्तान की जनता विचार करे और बताए हिंदुस्तान के नेता भी सवालों के उत्तर दें की इस कोरोना वायरस कि व्याप्त महामारी में कौन मारा जा रहा हिंदू या मुसलमान, दलित पिछड़ा या सवर्ण? कोरोना वायरस पर किसको कितना प्रतिशत आरक्षण चाहिए? ऐसी परिस्थितियों के बीच गरीबों किसानों दलितों पिछड़ों के हितैषी बनने वाले बताएं कि कितने प्रतिशत दलितों, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों की जिंदगी सुरक्षित करने वास्ते देश प्रदेश के भीतर मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्थाओं, उच्च शिक्षा व्यवस्थाओं का प्रबंध अब तक देश के भीतर किस प्रदेश में कर पाए? हर हाल में मारी गईं व मारी जा रही है तो देश प्रदेश कि आम मेहनत कस जनता हालाँकि मैं आरक्षण का विरोध नहीं कर रहा मेरा अभिप्राय मात्र इतना है कि हम हिंदुस्तानी जिन बातों को लेकर आपस में जातिवादी, धर्मवादी राजनीति कि लक्ष्मण रेखा खींच रखी है। जरूरत थी मजबूत भारत के लिए मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था करने कि उच्च शिक्षा व्यवस्था को सर्व सुलभ बनाने कि हम भारतीय कोष को जितना एनपीए, मुफ्तखोरी, मंदिर मस्जिद की दिशा में खर्च किए।

अगर स्वास्थ्य शिक्षा स्वरोजगार और विज्ञान की दिशा में खर्च करते तो आज हिंदुस्तान का लोहा पूरा विश्व मानता। हम भारत के नागरिक जितना जातियों, धर्मों रूढ़ियों में बंटते गए। उतना आपसी नजदीकियों मानवता एवं राष्ट्रीयता के प्रति अपने कर्तव्यों फर्जो में बंधते तो आज कोरोना हो या केमिकल जंग का खतरा हमें भयभीत नहीं होना पड़ता।

एक पूर्व सैनिक और हिंदुस्तानी होने के नाते मेरा यह निजी चिंतन है जिसे मैं भारत की सरकार एवं आवाम से साझा कर रहा हूँ। साथ ही सुझाव रूप में भारत की सरकार को इस बात के लिए सजग भी कर रहा हूँ कि पड़ोसी देश चीन व पाकिस्तान के मंसूबों को समय रहते समझने की जरूरत है।और समझ कर उस दिशा में अपनी तैयारी भी करने की आवश्यकता है। क्योंकि मेरा निजी चिंतन कहता है कि निकट भविष्य में हमें बम गोलों फाइटर मिसाइल की जंग से ज्यादा खतरा है केमिकिल रासायनिक जंग से।

पड़ोसी देश इस दिशा में सालों पहले से अग्रसर हैं जो भारत सहित पूरे विश्व के लिए विनाशकारी खतरे की घंटी है! हमें रासायनिक जंगों की काट और वार की तैयारी कि तरफ भी ध्यान बढ़ाना होगा। अपने वैज्ञानिकों को इस ओर भी लगाना होगा ताकी भविष्य के खतरे से सुरक्षा कि हमारी तैयारी पुख्ता हो सके।

(लेखक समाजवादी चिंतक हैं)

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