Breaking News

विरासत का विस्तार

लखनऊ। कई स्वरों से मिलकर संगीत का प्रादुर्भाव होता है। इसके अनेक रंग भी होते है। इस मामले में भारत सर्वाधिक समृद्ध है। यहां के संगीत में एकरसता नहीं,बल्कि विविधता है। प्रत्येक क्षेत्र अपने विशिष्ट संगीत के लिए पहचाना जाता था। लेकिन इसकी गूंज उस क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं थे। भाषा का अंतर भी बाधक नहीं था। एक दूसरे का संगीत सभी को बांधने की क्षमता रखता था। यह सब भारतीयों के जीवन शैली के साथ जुड़ा था। गोदभराई से लेकर जीवन के सभी संस्कारों के लिए कुछ न कुछ था।

यह विशाल और महान विरासत रही है। लेकिन आधुनिकता के मोह में इसे उपेक्षा भी मिली। अब विवाह में भी लेडीज संगीत,डीजे आदि का क्रेज बढ़ने लगा। ढोलक, मंजीरे,लोक गीत संगीत पीछे छूटने लगे। लेकिन दूसरी तरफ लोक संगीत के संरक्षण व संवर्धन के भी प्रयास चल रहा है। लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी इसकी अलख जगा रही है। उंन्होने सोन चिरैया संस्था की स्थापना की। इसका नाम भी अपने में बहुत कुछ कहता है। मालिनी अवस्थी के प्रयासों से निजी क्षेत्र का सबसे बड़े लोक संगीत पुरष्कार की शुरुआत की गई।

एक लाख रुपए का पहला लोकनिर्मला सम्मान लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रसिद्ध पांडवी गायिका पदम् विभूषण तीजन बाई को प्रदान किया। मालिनी अवस्थी ने अपनी मां निर्मला देवी की स्मृति में इस पुरष्कार की शुरुआत की है। उंन्होने बताया कि अब यह प्रतिवर्ष प्रदान किया जाएगा। अगले वर्ष से युवाओं को लोक कला के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिए स्कॉरशिप भी दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने कालबेलिया नृत्य के मशहूर कलाकार गौतम परमार और आल्हा गायक शीलू सिंह राजपूत को भी स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया। इसके बाद संगीत नाटक अकादमी में सांस्कृतिक समारोह का भी आयोजन किया गया।

 

इसमें लोक संगीत ने लोगों को भाव विभोर कर दिया। इसमें छतीसगढ़ से लेकर असम तक की शैली थी,लेकिन लखनऊ के दर्शकों को इसमें भी अपनी माटी की सुगंध महसूस हुई। तीजनबाई ने पंडवानी गायन के तहत दुशासन अंत का रोचक प्रसंग सुनाया। कौरवों की राजसभा में दुर्योधन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। इस बात से व्यथित द्रौपदी ने प्रतिज्ञा की थी। इसके अनुसार वह अब दुशासन के छाती के रक्त से धोने के बाद ही अपने केश नहीं बांधेगी। भीम ने दौपदी की इस प्रतिज्ञा को पूरा किया था। तीजन बाई ने पांडवी में इसी कथा का उल्लेख किया। जिसे लोगों ने मंत्रमुग्ध होकर सुना। पंडवानी छत्तीसगढ़ की एकल नाट्य शैली है।

इसमें महाभारत की कथा प्रस्तुत की जाती है,लेकिन इसका नाम पंडवानी है। तीजन बाई ने पंडवानी को अभूतपूर्व और विश्वव्यापी प्रसिद्धि दिलाई है। इसके अलावा गौतम परमार ने राजस्थान प्रस्तुत किया। इसमें केसरिया बालम और गोरबंद भी शामिल थे।शीलू सिंह राजपूत ने आल्हा का जोशीला गायन किया। इसमें सिरसागढ़ की लड़ाई का उल्लेख था। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान धोखे से वीर मलखान की हत्या करा देते हैं। मालिनी अवस्थी ने जो सबसे बड़ा पुरष्कार शुरू किया उसमें भी लोक शब्द को जोड़ा है। लोक निर्मला सम्मान और इस अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का मूल उद्देश्य ही लोक संगीत का विस्तार करना है।

रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

About Aditya Jaiswal

Check Also

संजय सिंह बोले- पीएम मोदी को सिर्फ अपने दोस्तों की चिंता, देश को नीलाम कर रहे हैं प्रधानमंत्री

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने एक बार फिर प्रधनामंत्री नरेंद्र मोदी ...