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अभिनय को समर्पित जीवन: मनोज सिंह टाइगर

मनोज सिंह टाइगर…हिंदी सिनेमा में भले ही कोई बड़ा नाम ना हो…लेकिन भोजपुरी सिनेमा में बेहद लोकप्रिय नाम है, जिन्हे लोग बताशा चाचा के नाम से जानते है। मनोज सिंह टाइगर (Manoj Singh Tiger) उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में 30 मई 1976 को जन्मे, पढ़ाई में दिल नही लगता था,बचपन से ही रामलीला से प्रेम था,देखते देखते रामलीला का हिस्सा बन गए,घर में खूब पिटाई होती,लेकिन अब रामलीला में किरदार निभाना मनोज के लिए जुनून बन गया था।

अभिनय को समर्पित जीवन: मनोज सिंह टाइगर

जैसे जैसे उमर बढ़ी, रामलीला से शुरू हुआ अभिनय अब नाटकों में बदल चुका था, गावों में होने वाली नौटंकी दिल को लुभाने लगी थी, अभिनय अब सांसों की तरह जीवन का हिस्सा बन चुका था, नतीजा ये हुआ की दसवीं में तीन बार फेल हो गए…बमुश्किल किसी तरह चौथी बार दसवीं से निजात मिली, घर वाले भी समझ चुके थे,और मनोज को छोड़ दिया जो मर्जी आए करो।

किसी तरह स्नातक कर मनोज ने 1997 में बंबई की राह पकड़ ली। ये वो दौर था,जब लोगों को लगता था की जब अजय देवगन जैसा साधारण दिखने वाला इंसान फिल्म में हीरो बन सकता है,तो फिर मैं क्यों नही। लेकिन ये समझ पाना तब मुश्किल होता था की सिनेमा की डगर बड़ी मुश्किल है।

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मनोज को बंबई आने के बाद इस बात का एहसास हो गया, की सिनेमा कोई जलेबी नही,जो दस रुपए का खरीदा और गटक लिया, सिनेमा का दूसरा नाम संघर्ष है। मनोज का संघर्ष शुरू हुआ,रहने खाने पीने की जरूरत ने इस संघर्ष को और भी मुश्किल में डाल दिया। लेकिन मनोज में अभिनय का जो जुनून था वो कम नहीं हुआ यहां तक कि पेट पालने के लिए होटल में बर्तन मांजने का काम भी किया,एक मशहूर पत्रिका की आफिस में ब्वॉय को नौकरी भी की।

अभिनय को समर्पित जीवन: मनोज सिंह टाइगर

लेकिन कहते है कि प्रतिभा किसी का मोहताज नहीं होती, जैसे पानी अपनी राह खुद बना लेता है, वैसे प्रतिभा भी हर मुश्किलों, कठिनाइयों और लंबे संघर्ष के बाद अपना मकाम अपनी मंजिल तलाश ही लेती है…मनोज के पास अभिनय की कला थी,जिसमे उन्हें महारत हासिल थी, रंगमंच से जुड़ गए.. आषाढ़ का एक दिन, कफन, अमर प्रेम, घुंघरू जैसे दर्जनों नाटक कर, मनोज ने मुंबई रंगमंच पर अपनी एक अलग पहचान बना ली, और “पंचम रंग” नाम की अपनी रंगमंच संस्था की स्थापना की,बहुत सारे रंगकर्मी साथ जुड़ गए। फिल्मों में छोटे रोल और टीवी धारावाहिकों में काम मिलने लगा, लेकिन ये काम कोई मुकाम नही दे पा रहे थे, संघर्ष लगातार चल रहा था,मनोज का जुनून और बढ़ता जा रहा था।

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तभी निदेशक मनोज ओझा एक भोजपुरी फिल्म बना रहे थे, जिसका नाम था, “चलत मुसाफिर मोह लियो रे” इस फिल्म से मनोज ओझा भोजपुरी के एक लोकप्रिय गायक दिनेश लाल यादव निरहुआ को बतौर हीरो लांच कर रहे थे, उन्हें एक ऐसे इंसान की जरूरत थी,जो निरहुआ को सिनेमा अभिनय की बारीकियां सीखा सके।

मनोज ओझा से मनोज टाइगर का मिलन हुआ,मनोज टाइगर निरहुआ से को सिनेमा की तकनीकी ज्ञान देने लगे, लेकिन निरहुआ से दिल का रिश्ता ऐसे जुड़ा की दोनो मानो सगे भाई हो। मनोज भोजपुरी सिनेमा में अभिनय नही करना चाहते थे, लेकिन निरहुआ के साथ शूटिंग में रहना था,और पैसों की जरूरत थी,तो मनोज ओझा ने एक रोल ऑफर किया, जिसे मनोज टाइगर अस्वीकार नहीं कर सके।

अभिनय को समर्पित जीवन: मनोज सिंह टाइगर

“चलत मुसाफिर मोह लियो रे” हिट हो गई, निरहुआ गायकी के साथ साथ फिल्मों में भी स्टार हो गए, धड़ाधड़ फिल्में मिलने लगी,साथ ही मनोज को भी भोजपुरी फिल्मों के आफर आने लगे। निरहुआ का साथ और पैसों की जरूरत ने मनोज को भोजपुरी में सक्रिय कर दिया। और फिर एक फिल्म आई, “निरहुआ रिक्शा वाला”, जिसने इतिहास रच दिया, निरहुआ इस फिल्म से सुपर स्टार हो गए, मनोज टाइगर का किरदार बताशा चाचा इतना लोकप्रिय हुआ की वही उनकी पहचान बन गया। एक के बाद एक फिल्मों ने हिंदी में तो नहीं लेकिन भोजपुरी में मनोज को स्थापित कर दिया।

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भोजपुरी फिल्मों में व्यस्तता के बावजूद मनोज ने रंगमंच से रिश्ता नही तोड़ा, “पंचम रंग” का रंग बिखरता रहा,रंगमंच के लिए मनोज का जुनून ऐसा है की फिल्में छोड़ कर फ्री में कहीं भी पहुंच जाते है,नाटक करने के लिए, भले ही यात्रा का खर्च भी खुद ही क्यों ना उठाना पड़े, नसीरुद्दीन शाह की तरह मनोज ने भी अपना जीवन रंगमंच को समर्पित कर दिया है,फिल्में रहें न रहें,रंगमंच जीवित रहना चाहिए, क्योंकि यही अभिनय की जड़ है,जहां से निकल कर शाखाएं सिनेमा के परदे को रोशन करती है।

अभिनय को समर्पित जीवन: मनोज सिंह टाइगर

मनोज अब तक 200 से ज्यादा भोजपुरी फिल्मों में काम कर चुके है और “हसीन दिलरुबा 2″,”कालो”, “बाटला हाउस”, “एक्सिडेंटल प्रीमिनिस्टर”,”चोक्ड” जैसी हिंदी फिल्मों के अलावा तेलगु की “सीता” और “अहिंसा” जैसी फिल्मों में काम किया है और ये सफर जारी है।

हिंदी रंगमंच को कमर्शियलाइज़ करने के लिए मनोज मेहनत कर रहे है और “जिंदगी जलेबी”, “एक कुल्हड़ जिंदगी” जैसे प्ले कोरियन ड्रामा के तर्ज पर जल्दी ही ले कर आ रहे है, ताकि दर्शको का भरपूर मनोरंजन हो और लोग टिकट खरीद कर प्ले देखने आएं। मनोज कहते है, “मैने अपना जीवन अभिनय को समर्पित कर दिया है, और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं की जब तक सांसे चल रही है, मेरे अभिनय की यात्रा चलती रहे”।

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