दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को तीसरी बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद दे दिया है। दिल्ली की जनता ने फ्री बिजली-पानी, फ्री बस-यात्रा, अच्छी व सस्ती स्कूली शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं, बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा जैसे कामों पर अपनी मोहर लगाई है। खबर लिखे जाने तक आम आदमी पार्टी ने 63 सीटों पर बढ़त बना रखी थी, जबकि बीजेपी महज 7 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। वहीं, कांग्रेस एक बार फिर शून्य पर ही रही। आइए जानते हैं वे 10 कारण, जिनके चलते राजधानी दिल्ली की जनता ने एक बार फिर सत्ता की चाभी केजरीवाल के हाथों में सौंप दी है।
1. फ्री बिजली, फ्री पानी पर मुहर
हर महीने 20 हजार लीटर फ्री पानी और 200 यूनिट फ्री बिजली देने के फैसले से केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवालों का दिल जीत लिया। पूरे कार्यकाल में मुफ्त पानी देकर जनता को फायदा पहुंचाया गया। बढ़ती महंगाई के बीच जब निम्न व मध्यमवर्गीय परिवारों के बिजली-पानी के बिल जीरो या मामूली आने लगे तो उन्हें काफी राहत मिली। अपने इन फैसलों से आप बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही। लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे में 79 फीसदी लोगों ने माना कि उनके बिजली के बिल कम हुए हैं और 71 फीसदी लोगों ने माना कि उनके पानी के बिल कम हुए हैं।
2. स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं से जनता के दिल में बनाई जगह
सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालों में केजरीवाल सरकार के काम की हर तरफ तारीफ हुई। तमाम क्षेत्रों में मोहल्ला क्लीनिक खोलकर गरीब लोगों के घर के पास प्राइमरी हेल्थ सर्विस पहुंचाई गईं। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सिस्टम को मजबूत बनाया गया। स्कूल और स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने काम का आम आदमी पार्टी की सरकार ने जमकर प्रचार भी किया। शानदार प्रचार रणनीति से आम आदमी पार्टी अपनी सरकार के काम को वोट में तब्दील करने में सफल रही। कई दूसरी पार्टियों के नेताओं ने भी शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक सुविधाओं के क्षेत्र में उनके काम को सराहनीय बताया।
नवंबर-दिसंबर 2019 में लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए एक सर्वे में 10 में 8 (86 फीसदी) लोगों ने कहा था कि वह केजरीवाल सरकार के काम से संतुष्ट हैं। लोगों ने खासतौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में केजरीवाल सरकार के काम को खूब सराहा।
3. महिलाओं के हित में किए काम का मिला लाभ
आम आदमी पार्टी ने जितना महिलाओं पर फोकस किया, उतना बीजेपी ने नहीं। केजरीवाल सरकार ने बसों में 30 अक्टूबर को भैयादूज के दिन से मुफ्त सफर की महिलाओं को सौगात दी। एक आंकड़े के मुताबिक प्रतिदिन करीब 13 से 14 लाख महिलाएं दिल्ली में बसों में सफर करतीं हैं। अपने इस फैसले से केजरीवाल सरकार ने महिलाओं के वोट बैंक पर कब्जा जमा लिया।
4. दिल्ली में केजरीवाल, केंद्र में मोदी का ट्रेंड
दिल्ली की जनता के दिलोंदिमाग में ‘दिल्ली में केजरीवाल, केंद्र में मोदी’ वाली बात समा गई है। 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भले ही आप को 70 में से 67 सीटें मिली हों लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दोनों बार दिल्ली की सातों सीटों पर कब्जा किया। लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे में 90 फीसदी लोगों ने कहा कि वह सीएम के तौर पर केजरीवाल को और 79% ने कहा कि पीएम के तौर पर मोदी को देखना चाहते हैं। मतलब साफ है कि राष्ट्रीय राजधानी की जनता देश की कमान नरेन्द्र मोदी और दिल्ली की कमान अरविंद केजरीवाल के हाथों में देखना चाहती है।
5. केजरीवाल की टक्कर में नहीं रहा स्थानीय नेता
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी का एक ही स्पष्ट चेहरा रहा- पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल । वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने अपने सीएम उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया। दिल्ली की राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के पास लंबे समय से केजरीवाल की टक्कर का स्थानीय चेहरा नहीं रहा। शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर असमंजस में रही। प्रचार के दौरान बार बार केजरीवाल कहते रहे कि बीजेपी अपने सीएम कैंडिडेट का नाम बताए, मैं उससे बहस के लिए तैयार हूं। केजरीवाल का यह बयान बीजेपी की कमजोर नब्ज पर वार था जिसे वह बार बार इग्नोर करती रही।
6. मुसलमानों का एकतरफा झुकाव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद से मुस्लिमों की बड़ी आबादी के मन में डर बैठ गया है। मुसलमान उस पार्टी को वोट देना चाहते हैं जो बीजेपी को हराने में सक्षम हो। दिल्ली चुनाव में यही हुआ। कांग्रेस दिल्ली चुनाव में कहीं नजर नहीं आई। ऐसे में मुसलमानों का अधिकतर वोट आम आदमी पार्टी को जाना तय था। दिल्ली में सीलमपुर, ओखला जैसी कई सीटों पर मुस्लिम निणार्यक स्थिति में हैं।
7. भाजपा का हुजूम, अकेले खड़े रहे केजरीवाल
राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि भाजपा का हद से ज्यादा आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान फायदा देने की जगह उसे नुकसान दे गया। केजरीवाल खुद भाजपा की भारी-भरकम बिग्रेड का बार-बार हवाला देते हुए खुद को अकेला बताते रहे। ऐसे में जनता की सहानुभूति फिर से ‘एकला चलो’ की रणनीति अपनाने वाले केजरीवाल के लिए उमड़ी। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव को नो-निगेटिव कैंपेन बना दिया था। यह उनकी रणनीति का हिस्सा ही था कि उन्होंने पीएम मोदी पर कोई सीधा प्रहार नहीं किया। नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को भी पलटवार करने का मौका नहीं मिला। इधर कांग्रेस और भाजपा आपस में भिड़ते रहे और उधर इसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को मिल गया।
8. भाजपा नेताओं के विवादित बयानों ने आप को फायदा पहुंचाया
बीजेपी के नेताओं के विवादित बयानों ने आप को फायदा पहुंचाया। बीजेपी के नेताओं के विवादित बयानों ने उनकी छटपटाहट दिखाई। अनुराग ठाकुर अपनी रैली में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों पर हमला बोलते हुए कहते नजर आए कि ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो … को…’। बीजेपी के प्रवेश कुमार ने तो केजरीवाल को आतंकवादी तक कह डाला।
9. स्कूलों की फीस ना बढ़ाकर जीता दिल्ली का दिल
दिल्ली में स्कूलों की हालत सुधरने को जो दावे हों, मगर सबसे ज्यादा लाभ प्राइवेट स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाने से मध्यमवगीर्य जनता को पहुंचना बताया जा रहा है। आम आदमी पार्टी के ही एक सूत्र के मुताबिक दिल्ली में अधिकांश स्कूल कांग्रेस और भाजपा नेताओं के चलते हैं। ऐसे में केजरीवाल ने फीस पर नकेल कस दी। इसका लाभ मध्यमवगीर्य परिवारों को हुआ है। यह वर्ग मतदान में भी बड़ी भूमिका निभाता है।
10. स्थानीय मुद्दों पर ही आप ने की बात
चुनाव प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी ने जनता के बीच स्थानीय मुद्दों पर बात की। बिजली, पानी, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाएं, स्ट्रीट लाइट, सड़कें जैसे मुद्दे उनके नेताओं की जुबां पर छाए रहे। वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने फिर से पीएम मोदी के चेहरे को विधानसभा चुनावों में भी भुनाने की कोशिश करने की गलती की। उसने अन्य राज्यों में मिली हार से सबक नहीं लिया। बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान जमकर सीएए, एनआरसी, कश्मीर, राम मंदिर जैसे राष्ट्रीय मुद्दे उछाले और केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियां गिनवाईं। दिल्ली के वोटरों के यह रास नहीं आया।