- Published by- @MrAnshulGaurav
- Tuesday, June 28, 2022
लखनऊ। मनमाना जुर्माना लगाने और बापसी करने के मुद्दे पर देश भर में बदनाम यूपी के सूचना आयुक्तों पर लगाम कसने के लिए सूबे के मुख्य सूचना आयुक्त और पूर्व आईपीएस भवेश कुमार सिंह ने लखनऊ निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा द्वारा बीते 5 जून को इस मुद्दे पर भेजी गई एक शिकायत के 5 दिन के भीतर ही बीते 10 जून को एक परिपत्र जारी करके आरटीआई एक्ट की धारा 20 के तहत जुर्माना लगाने और उत्तरप्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 के नियम 12 के तहत दंड बापसी के लिए एक सुस्पष्ट नीति बना दी है.
![](https://samarsaleel.com/wp-content/uploads/2022/06/560-1.jpg)
गौरतलब है कि उर्वशी ने उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्तों पर सूचना कानून की धारा 20 के तहत जनसूचना अधिकरियों पर मनमाने ढंग से अर्थदण्ड लगाने और निहित स्वार्थ पूरे होने पर अधिरोपित अर्थदण्ड को गैरकानूनी रीति से बापस लेने का रैकेट चलाने का गंभीर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सूबे के राज्यपाल,मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रमुख सचिव समेत सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त,रजिस्ट्रार,सचिव और उपसचिव को शिकायत भेजी थी .
उर्वशी ने अपनी शिकायत में फारुक अहमद सरकार बनाम चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स मामले, कल्पनाथ चौबे बनाम सूचना आयुक्त, 2010 (3) के मामले, रमेश शर्मा बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन, हरियाणा, 2008 के मामले, अजीत कुमार जैन बनाम हाईकोर्ट ऑफ डेलही के मामले, यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम धर्मेन्द्र टेक्सटाइल के मामले, संजय हिंदवान बनाम राज्य सूचना आयोग मामले और चन्द्र कांता बनाम राज्य सूचना आयोग मामले में न्यायालयों द्वारा दी गई विधिक व्यवस्थाओं के साथ-साथ आरटीआई एक्ट की धारा 20 एवं उत्तरप्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 के हवाले से अपनी शिकायत में लिखा था कि कोई भी सूचना आयुक्त अपनी सनक और कल्पनाओं (whims and fancies) के आधार पर धारा 20 के तहत दंड अधिरोपित नहीं कर सकता है.
उर्वशी ने लिखा था कि दंड अधिरोपण एक्ट की धारा 20 के अनुसार नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए जन सूचना अधिकारी को अपना पक्ष रखने का युक्तियुक्त अवसर देने के बाद ही लगाया जा सकता है. उर्वशी ने यह भी लिखा था कि प्रत्येक सूचना आयुक्त के पदीय दायित्व के तहत उससे यह अपेक्षित है कि वह जन सूचना अधिकारी पर आरटीआई एक्ट की धारा 20 का कोई भी दण्ड अधिरोपित करने से पहले यह आश्वस्त हो ले कि जनसूचना अधिकारी को नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दे दिया गया है।
उत्तरप्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 के नियम 12 में उल्लिखित दोनों आधारों पर मामले की पुनर्स्थापना का कोई अवसर उपस्थित होने की सम्भावना नहीं है.उर्वशी की शिकायत में यह भी लिखा था कि जनसूचना अधिकारी पर दण्ड अधिरोपण के पश्चात सम्बंधित मामले की पुनर्स्थापना और दंड बापसी कुछेक मामलों में अपवाद स्वरुप ही होनी चाहिए किन्तु कुछ सूचना आयुक्तों द्वारा अधिकाँश पहले तो सूचना कानून की धारा 20 के तहत जनसूचना अधिकरियों पर मनमाने ढंग से अर्थदण्ड लगाया जा रहा है और निहित स्वार्थ पूरे होने पर अधिरोपित अर्थदण्ड बापस लेने का रैकेट अपने सुनवाई कक्ष के स्टाफ के साथ मिलकर चलाया जा रहा है.
अपनी शिकायत के सभी बिन्दुओं का समावेश करते हुए यूपी के सूचना आयुक्तों के मनमाने आचरण पर अंकुश लगाने के लिए मुख्य सूचना आयुक्त भवेश कुमार सिंह द्वारा आरटीआई एक्ट की धारा 15(4) के तहत शीघ्रता से परिपत्र जारी करने पर एक्टिविस्ट उर्वशी ने भवेश को सार्वजनिक रूप से धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आशा की है कि सीआईसी भवेश इसी प्रकार की जनभावना से कार्य करते हुए उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के कामकाज में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का निरंतर संवर्धन करेंगे और नागरिकों के सूचना के अधिकार की एक सुकर तथा व्यवहारिक प्रणाली स्थापित करेंगे.