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श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान में आज किया गया गोपाष्टमी पर्व का विवेचन

लखनऊ। शास्त्री नगर स्थित कल्याणकारी आश्रम श्री दुर्गा जी मंदिर के 33वें स्थापना दिवस के अवसर पर चल रही 9 दिवसीय श्री मद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ के 7वें दिन आज कथा व्यास रमेश भाई शुक्ल ने गोपाष्टमी पर्व का विवेचन किया। उन्होंने कहा कि गोपाष्टमी के दिन से भगवान श्री कृष्ण ने गौ-सेवा प्रारम्भ की थी। उन्होंने कहा कि जिस समय गौ चरती थींतो उस समय भगवान उनके पीछे-पीछे चलते हुए गायों पर नियंत्रण रखते थे।

अपने प्रवचन में उन्होंने कहा कि गो का एक अर्थ होता है ‘इंद्रियां’। कान, आंख, नाक, त्वचा और रसना ये 5 ज्ञान इंद्रियां हैं, इनका चारा, अर्थात विचरण क्षेत्र, 5 विषय हैं। 5 विषय हैं-शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध। इंद्रियां विषय मे विचरण करें, ये तो ठीक है, लेकिन न्याययुक्त भोग ही भोगें। उन्होने स्पष्ट करते हुए कहा कि गाय दूसरे के खेत मे न चरे, इसलिए पीछे लाठी लेकर चलना पड़ता है, हमारी इंद्रियां भी दूसरे के अधिकार क्षेत्र में न विचरण करें, इसके लिए भगवान के स्मरण का डंडा पीछे लगा दो।

क्या खाना है, क्या देखना है, क्या सुनना है, क्या स्पर्श करना है, ये ज्ञान रहे। गाय के पीछे ज्ञान की लाठी नही होगी, तो वो निरंकुश होकर हानि पहुंचाएगी। इंद्रियां भी स्वतंत्र रहेंगी तो गलत भोगों में फंसकर पाप की भागी बनेंगी। गाय को पता है, मालिक पीछे है तो वो गलत खेत मे नही घुसती, ऐसे ही भगवान हमे हर क्षण देख रहें है, ये याद रहेगा तो इंद्रियां और मन मर्यादा में रहेगा। उन्होने कहा कि मर्यादित जीवन ही भगवद्भक्ति में सहायक होता है।

दया शंकर चौधरी

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