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चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे से…कोरोउना बंदी मा खेती क्यार बड़ा नुकसान भवा

नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान

कोरोना काल में किसानों के भारी नुकसान की बात करते हुए ककुवा बोले- कोरोउना बंदी मा खेती क्यार बड़ा नुकसान भवा। मुला यहिकी चर्चा कहूँ नाय होय रही। सब जगह व्यापारिन केरे घाटे क बातें होय रहीं। किसानन केरे घाटे क बाति कोऊ नइ कय रहा। सब्जी, फल, फूल केरी नकदी फसलन ते किसानन का कौनव खास लाभ नाय मिला। देस मा न जाने कतने बिगहा फूल कय खेती बर्बाद होय गई। अब बाढ़ ते फसलन का नुकसान होय रहा। किसान चारिव तरफ ते मार खाय रहा।

आज सुबह मौसम बड़ा सुहावना था। जेठ महीने में सावन-भादौं की तरह आसमान में काली घटाएं उमड़-घुमड़ रही थीं। भोर में झमाझम बारिश होने से ठंडी हवा डोल रही थी। चतुरी चाचा अपने प्रपंच चबूतरे पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। बड़की और नदियारा भौजी चाचा को गांव का कुछ प्रपंच सुना रही थीं। तभी मैं चबूतरे पर पहुंच गया। मेरे पीछे से ककुवा, बड़के दद्दा, मुन्शीजी व कासिम चचा भी आ गए।

बड़की बोलीं- भइय्या, तुम पंच अपन प्रपंच करव। हम जाय रहेन अपनी बहुरिया संग लौकी अउ तोरई त्वारय। आजु खेतु खाली कीन जाई। अबसिला बड़ा घाटा होय गवा। पहिले बाजार बंद रहय। फिरि बारिश ते खेत मा जलभराव होइगा। हमका न खीरा मा मुनाफा भा रहय। अब न लौकी, तोरइम कुछु मिला। वही खेतेम अब धान लगावा जाई। इतना कहकर बड़की अपनी बहू के साथ पच्छेहार चली गईं। ककुवा अपनी बात पूरी करते हुए बोले- गेंदा, गुलाब केरी खेती करय वाले किसानन केरी जमापूंजी मिट्टी मा मिलि गय। पहिले शादी-ब्याह केरे सीजन मा फूलन कय खूब मांग होत रहय। अबसिला फूल बिकबय नाय कीन। आखिरम बेचारे किसान फूलन केरी लहलहाती फसल जोत डारिन।

चतुरी चाचा

इस पर चतुरी चाचा बोले- ककुवा भाई, तुमने जो बात कही है। वह सोलह आने सच्ची है। बड़की भी तुम्हारी बात पर मोहर लगा गयी है। नुकसान सिर्फ फूलों की खेती को ही नहीं हुआ है, बल्कि सब्जी और फल की खेती को भी जबरदस्त हानि पहुंची है। कोरोनो काल में आलू, प्याज, तोरई, लौकी, हरी मिर्ची, हरी धनिया, कटहल, खीरा, खरबूजा, केला, तरबूज इत्यादि नकदी फसलों से अपेक्षित कमाई नहीं हो पाई। बिहार और पश्चिम बंगाल में बाढ़ आ चुकी है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व गुजरात आदि राज्यों में भी नदियां उफान पर हैं। जेठ महीने में जब यह हाल है, तो सावन-भादौं में क्या होगा? राम ही जाने!

हमने ककुवा व चतुरी चाचा की व्यथा समझते हुए कहा- सरकार कुछ ऐसी व्यवस्था करे कि किसान की हर फसल लागत से डेढ़ गुने दाम पर खरीदी जाए। दुनिया का हर उत्पादक अपने उत्पाद का विक्रय मूल्य खुद तय करता है। सब लागत से कई गुने दाम पर अपना माल बेचते हैं। परन्तु, इकलौता किसान ही ऐसा है, जो अपने उत्पाद का मूल्य खुद तय नहीं कर सकता है। अन्नदाता के उत्पाद का विक्रय मूल्य सरकार या बिचौलिया या फिर ग्राहक तय करता है। सरकार को युद्धस्तर पर सब्जी व फल सुरक्षित रखने के लिए अपेक्षित संख्या में कोल्ड स्टोरेज खोलना चाहिए। किसानों को भी दैवीय आपदाओं पर रोने के बजाय अपनी हर फसल का बीमा करवाना चाहिए।

कासिम चचा ने मेरी बात पर खुश होते हुए कहा- पत्रकार भइय्या, आपने आज मेरे मन की बात कह दी है। किसानों का भला हजार दो हजार रुपये की सरकारी मदद से हो ही नहीं सकता। किसान को सही-सस्ता बीज, खाद और कीटनाशक मिलना चाहिए। फल व सब्जी रखने के लिए पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज होने चाहिए। साथ ही, किसान के उत्पादन की बिक्री अपेक्षित मूल्य पर होनी चाहिए। अन्नदाता को उसकी लागत का डेढ़ गुने मिलना ही चाहिए। मोदी सरकार किसानों को ‘किसान सम्मान निधि’ का झुनझुना देकर बहलाने में जुटी है। किसानों को सूखा और बाढ़ से बचाने की कोई पुख्ता व्यवस्था आजतक नहीं हो सकी है।

मुन्शी जी ने कासिम चचा की बात का समर्थन करते हुए कहा- केंद्र सरकार किसानों को अंधेरे में रखकर तीन नए कृषि कानून लेकर आ गयी। इन काले कानूनों को लेकर पूरे देश का किसान कई महीने से आंदोलित है। मोदी सरकार किसान संगठनों की बात सुन-समझ नहीं रही है। भाजपा सरकार की यह हठधर्मिता उसे ही घातक साबित होगी। भाजपा नेता शायद यह भूल गए हैं कि सत्ता की चाबी किसानों के हाथ में ही रहती है। किसानों की बदहाली, महंगाई और बेरोजगारी पर कोई बात नहीं हो रही है। बस, हर तरफ जाति-धर्म की बिषबेलि बोई जा रही है।
इसी बीच चंदू बिटिया गुनगुना नींबू पानी, तुलसी-अदरक की कड़क चाय व पालक-प्याज की कुरकुरी पौकड़ियाँ लेकर हाजिर हो गई।

चतुरी चाचा

जलपान के बाद बड़के दद्दा ने बतकही को आगे बढ़ाते हुए कहा- हर साल आषाढ़, सावन, भादौं महीने में बरसात होती थी। इस बार पूरा जेठ बारिश में ही बीत रहा है। आगामी 25 जून से आषाढ़ लगेगा। निचले इलाकों के खेतों में जलभराव हो जाने से सब्जियों की फसलें चौपट हो रही हैं। उधर, नेपाल की नदियों के उफान से बिहार में बाढ़ आ गयी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि अगले दो महीने बारिश कैसी होती है? अगर अच्छी बरसात होती रही, तो धान की फसल बढ़िया हो जाएगी। किसान का जायद फसल का घाटा खरीफ फसल में पूरा हो जाएगा।

चतुरी चाचा ने विषय परिवर्तन करते हुए कहा- आज सब लोग खेती-किसानी की ही बातें किये जा रहे हो। कोरोना महामारी को तो भूल ही गए। कोरोना महामारी कहीं गई नहीं है। बस, लॉकडाउन के चलते संक्रमण कम हुआ है। लॉकडाउन खुलते ही सब लोग मॉस्क और दो गज की दूरी का पालन भूल गए। कोरोना टीका को लेकर भी अफवाहों का बाजार गर्म है। जबकि कोरोना टीका ही इस महाब्याधि से सुरक्षित रखेगा। दूसरी लहर में हज़ारों लोग बैमौत मारे जा चुके हैं। तीसरी लहर आने की आशंका बलवती है। इसके बावजूद लोग घोर लापरवाही बरत रहे हैं। क्या सारी जिम्मेदारी सरकार की ही है?

हमने सबको कोरोना अपडेट देते हुए बताया कि विश्व में अबतक 17 करोड़ 58 लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। वहीं, 38 लाख 13 हजार से अधिक लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। इसी तरह भारत में अबतक तकरीबन तीन करोड़ लोग कोरोना की गिरफ्त में आ चुके हैं। इनमें तीन लाख 85 हजार से ज्यादा लोग बैमौत मर चुके हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु आदि राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। जबकि उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब व पश्चिम बंगाल इत्यादि राज्यों में कोरोना की रफ्तार सुस्त हो रही है। लेकिन, कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका से सब चिंतित हैं। देश में टीकाकरण अभियान बड़ी तेजी से चल रहा है। अबतक 28 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाई जा चुकी है। हालांकि, कुछ लोग टीका लगवाने में आनाकानी कर रहे हैं।

अंत में परपंचियों ने शनिवार को कोरोना से मरे विश्व प्रसिद्ध धावक मिल्खा सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। साथ ही, सबने एक दूसरे को विश्व योग दिवस (21 जून) की बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। इसी के साथ के आज का प्रपंच समाप्त हो गया। मैं अगले रविवार को चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे पर होने वाली बेबाक बतकही लेकर हाजिर रहूँगा। तबतक के लिए पँचव राम-राम!

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