आज प्रपंच चबूतरे पर आते ही चतुरी चाचा ने मुझे हांक लगाई- रिपोर्टर…ओ रिपोर्टर! मैं जल्दी से मॉस्क पहनकर वहां पहुंच गया। चतुरी चाचा बड़को से बतियाने में पड़े थे। मुझे देखते ही बड़को धाराप्रवाह बोलने लगीं-ई हजार दुई हजार खाता मा आए ते कामु न चलि भइय्या। आँधी, पानी अउ पाथर ते रबी फसल चौपट होय गय। जउनु कछु बचिगा रहय उहिका कोराउना जपिगा। जायद फसलौ परिहाँ कोरउना केरि काली छाया परिगय। टमाटर, कोहड़ा, लौकी, तरोई सब मिट्टी मोल हय। जमा नाय लौटि रही। बन्दी मा बेटवा कय नौकरिव छुटि गय। बुढ़ऊ बीमारय रहत हयँ। पूरा साल कइसन सब पारघाट लागि?
बड़को के इस यक्ष प्रश्न का जवाब चतुरी चाचा के पास नहीं था। तभी चाचा ने मुझे बुला लिया था। बड़को जैसी जीवट महिला किसान के सवाल का जवाब मेरे पास भी नहीं था। फिर भी हमने कहा- बड़को चिंता न करिए। सरकार किसानों के लिए बहुत कुछ कर रही है। कोरोना संकट से पहले निबट लिया जाए। फिर खेती से ही सब बनेगा। साथ में कुछ धंधा-पानी भी किया जाएगा। बैंक से सस्ता ऋण लेकर उन्नत खेती और रोजगार किया जाएगा। सरकार बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने की योजना पर भी काम कर रही है। बड़को बोली- भइय्या ई सब जौ होय जाई तौ हम पँचन का कछु राहत मिलि जाई। इतना कहकर बड़को अपने खेत चली गईं। तभी पच्छे टोला से कासिम मास्टर और मुंशी जी की जोड़ी प्रकट हो गयी। दोनों मॉस्क लगाए थे। दोनों हाथ-पैर साबुन से धोकर कुर्सियों पर विराज गए। कासिम चचा बोले- आजकल तो टीवी और अखबार में सिर्फ मजदूर ही दिखाई दे रहे हैं। लगता है कि जैसे पूरा हिन्दुस्तान सड़कों पर पैदल चल रहा है। मजदूरों की दशा देखकर मन विचलित हो जाता है। एक तरफ इन सबका दुःख-दर्द है। दूसरी तरफ इनसे कोरोना फैलने का भी डर है। कोरोना वाले बड़े-बड़े शहरों से मजदूरों का पलायन हो रहा है। इससे कोरोना का वायरस गांव और कस्बों में भी पहुंचने लगा है। अब बड़ी आफत हो जाएगी।
इसी दौरान पाही वाले खेतों से ककुवा और बड़के दद्दा भी प्रपंच चबूतरे पर आ गए। दोनों सेनिटाइज हो रहे थे। तभी चंदू बिटिया ट्रे में गुनगुना नींबू पानी व गिलोय का काढ़ा लेकर हाजिर हो गई। हमने जैसे ही ट्रे थामी, वह वहां से फुर्र हो गयी। चतुरी चाचा कोरोना से बचने के सारे उपाय अपना रहे हैं। वह पूरे गाँव के लोगों को घर में रहने, साबुन से हाथ धोते रहने और लोगों से दो गज की दैहिक दूरी बनाए रखने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी सक्रियता का नतीजा यह है कि गांव से कोई स्त्री, पुरुष व बच्चा बिना मॉस्क लगाए बाहर नहीं जाता है। चतुरी चाचा की इस सख्ती के कारण विगत 60 दिनों में उनके घर का गेट कोई बाहरी लांघ नहीं पाया। उनकी पोती चंदू भी मॉस्क लगाकर ही चाय-पानी देने आती है। बहरहाल, गिलोय काढ़ा के साथ बतकही आगे बढ़ी। बड़के दद्दा बोले- टीवी वाले तो पहले जमाती-जमाती कर रहे थे। अब मजदूर-मजदूर कर रहे हैं। न्यूज चैनल्स वालों को किसानों, बंटाईदारों, खेतिहर मजदूरों और निम्न मध्यम वर्ग के प्राइवेट नौकरी-पेशा लोगों की मुसीबत से कोई मतलब नहीं है। उनके कैमरा बस हाइवे पर नाच रहे हैं। मजदूरों का भी अपना दुःख है। परन्तु, सड़क पर चल रहे कुछ लाख मजदूरों के अलावा इस देश में करोड़ों लोग कोरोना से कराह रहे हैं। उनके जख्म पर भी मरहम रखना चाहिए। उनके दर्द को भी दिखाया जाना चाहिए।
मुंशीजी ने अपनी सहमति देते हुए कहा- बड़के तुम बात सही कह रहे हो। मध्यम वर्ग के लोगों विशेषकर सवर्णों का दर्द बड़ा अजीब है। वह सड़क पर बंट रही सामग्री ले नहीं सकते हैं। सरकार उन्हें कोई मदद दे नहीं सकती है। यह वर्ग सरकारी मदद का पात्र नहीं है। भले ही घर में दो जून की रोटी न हो। इस वर्ग पर कोरोनाजनित लॉकडाउन कहर बनकर टूटा है। तमाम प्राइवेट नौकरी करने वाले निकाल दिए गए। जो घर से काम भी कर रहे, उन्हें आधी तनख्वाह थमाई जा रही है। ऐसे लोगों का जीवन बड़ा कठिन हो गया है। चतुरी चाचा बोले- मुंशी जी की बात सोलह आने सच्ची है। कोरोना बीमारी से परेशानी कम है। लॉकडाउन से आर्थिक क्षेत्र में दिक्कतें ज्यादा हैं। लोगों का घरेलू बजट बिगड़ गया है। परन्तु, लाखों लोगों की जान बचाने का एक मात्र उपाय लॉकडाउन ही है।
बड़ी देर से अच्छे श्रोता बने बैठे ककुवा बोले- मजूरनव पर तौ बड़ी राजनीति होय रही हय। मजूरन केरे नाम पय मोदी कहियाँ सारे विपक्षी गिरदियाय रहे हयँ। इमा वहू शामिल हयँ, जाऊन अपने राज्यन मा मजूरन केरि रत्तीभर मदद नाय किहीन। महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा अउ पश्चिम बंगाल ते बड़ा पलायन भा हय। ई राज्यन मा दुसरे राज्यन केरे मजूरन का बड़ी दिक्कत हय। हुआँ केरि सरकारै मूकदर्शक बनी हयँ। यूपी की तिना मजूरन खातिर बसें सब कहूँ नाय चलीं।
चतुरी चाचा ने कहा- मजदूरों का पैदल चलना बेहद दर्दनाक और शर्मनाक है। इसकी जवाबदेही तो तय होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने बहुत सही समय पर लॉकडाउन किया। मोदी ने बाकी सारी व्यवस्था अच्छी की। कोरोना संकट से निबटने के लिए केंद्र सरकार बेहतरीन आर्थिक पैकेज भी लायी। बस, मजदूरों के मामले में कहीं न कहीं चूक हुई है। हालांकि, इस मामले में राज्य सरकारें भी सवालों के घेरे में रहेंगी। इसी के साथ आज का प्रपंच समाप्त हो गया। मैं अगले रविवार को फिर प्रपंच चबूतरे पर होने वाली बेबाक बतकही लेकर हाजिर रहूँगा। तबतक के लिए पँचव राम-राम!