अयोध्या। महान भ्रातृभक्त योगिराज भरत की तपस्थली नंदी ग्राम के समीप स्थित पिशाचमोचन कुण्ड पर तीन दिवसीय परम्परागत पिशाची का मेला 7 अप्रैल से 9 अप्रैल तक आयोजित होगा। विशाल सरोवर भरतकुण्ड के पूरब दिशा में स्थित पिशाच मोचन कुण्ड और भरतकुण्ड पर मेले की तैयारियां पूर्ण हो गयी हैं। इस मेले में जिले के कोने-कोने से मेलार्थी एकत्रित होते हैं। आसपास के जिलों के श्रद्धालु भी मेले में स्नान व दर्शन-पूजन हेतु आते हैं।
भरत की तपोभूमि से सटे नंदीग्राम नामक पवित्र स्थल पर स्थित पिशाच मोचन कुंड में लोग स्नान कर मंदिर में दर्शन के साथ पुण्य लाभ अर्जित करेंगे। पिशाच मोचन कुंड की महिमा बड़ी निराली है। कहते हैं सौ बार काशी स्नान से जो पुण्य मिलता है उसकी पूर्ति पिशाच मोचन कुंड में एक बार ही स्नान करने से ही हो जाती है। भरत की तपोभूमि नंदीग्राम से सटे इस स्थान पर हर साल चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को मेला लगता है।
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मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। श्रद्धालु स्नान के बाद भगवान के दर्शन, पिंडदान और गोदान करते हैं। पिशाची के बारे में दो तरह की किंवदंतिया हैं पहली यह कि लंका में युद्ध के दौरान जब मेघनाद के बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने भेजा गया था। बूटी की पहचान न होने के कारण वह पहाड़ उठाकर ही लंका की ओर चल पड़े। जब वे अयोध्या के ऊपर से जा रहे थे तो कुछ देर के लिए समूचे क्षेत्र में अंधकार छा गया।
आसमान की ओर देखने पर किसी दानव शक्ति द्वारा अयोध्या पर आक्रमण किए जाने की आशंका में भरत जी ने बाण चला दिया। बाण लगने के कारण हनुमान जी पर्वत समेत गिर गए थे। बताया जाता है कि जिस स्थान पर हनुमान जी गिरे थे वहां कुंड बन गया था। उसी को पिशाच मोचन कुंड के नाम से जाना जाता है। दूसरी किंवदंती है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ब्रह्मा हत्या के पाप से मुक्त होने से लिए पिशाच मोचन कुंड में स्नान किया। इस कारण पिशाच मोचन कुंड की मान्यता है कि ना सौ काशी ना एक पिशाची।
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रामनगरी अयोध्या में 22 जनवरी को सम्पन्न हुए रामलला मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा को देखते हुए इस बार मेले में भारी भीड़ होने की संभावना है। मेला परिसर में साफ-सफाई प्रकाश व्यवस्था का अभाव है। दोनों कुण्डों के चारों ओर आज तक प्रकाश की व्यवस्था नहीं की गयी, जिसमें रात्रि में दुकानदारों को दिक्कतें हो रही हैं।
गौरतलब है कि पिशाची मेले का पौराणिक महत्व है। कहावत है कि ‘न सौ काशी न एक पिशाची’ कहने का अभिप्राय यह है कि सौ बार काशी में स्नान करने पर जो पुण्य लाभ होगा वहीं भरतकुण्ड में पिशाचमोचन कुण्ड में एक बार स्नान करने पर ही पुण्य लाभ हासिल होगा।
रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह