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बेव़फाई का ख़िताब

बेव़फाई का ख़िताब

अपनेपन का हिसाब भी वो बेहिसाब दे गयी
चंद खुशियाँ दीं लेकिन गम लाज़वाब दे गयी।

साथ-साथ जीने मरने के सजाए थे जो सपने
तोड़कर के वो सारे के सारे ही ख्वाब दे गयी।

सीखकर वो मुझ से इश्क़ की सब बारीकियाँ
मुझे ही वो इश्क़ सिखाने वाली किताब दे गयी।

मैं तो अब भी करता हूँ उसी से सच्ची मोहब्बत
वो भले ही मुझको बेव़फाई का ख़िताब दे गयी।

मोहब्बत की बीमारी भी लाईलाज है ऐ निर्मल
डाक्टरों से पहले तो धड़कन ही जबाब दे गयी।

आशीष तिवारी निर्मल, रीवा मध्यप्रदेश

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