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शिक्षा के कायाकल्प का प्रयत्न

स्वतन्त्र भारत में पहली बार भारतीय परिवेश के अनुरूप नई शिक्षा नीति का निर्माण किया गया है। शैक्षणिक रूप में प्राचीन भारत सदैव शिखर पर रहा। उसे विश्वगुरु कहा जाता था। विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया। स्वतन्त्रता के बाद भी राष्ट्रीय गौरव व स्वाभिमान के अनुरूप शिक्षा नीति का निर्मांण नहीं किया गया। इस कमी को वर्तमान केंद्र सरकार ने दूर किया।

शिक्षकों की भूमिका

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि शिक्षक भारत को पुनः विश्वगुरु बना सकते है। नई शिक्षा नीति ने यह अवसर उपलब्ध कराया है। शिक्षा जगत से जुड़े सभी लोगों को यह महान दायित्व समझना चाहिए। भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज हमारे पास नीति है, परिवेश भी है। यदि हम संकल्प लेंगे तो आने वाले कुछ वर्षों में यह संभव है। समाज को साथ लेने के लिए सकारात्मक आन्दोलन करें। होसबोले ने भोपाल में इक्कीसवीं सदी में शिक्षक शिक्षा का कायाकल्प विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित किया।

महत्वपूर्ण दस्तावेज

होसबले ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसमें लाखों लोगों ने योगदान दिया है। विश्वभर के लोकतांत्रिक देशों में कहीं भी ऐसी नीति नहीं है जिसको बनाने में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी हो। यह हमारे संविधान की तरह ही इसे जनता ने स्वयं के लिए बनाया है। पूर्व में भी शिक्षा जगत को लेकर अच्छी नीतियां बनाईं गईं लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक तरीके से नहीं हो पाया। समाज में यह संकल्प दिखाई देता है कि हम भारत को विश्व के अन्य देशों के मुकाबले आगे रखें। विद्या वैश्विक है, यह सार्वदेशिक है। शिक्षक अपने विद्यार्थी को मात्र एक चौथाई ही सिखाता है लेकिन वह बाकी तीन हिस्सों के लिए भी उसके मन में भावना तैयार करता है,वातावरण का निर्माण करता है। दूसरा चौथाई भाग अपनी बुद्धि से,तीसरा चौथाई भाग अपने सहपाठियों से सीखता है और अंतिम चौथा भाग वह कालक्रम में सीखता है।

समाज व सरकार

समाज, सरकार और शिक्षण संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि शिक्षक को पर्याप्त सम्मान मिले। आज कहा जाता है कि शिक्षकीय दायित्व प्रोफेशन है। शिक्षण व्यवसाय या नौकरी नहीं है। यह तपस्या,साधना और मिशन है। यदि शिक्षक को समाज में अलग से महत्व चाहिए तो उसे राष्ट्रधर्म के अनुसार जीना होगा। हमारे समाज में ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जिसमें ऐसे शिक्षकों को विद्यार्थी अंतिम सांस तक याद रखते हैं। उन्होंने शिक्षकों से आह्वान किया कि वे शिक्षण संस्थाओं में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रयास करें। यह वर्तमान पीढ़ी का दायित्व है कि भारत की शिक्षण प्रणाली एक आदर्श मॉडल के रूप में स्थापित हो और विश्व के अन्य देश इसकी चर्चा करें। इसके पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी कह चुके है कि यह शिक्षा नीति भारत को विश्वगुरु बनाएगी।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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