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विश्वगुरु की वैदिक परंपरा


कभी भारत विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित था। उसने यह गौरव ज्ञान के बल पर अर्जित किया था। सम्पूर्ण वसुधा में शांति व सौहार्द के स्वर यहीं से गूंजते थे। सबके सुख की कामना की गई। वैदिक साहित्य के विद्वान विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने गोरखपुर में इन्हीं विचारों का विस्तार से उल्लेख किया। कहा कि कहा कि गुलामी के काल खंड को छोड़ दें तो भारत वैदिक काल से ही ज्ञान पिपासु रहा है। इसी नाते उसे विश्वगुरु का दर्जा हासिल था।

गोरक्षनगरी का इसमें बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा। यह परम्परा अब भी जारी है। शिक्षा ही संसार और समाज को सुंदर बनाने का जरिया है। आज भी पुस्तकीय ज्ञान के साथ शिक्षण संस्थाओं को संस्कार भी देना चाहिए। वह गोरखपुर में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अट्ठासीवें संस्थापक सप्ताह समारोह अवसर पर बोल रहे थे। योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में पिछले छह साल में देश में सकारात्मक बदलाव आए हैं।

जिसके चलते अब पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। भारत का अग्रणी देशों में शामिल हुआ है। हम सभी को समाज और देश के लिए कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए। शिक्षण संस्थाएं इस कार्य को सम्भव बना सकती है। संस्था और पूरे प्रदेश को बेहतर बनाने के लिए लगातार काम करना होगा। योगी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का भी यही उद्देश्य है।

उन्होेंने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना के अभूतपूर्व संकट में प्रधानमंत्री की अगुवाई में जो असाधारण कार्य हुए वह तकनीकी से ही सम्भव थे। सभी लोगों को तकनीक से जुड़ना चाहिए। चुनौतियों को अवसर और असफलता को सफलता में बदलने वाला ही जीवन मे सफल होता है। योगी आदित्यनाथ व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ की स्मृति में लिखी पुस्तक भारतीय संस्कृति का विश्व में प्रसार का विमोचन भी किया।

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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