लखनऊ। विवाह एक संस्कार है और संस्कार को संविधान से जोड़ना ठीक नहीं है। संविधान का काम है, जब मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा हो, वहां हस्तक्षेप करे। ये बातें आल इंडिया भिक्खु संघ (All India Bhikkhu Sangh) के उपाध्यक्ष भदंत शांति मित्र ने कही। वह शनिवार को अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित प्रेसवार्ता को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कोरोना की तरह आज सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत में भी वायरस आ गया है, लेकिन इसे प्यार और सद्भाव से सुलझाने की जरूरत है।
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भदंत शांति मित्र ने एक सवाल के जवाब में कहा कि हम समलैंगिक विवाह के पक्ष या विपक्ष में नहीं हैं। हम जो सत्य है, उसके पक्ष में हैं, क्योंकि बौद्ध धर्म हमेशा मध्यम मार्गी होता है। उन्होंने कहा कि आम के वृक्ष पर बंझा नामक एक रोग आ जाता है। उसे काटकर निकाला जाता है, उसी तरह समलैंगिक एक बंझा है। इसमें जो कुछ भी हमारी संस्कृति की परिकल्पनाएं हैं, वे विलुप्त हो जाएंगी।
उन्होंने कहा कि समलैंगिक को गुरु शिष्य परंपरा की श्रेणी तो दी जा सकती है, लेकिन विवाह से इसे नहीं जोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा कि यदि समलैंगिक को विवाह से जोड़ दिया जाय तो उसमें मां शब्द ही विलुप्त हो जाएगा। यदि मां विलुप्त हो गयी तो फिर संसार और संस्कार की परिकल्पना ही समाप्त हो जाएगी।
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उन्होंने कहा कि हमारे हिंदू, बौद्ध, सिख आदि में अनेकों परंपराएं हैं। उनमें यह परंपरा भी एक हो सकती है। इसको गुरु-शिष्य परंपरा कहा जा सकता है, लेकिन पति-पत्नी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि समलैंगिक संभोग तो कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह प्रकृति के विरूद्ध है।
यदि कोई साथ रहना चाहता है तो वह गुरु शिष्य परंपरा में रह सकता है। मथुरा में सखी संप्रदाय इसके उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि मित्रता का जीवन पत्नी या मां का रुप नहीं ले सकता। उन्हें मित्रवत जीवन माना जा सकता है। इसमें विवाह नाम का शब्द कहीं नहीं जोड़ा जा सकता है।