सीएए और एनआरसी को लेकर विरोध शांत भी नहीं हुआ था कि केंद्र की मोदी सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने का आदेश दे दिया। एक तरफ गृहमंत्री अमित शाह एनपीआर और एनआरसी के बीच कोई संबंध न होने की बात कह रहे हैं, तो वहीं विपक्ष सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए कह रही है कि एनआरसी की दिशा में एनपीआर पहला कदम है।
जाहिर है एनआरसी और सीएए पर छिड़ी बहस के बीच एनपीआर को अपडेट करने का आदेश सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। इसी बीच वामपंथी दल भी इस मुद्दे को देश से खिसकती अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के अवसर के रुप में देख रही है। इसी सिलसिले में वामदलों ने 1 जनवरी से लेकर 7 जनवरी तक देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। जबकि 8 जनवरी को आर्थिक मंदी और आम लोगों से जुड़े मुद्दे पर वामपंथी दल धरना देगी।
बीते 18 दिसंबर को वामपंथी दल ने नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी के खिलाफ भारत बंद बुलाया था। इस बंद में अलग-अलग राजनीतिक दल और सामाजिक संस्थाओं ने समर्थन दिया था। इस बंद में देश के अलग-अलग हिस्सों से हिंसा की खबरें सामने आयी थी। नागरिकता से जुड़े कानून के विरोध के कारण दिल्ली और उत्तर प्रदेश से सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान और कई लोगों के मारे जाने की खबरें सामने आयी।
नागरिकता संशोधन कानून में केंद्र की मोदी सरकार ने भारत में नागरिकता पाने की अवधि को 11 साल से घटाकर 5 साल कर दी। ये संशोधन केवल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक प्रताड़ना से जूझ रहे अल्पसंख्यकों के लिए किया गया। इसमें मुस्लिम धर्म को छोड़कर बाकी बचे 6 धर्म हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, पारसी और बौद्ध को शामिल किया गया है। विपक्ष इसे मुस्लिमों के खतरा बता रहा है, तो वहीं सरकार इसे अल्पसंख्यकों के कल्याण की बात कर रही है। सरकार ने इस बिल को संसद के दोनों सदनों से पास कराकर विधेयक शक्ल दे चुकी है।