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क्या है 3 घंटे का नियम, जिसे नारायणमूर्ति-सुधा मूर्ति ने बच्चों की परवरिश के लिए अपनाया?

इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति काफी चर्चाओं में रहते हैं। हाल ही में नारायण मूर्ति ने 70 घंटे काम की वकालत की थी, जिस पर बहस छिड़ गई थी। हालांकि, अब बच्चों की परवरिश पर उन्होंने अपना विचार साझा किया है। उनका कहना है कि घर में पढ़ाई का माहौल बनाना माता-पिता का सबसे बड़ा कर्तव्य है।

क्या बोले मूर्ति?
दरअसल, बंगलूरू में एक कार्यक्रम में बोलते हुए 78 वर्षीय मूर्ति ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई के लिए घर में अनुशासित माहौल बनाना माता-पिता की जिम्मेदारी है। यह पूछे जाने पर कि सोशल मीडिया के डिस्ट्रैक्शन के बीच छात्र कैसे ध्यान केंद्रित कर सकते हैं? मूर्ति ने कहा कि माता-पिता यह उम्मीद करते हुए फिल्में नहीं देख सकते कि बच्चे अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाएंगे।

बच्चों के साथ खुद पढ़ते थे नारायण और सुधा मूर्ति
इन्फोसिस के संस्थापक मूर्ति ने बताया कि कैसे उन्होंने और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति ने अपने बच्चों अक्षता और रोहन की पढ़ाई को लेकर घर में अनुशासन बनाए रखा। उन्होंने बताया कि जब उनके बच्चे स्कूल में थे तब वह और उनकी पत्नी रोजाना तीन घंटे से ज्यादा समय उनके साथ पढ़ाई करते थे। इस अभ्यास से न केवल सीखने के लिए अनुकूल माहौल बना, बल्कि बच्चों को अपने माता-पिता से स्पष्टीकरण मांगने का भी अवसर मिला।

मूर्ति पॉल हेविट की किताब ‘कॉन्सेप्टुअल फिजिक्स’ के 13वें संस्करण का लोकार्पण करने के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि जब माता-पिता खुद फिल्म देखने जैसे कामों में व्यस्त रहते हैं तो वे अपने बच्चों से पढ़ाई में ध्यान लगाने की उम्मीद नहीं कर सकते।

टेलीविजन देखने की सख्त थी मनाही
शाम को साढ़े छह बजे से साढ़े आठ बजे तक उनका घर पूरी तरह से पढ़ाई के लिए समर्पित होता था। टेलीविजन देखने की सख्त मनाही थी। उन्होंने कहा, ‘मेरी पत्नी का तर्क था कि अगर मैं टीवी देख रही हूं तो मैं अपने बच्चों को पढ़ने के लिए नहीं कह सकती। इसलिए उन्होंने कहा था कि मैं अपना टीवी देखने का समय कुर्बान कर दूंगी और मैं भी पढ़ाई करूंगी।’

‘नहीं, नहीं, तुम पढ़ाई करो…’
उनका मानना है कि माता-पिता को बच्चों के लिए उदाहरण बनना चाहिए। बच्चों को पढ़ाई के लिए कहना और खुद मनोरंजन में लगे रहना, बच्चों को गलत संदेश देता है। उन्होंने कहा, ‘अगर माता-पिता खुद फिल्में देखने जा रहे हैं और फिर बच्चों से कह रहे हैं कि ‘नहीं, नहीं, तुम पढ़ाई करो’ तो यह तरीका काम नहीं करेगा।’

कोचिंग कक्षाओं पर भी कसा तंज
मूर्ति ने कोचिंग कक्षाओं के बारे में भी अपनी शंकाएं व्यक्त कीं। उन्होंने सुझाव दिया कि वे अक्सर उन छात्रों के लिए अंतिम उपाय होते हैं, जिन्होंने कक्षा में ध्यान नहीं दिया होता है। उनका मानना है कि पढ़ाई मुख्य रूप से कक्षा में होनी चाहिए। उसके बाद माता-पिता घर पर बच्चों की मदद करें।

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