उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में पदस्थ राज्य सूचना आयुक्त द्वारा जिस प्रकार नियम विरुद्ध तरीके से पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्रों को स्वीकार कर दंड माफी की जा रही है के संदर्भ में जनपद सिद्धार्थनगर मुख्यालय निवासी देवेश मणि त्रिपाठी द्वारा राज्यपाल के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश तथा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी पत्र लिखकर भ्रष्टाचार को रोकने एवं संबंधित राज्य सूचना आयुक्त के विरुद्ध उचित कार्यवाही किए जाने का अनुरोध किया गया है।
उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में कार्यरत राज्य सूचना आयुक्त द्वारा नियम विरुद्ध तरीके से पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए उस पर अधिरोपित #अर्थदंड को बड़े पैमाने पर माफ किया जा रहा है। वर्ष 2021 में ही मात्र 759 पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जिसमें से मात्र सुनवाई कक्ष संख्या यस सेवन के समक्ष कुल 379 पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र तथा सुनवाई कक्ष संख्या एस नाइन के समक्ष 166 पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया।
उक्त प्रस्तुत पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्रों में से बड़े पैमाने पर ऐसे प्रार्थना पत्र भी रहे जो प्रक्रियात्मक त्रुटि की श्रेणी में नहीं आते परंतु राज्य सूचना आयुक्त प्रमोद कुमार तिवारी तथा राज्य सूचना आयुक्त किरण बाला चौधरी द्वारा ऐसे प्रकरणों को भी सभी नियमों को ताक पर रखते हुए स्वीकार किया गया तथा उस पर अधिरोपित अर्थदंड को माफ करते हुए जन सूचना अधिकारियों को लाभ पहुंचाया गया इस। प्रकार केवल अधिनियम विरुद्ध ही कार्य नहीं किए गए बल्कि उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था को भी ताक पर रखकर विधि विरुद्ध कार्य किया गया। जिसके सापेक्ष शिकायतकर्ता द्वारा मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए इसकी शिकायत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा मानव अधिकारों का हनन बताते हुए इसकी शिकायत उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा राज्यपाल से साक्ष्य सहित शिकायत प्रस्तुत कर विस्तृत जांच कराए जाने का अनुरोध किया है।