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अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) एवं उपासना का महत्व

    ममता त्रिपाठी

हमारे हिंदू कैलेंडर में हर तीसरे साल एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है। जिसे अधिक मास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर सूर्य और चंद्र वर्ष की गणना से चलते हैं। अधिक मास चंद्र साल का अतिरिक्त भाग है। जो कि 32 माह 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से बनता है। सूर्य और चंद्र वर्ष के बीच इसी अंतर को पाटने या संतुलन बनाने के लिए अधिक मास लगता है।

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दूसरी ओर सूर्य वर्ष में 365 दिन होते हैं और चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं. इसी तरह 1 साल में चंद्र और सूर्य वर्ष में 11 दिनों का अंतर होता है और 3 साल में यह अंतर 33 दिनों का हो जाता है। इन्हीं 33 दिनों को अधिक मास या मलमास का नाम दिया गया है, परंतु इस माह का कोई स्वामी ना होने से मलमास दुखी रहा करता था। उसने अपनी व्यथा श्री कृष्ण भगवान से कही तब श्री कृष्ण भगवान ने उसे आशीर्वाद दिया कि अधिक मास का महत्व सभी मास से अधिक होगा। लोग इस पूरे मास में दान पुण्य का कार्य करेंगे एवं इस मास को मेरे नाम पर पुरुषोत्तम मास कहा जाएगा।

अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) एवं उपासना का महत्व

जैसा कि हम जानते हैं प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों (जल, अग्नि वायु,आकाश पृथ्वी)से मिलकर बना है। अधिक मास में अपने धार्मिक औरआध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपने भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्धत होता है और पुरुषोत्तम मास में अपने प्रयासों से स्वयं को स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई ऊर्जा से भर जाता है। कहा जाता है, इस दौरान किए गए प्रयासों से किसी भी प्रकार की कुंडली दोष का भी निराकरण हो जाता है।

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2023 में अधिक मास 18 जुलाई मंगलवार से प्रारंभ होकर 16 अगस्त बुधवार तक रहेगा पूजा जप तप दान पुण्य के लिए अधिक मास बहुत ही पवित्र माना गया है। इस समय दान पुण्य के साथ भागवत, तथा भगवान शिव या भगवान विष्णु से जुड़े यज्ञ और अनुष्ठान करने का बहुत ही महत्व है। कहते हैं इस माह आपके द्वारा दान किया गया 1 रूपया भी आपको 100 गुना फल देता है। कहते हैं कि अधिक मास में 33 वस्तुओं का दान करना चाहिए। इस माह में मालपुआ दान करने का और श्रीमद् भगवत गीता पढ़ने का भी अत्यधिक महत्व है।

अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) एवं उपासना का महत्व

अधिक मास में सभी शुभ व पवित्र कार्य वर्जित माने गए हैं। कहते हैं कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसी कारण हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, विवाह, सगाई एवं गृह प्रवेश आदि का इस माह में निषेध किया गया है।

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