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बंगाल में बदहाल व्यवस्था

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद शुरू हुई राजनीतिक हिंसा का दौर जारी है। इसकी शुरुआत भाजपा समर्थकों के घरों पर हमले व आगजनी से हुई थी। वीरभूमि में इस नफरत की आग ने नरसंहार को अंजाम दिया। इन सभी घटनाओं में एक बात सामान्य रही है। वह यह कि सभी में स्थानीय पुलिस व प्रशासन मूक दर्शक बना रहा। चर्चा रही कि अराजक तत्वों को सत्ता पक्ष का संरक्षण रहा है।

इसी प्रकार विधानसभा में भी हिंसक झड़प हुई। तृणमूल कांग्रेस भारी बहुमत में है। जाहिर है कि संघर्ष में उसका पडला बहुत भारी रहा होगा। बताया गया कि उस समय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सदन में मौजूद थी। भाजपा विधायकों पर हमले का इशारा भी उधर से हुआ था। वीरभूमि घटना पर भी हकीकत सामने आ रही है। यह खुलासा हो रहा है कि वोटबैंक सियासत के चलते अराजक तत्वों के हौसले बुलंद है। वह कानून को अपने हांथों में ले रहे है। लेकिन प्रशासन पर ऊपर से दबाब है,इसलिए वह उचित कार्यवाई करने से बच रहे है।

जांच एजेंसी को स्थानीय लोगों ने बताया कि बगटुई गांव में लोगों के घरों को बाहर से बंद कर आग लगा दी गई थी। इसमें किसी के जिंदा बचने की संभावना नहीं थी। शवों को भी निकालने में करीब बारह घंटे लगे। इतना ही नहीं आगजनी के पहले करीब एक दर्जन घरों में आग लगाने से पहले तोड़फोड़ की गई। वहां रहने वालों की बर्बरता से पिटाई की गई थी। उनकी ऐसी स्थिति नहीं रह गई थी कि वह घर के बाहर तक आ सकें। इसके बाद सभी घरों को बाहर से बन्द करके आग लगा दी गई। आग भयावह थी। अग्निशमन की दो गाड़ियों को आग काबू करने में बारह घण्टे से अधिक का समय लगा। उन घरों में बन्द लोगों की त्रासदी का अनुमान लगाया जा सकता है। आगजनी की सूचना मिलने के करीब एक घण्टे बाद अग्निशमन की दो गाड़ियां वहां पहुंची थी। इस एक घण्टे में आग का तांडव पूरी तरह फैल चुका था। स्थानीय थाने की पुलिस व

राज्य के पुलिस महानिदेशक के बयान परस्पर विरोधाभाषी है। इस आधार पर भी ऊपरी दबाब का अनुमान लगाया जा सकता है। मृतकों की संख्या दावों से कहीं ज्यादा बताई जा रही है। किंतु दबाब के चलटर जिला व राज्य प्रशासन इसकी पुष्टि करने से बच रहा है। घटनास्थल से थाने की दूरी करीब ढाई किलोमीटर है। किंतु पुलिस सूचना मिलने के दो घण्टे बाद पहुंची। इस दौरान हमलावरो ने आगजनी का पूरा इंतजाम कर लिया था।

बंगाल में हिंसक राजनीतिक हंगामा केवल सड़क तक सीमित नहीं है। विधान सभा में भी यह नजारा देख गया। सदन में भाजपा विधायक वीरभूमि नरसंहार का मुद्दा उठाया था। यह विषय गृहविभाग से संबंधित है।

इसका प्रभार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास है। लेकिन वह भाजपा विधायक द्वारा यह मुद्दा उठाने ने नाराज हो गई। उनकी नाराजगी को तृणमूल कांग्रेस विधयकों ने समझ लिया। उन्होंने भाजपा विधायकों पर हमला बोल दिया। मार पीट की गई। जिन भाजपा विधायकों की पिटाई हुई,उन्हीं को विधान सभा सत्र से निलम्बित कर दिया गया। राज्यसभा सदस्य व उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल के नेतृत्व में जांच टीम यहां गई थी। इसमें सांसद सत्यपाल सिंह, के सी राममूर्ति, सुकांतों मजूमदार और भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता भारती घोष थीं। इस जांच दल के साथ क़स्बा सैंथिया में तृणमूल कार्यकर्ताओं द्वारा धक्का मुक्की की गई। सड़क पर ट्रक लगाकर रास्ता जाम कर दिया। ये लोग किसी बागतुई पहुंचे। बृजलाल ने आरोप लगाया कि यह नरसंहार पश्चिम बंगाल में सत्ता पक्ष पक्ष के लोगों द्वारा नियमित चलाये जा रहे” तोलाबाज़ी”कट मनी नमक ज़बरदस्ती की जा रही वसूली का परिणाम है।

कोलकाता उच्चन्यायालय द्वारा इसकी जाँच सीबीआई को सौंपी गयी है। घटना- स्थल की जाँच केन्द्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला को सौंपी है। ममता बनर्जी सीबीआई को भी धमकी दे रही हैं। उन्हें डर है कि सीबीआई की जांच से तृणमूल के बड़े नेताओं की अवैध वसूली का भंडाफोड़ हो जाएगा। केन्द्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को यहां लागू नहीं किया जा रहा है।पश्चिम बंगाल से कम्युनिस्ट पार्टियों का तो सफाया हो गया है। लेकिन उनके विचार ममता बनर्जी के नेतृत्व में संरक्षित व संवर्धित हो रहे हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि कम्युनिस्ट कैडर करीब एक दशक पहले ही तृणमूल कॉंग्रेस में शामिल हो चुका है। यहां सरकार तो बदली लेकिन राजनीति व शासन का अंदाज पुराना है।

जिस प्रकार वामपंथियों ने तीन दशक तक पश्चिम बंगाल में शासन चलाया था, ममता बनर्जी भी उसी मार्ग का अनुसरण कर रही हैं। वह जानती हैं कि इस अराजक कैडर के बल पर यहां लंबे समय तक शासन किया जा सकता है। यह कैडर विरोधियों का हिंसक तरीके से दमन करता है। भय का वातावरण निर्मित करता है। इससे सत्ता पक्ष के विरोधियों का मनोबल गिराया जाता है। चुनावी सभाओं में ममता बनर्जी विरोधियों को खुली धमकी दे रही थी। चुनाव बाद विरोधियों को प्रताड़ित किया जा रहा है। ममता बनर्जी का कहना था कि केंद्रीय सुरक्षा बल चुनाव तक हैं,उसके बाद एक एक को देख लिया जाएगा। आज इसी पर अमल हो रहा है। संवैधानिक व्यवस्था व भावना का उल्लंघन हो रहा है।

(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं।)

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