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बिन फेरे हम तेरे

कहने में और सुनने में कुछ अजीब लगता है, लेकिन ये भी एक सच्चा रिश्ता है ,दिल का रिश्ता है। जब दिल से दिल जुड़ जाता है ,तो चाहे हम साथ-साथ ना रहे, लेकिन हमे एक दूसरे की फिक्र होती है, एक दूसरे के प्रति लगाव होता है, इसी को प्यार कहा जाता है।

नीतू और सोहन का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है, उन्होंने शादी नही की और ना ही साथ-साथ रहते है, लेकिन एक दूसरे की फिक्र रहती है उन्हे, एक दूसरे का ख़्याल रखते है। नीतू और सोहन को आज 20 साल हो गये है इस रिश्ते को निभाते हुए, कभी उन्होंने मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। दुःख-सुख में हमेशा एक दूसरे के साथ रहे। आज समाज भी उनको इज़्ज़त की नज़र से देखता है, क्योंकि सब आज जान गये हैं कि इनका रिश्ता तन का नहीं मन का है, इनका रिश्ता दिखावा नहीं, सच्चा है।

नीतू एक साधारण परिवार से थी। ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी। बड़ी दो बहनो की शादी हो गई एक भाई था। भाई चाहता था कि पहले नीतू की शादी हो जाए तब वो करेगा , हालांकि वो नीतू से बडा़ था। अच्छा घर-बार देखकर नीतू की शादी कर दी गई। नीतु के भाई सूरज का एक बचपन का दोस्त था सोहन, सूरज के घर अक्सर उसका आना-जाना होता था। वो नीतू को पसन्द करता था और नीतु भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी। लेकिन किसी में कहने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि सोहन उनकी जातबिरादरी का नही था और वो जानते थे कि उनकी शादी नहीं हो सकती है। इस बात को न ही घर वाले और न ही गाँव वाले स्वीकार करेंगे।

नीतू की शादी के बाद उन्हें नीतू के ससुराल वालो का असली चेहरा तब नज़र आया, जब नीतू शादी के बाद पगफेरे के लिए नहीं आ पाई, लेकिन जब वो कुछ दिनों के बाद आई तो उसके चेहरे पर चोटों के निशान देख कर उसके परिवार वाले दंग रह गये। पूछने पर नीतू ने बताया कि उन्होने पैसो की माँग की है। इस तरह अक्सर 10-15 दिनों के अन्तराल में नीतू मार खाकर आती और पैसे ले जाती।

सोहन का अक्सर नीतू के गाँव किसी न किसी काम से चक्कर लग जाता था। सोहन को नीतू की मार और पैसों के बारे में भी सब पहले से पता था, उसने सूरज से बहुत बार कहा…… सूरज, नीतू को घर वापिस ले आओ लोग किसी दिन नीतू को मार देंगे। ऐसे लालची लोगो से क्या रिश्ता रखना। लेकिन सूरज और उसका परिवार नहीं मानते, थे कहते ….गाँव वाले क्या कहेंगे, कि शादीशुदा लड़की को घर में बैठा लिया। तुम्हे तो पता है यहां गांव में ऐसा थोडे़ ही होता है ।

एक दिन सोहन जब नीतू के गांव किसी काम से गया तो ना जाने उसके मन में क्यो बैचैनी हो रही थी, वो नीतू के घर चला गया, पहले भी वो सूरज के साथ कभी-कभी चला जाता था नीतू के घर। जब वो वहां पहुंचा तो वहां का मंजर देख कर उसके पैरो तले से ज़मीन निकल गई, नीतू के तन के कपडे़ चीथड़े बन चुके थे और उसके माथे से खून बह रहा था। लेकिन अभी भी उसे मारा जा रहा था और वो गिड़गिड़ा कर बार-बार एक बात कह रही थी, मेरा भाई इतने पैसे कहां से लाएगा।…..हमें नही पता जहां से मरज़ी लाओ हमे तो पैसे चाहिए, वरना अपने घर वापिस चली जाओ।….हमने कोई धर्मशाला नहीं खोली जो तुम्हें खिलाते रहें।

सोहन यह सब देख कर बोखला गया और नीतू को साथ लिवा लाया। जब नीतू घर पहुंची और सोहन ने सारा किस्सा सूरज को बताया तो सूरज फिर से वही बात दोहराने लगा कि हम नीतू को घर नही रख सकते, इसकी अब शादी हो गई है। इसका जीना-मरना अब वहींपर है, वहीं अब इसका नसीब है। जैसे लाए हो वैसे ही उसे वापिस छोड़ आओ।

सोहन नहीं माना और नीतू भी वापिस उस नरक में नहीं जाना चाहती थी। सोहन ने कहा….मेरी अब शादी हो गई है, इसलिए अब हम शादी तो नहीं कर सकते लेकिन मैं तुम्हे उस नरक में भी वापिस नहीं जाने दूंगा। शहर में मेरा एक दोस्त है, मैं तुम्हें उसके घर कुछ समय के लिए छोड़ दूँगा और तुम्हारी शादी करा दूंगा। लेकिन नीतू के मन में सोहन बसा हुआ था। वो उसी की यादो के सहारे जीवन बिताना चाहती थी। सोहन, नीतू को शहर ले आया और अपने दोस्त के घर ठहरा दिया। सोहन का दोस्त एक थाने में दारोगा था। उसके परिवार ने नीतू का बहुत ख्याल रखा और उसकी हर संभव मदद भी की।

नीतू को तलाक दिलवाया और उसे सिलाई का कोर्स भी करवाया, सोहन ने उसे सिलाई मशीन ले दी ताकि वह अपना खर्चा खुद उठा सके और वो किसी पर बोझ ना बने। सोहन समय-समय पर शहर आता रहता है, नीतू की खै़रियत जानने के लिए। दुःख-सुख में भी हमेशा उसकी मदद करता है। नीतू अपने इस बेनाम रिश्ते से बंधी बिन फेरो की बिन ब्याही दूल्हन की तरह अपनी ज़िन्दगी काट रही है। लेकिन वो खुश है अपने इस रिश्ते से, उनका रिश्ता पावन-पवित्र रिश्ता है। कोई कसमें नहीं कोई वादे नहीं, फिर भी वो मन से इक-दूजे के हैं। आज सबने उनके इस बेनाम रिश्ते को स्वीकार लिया है। तो दोस्तों ये है बिन फेरे के हमसफ़र, सच्चे जीवन साथी, सच्चा प्यार है इनका, जिसमें कोई ख्वाहिश नहीं, एक-दूजे को पाने की हवस नहीं, बस प्यार है।

प्रेम बजाज, जगाधरी (यमुनानगर)

प्रेम बजाज, जगाधरी (यमुनानगर)

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