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श्री गुरुग्रंथ साहिब के संकलनकर्ता श्री गुरु अरजन देव महाराज का प्रकाश पर्व का आयोजन

हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुरवाणी में ‘गुरु अरजन सच सिरजन हारा।’ ‘जपउ जिन अरजन देव गुरु फिर संकट जोनि गरभ न आयउ।’ शबद कीर्तन गायन एवं नाम सिमरन करवाया।

लखनऊ। शहीदों के सरताज, सुखमनी साहिब जैसी मीठी और निर्मल वाणी के रचयिता और सिखों के पांचवें गुरु साहिब श्री गुरू अरजन देव जी महाराज का प्रकाश पर्व (जन्मोत्सव) आज 23 अप्रैल शनिवार को ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी नाका हिन्डोला, लखनऊ में बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया।

श्री गुरुग्रंथ साहिब के संकलनकर्ता श्री गुरु अरजन देव महाराज का प्रकाश पर्व का आयोजन

शाम का दीवान 6.30 बजे रहिरास साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ जो 9.30 बजे तक चला। इसमें हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुरवाणी में ‘गुरु अरजन सच सिरजन हारा।’ ‘जपउ जिन अरजन देव गुरु फिर संकट जोनि गरभ न आयउ।’ शबद कीर्तन गायन एवं नाम सिमरन करवाया। मुख्य ग्रन्थी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने साहिब श्री गुरू अरजन देव के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरू जी का जन्म आज ही के दिन गोइंदवाल साहिब अमृतसर में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी जी था।

गुरु जी का ज्यादातर बचपन गोइंदवाल साहिब में बीता। बचपन से ही उन्होंने गुरु मर्यादा सीखी जिसका फल यह हुआ कि गुरुगद्दी पर आसीन होने से पहले उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि ’’हे करतार’’ ऐसी बुद्धि बख्शो जिससे संतों, साधुओं की सेवा करें और उनके चरणों का आसरा लेकर जीवन सफल करें। प्रभु सिमरन और माता पिता की सेवा को देखकर उनके पिता जी ने आप में सभी गुण देखकर आपको गुरु गद्दी सौंप दी।

उन्होंने सेवा आरम्भ कर एक सरोवर बनवाया जिसका नाम श्री अमृतसर रखा। सरोवर के बीचोबीच में श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना की, जिसकी नींव प्रसिद्ध फ़कीर ‘मीयांमीर’ से रखवायी। श्री हरिमंदिर साहिब के निर्माण के बाद उन्होंने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के सम्पादन का कार्य आरम्भ कर दिया। सभी गुरूओं और भक्तों की बाणियों को संकलन करके एक ग्रन्थ तैयार करने की सेवा उन्होंने भाई गुरुदास जी को सौंपी।

रामसर सरोवर के किनारे बैठकर भाई गुरुदास जी ने यह सेवा निभाई जिसका मूल तत्व परमपिता परमेश्वर की आराधना करना, जाति-पाति एवं अन्ध विश्वासों का खण्डन करना और लोगों में आपसी भाई चारे की भावना पैदा कर परमेश्वर से जोड़ना है। उन्होंने सन 1604 में पहली बार श्री गुरु ग्रन्थ साहिब को श्री हरमन्दिर साहिब श्री अमृतसर में स्थापित किया जिसके पहले ग्रन्थी बाबा बुड्ढ़ा जी बने। श्री गुरू अरजन देव जी ने 30 रागों में 2312 शबद लिखे जो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज है जिसमें श्री सुखमनी साहिब प्रमुख हैं। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया।

दीवान की समाप्ति के उपरान्त ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी नाका हिंडोला के अध्यक्ष राजेन्द्र सिह बग्गा ने समूह संगत को साहिब श्री गुरू अरजन देव जी महाराज के प्रकाश पर्व की बधाई दी उसके उपरांत श्रद्धालुओं में मैकरोनी, मैगी एवं गुरू का लंगर वितरित किया गया।

बताते चलें कि सिक्खों के पाँचवे गुरू साहिब श्री गुरू अरजन देव जी महाराज के शहीदी दिवस को समर्पित श्री सुखमनी साहिब के पाठों की आरम्भता 24 अप्रैल शनिवार को माता गुजरी सत्संग सभा की सदस्याओं एवं संगत द्वारा ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी नाका हिंडोला में होगी जो प्रातरू 5.00 बजे से 7.00 बजे तक 40 दिनों तक चलेगा जिसका समापन 03 जून 2022 को साहिब श्री गुरू अर्जन देव जी महाराज के शहीदी दिवस के दिन होगा।

रिपोर्ट-दयाशंकर चौधरी

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